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रोगों से लडऩे में बेहद जरूरी है साइटोकिन प्रोटीन, मगर कई बार फायदे की जगह होता है नुकसान, जानिए क्यों

Published: May 25, 2021 01:59:55 pm

Submitted by:

Ashutosh Pathak

कोरोना महामारी से अब तक लाखों लोगों की मौत हो चुकी है। वैसे तो कोरोना से संक्रमित तमाम मरीज घर पर ही क्वारंटीन यानी आइसोलेट होकर इलाज से स्वस्थ्य हो रहे हैं। इसके लिए संक्रमित व्यक्ति को सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास और उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यून सिस्टम का मजबूत होना जरूरी है।
 

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नई दिल्ली।

यह बात तो करीब-करीब सभी जानते हैं कि किसी भी रोग या संक्रमण से लडऩे के लिए हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यून सिस्टम मजबूत होनी चाहिए। हालांकि, यह तथ्य बहुत कम लोग जानते होंगे कि इम्यून सिस्टम साइटोकिन (Cytokine) नाम के प्रोटीन का निर्माण करता है। इसका मतलब यह कि साइटोकिन नाम का प्रोटीन मानव शरीर के लिए बेहद जरूरी है। मगर अति हमेशा बुरी और नुकसानदायक होती है। साइटोकिन के साथ भी यही मसला है। तो आइए जानते हैं क्या है साइटोकिन स्टॉर्म (Cytokine Storm) और कैसे इससे आप बच सकते हैं—
अक्सर कुछ लोगों का शरीर इतनी अधिक मात्रा में साइटोकिन प्रोटीन का निर्माण कर देता है कि यह एंटीजन की जगह स्वस्थ कोशिकाओं पर ही हमला बोल देती है। इसे ही साइटोकिन स्टॉर्म के नाम से जाना जाता है। दरअसल, बीते डेढ़ साल में कोरोना वायरस (Coronavirus) ने दुनियाभर में तबाही मचाई है। भारत में तो इसकी लहर चल रही है और इसका कहर अब भी जारी है। अब तक लाखों लोगों की इस महामारी से मौत हो चुकी है। वैसे तो कोरोना से संक्रमित तमाम मरीज घर पर ही क्वारंटीन यानी आइसोलेट होकर इलाज से स्वस्थ्य हो रहे हैं। इसके लिए संक्रमित व्यक्ति को सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास और उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यून सिस्टम का मजबूत होना जरूरी है।
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हालांकि, कई बार ऐसे भी केस सामने आ रहे हैं कि व्यक्ति काफी स्वस्थ्य है, मगर उसका शरीर कोरोना का वार झेल नहीं पाया। यानी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता विपरित असर दिखा रही है। यह स्थिति विशेषकर युवाओं और स्वस्थ्य व्यक्तियों में अधिक दिख रही है। डॉक्टरों के मुताबिक, यह स्थिति साइटोकिन स्टॉम का परिणाम है। इसकी वजह से मरीज गंभीर रूप से बीमार हो रहा है और ऐसे में उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता ही उसे नुकसान पहुंचाने लगती है।
विशेषज्ञों की मानें तो साइटोकिन स्टॉर्म किसी के शरीर में वह स्थिति है, जिसमें उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता एंटीजन को खत्म करने की जगह शरीर के खिलाफ ही काम करने लगती है। कई बार तो यह इतना तेजी से होता है कि स्वस्थ्य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने लगता है। इससे संक्रमित व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। डॉक्टरों की मानें तो साइटोकिन प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला प्रोटीन है। यह संक्रमण की स्थिति में शरीर में सक्रिय हो जाता है। यह शरीर की कोशिकाओं से उत्पन्न होता है। इसका कार्य शरीर को संक्रमण से बचाना होता है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाने के लिए जरूरी प्रोटीन है। इसकी सीमित मात्रा खून में हो तो शरीर संक्रमण से बचा रहता है।
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अब सवाल यह है कि ऐसा क्यों और क्या होता है कि शरीर के लिए जरूरी प्रोटीन अक्सर उसके लिए ही खतरा बन जाता है। दरअसल, विशेषज्ञों की मानें तो साइटोकिन स्टॉर्म का प्रयोग सबसे पहले वर्ष 1993 में आया। इसे तब हाइपरसाइटोकिनेमिया कहा गया। तभी से यह टर्म लगातार प्रयोग में आ रहा है। इस प्रक्रिया के तहत किसी के शरीर में साइटोकिन प्रोटीन अनियंत्रित तरीके से बढऩे लगता है। इससे संबंधित व्यक्ति के फेफड़ों में सूजन आ जाती है और फेफड़ा पानी से भर जाता है, इससे उसे सांस लेने में समस्या होने लगती है। इसे सेकेंडरी बैक्टिरियल निमोनिया कहते हैं। इससे उस व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।
विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना संक्रमण या फिर शरीर में किसी दूसरे संक्रमण के अलावा स्वत: प्रतिरोधक बीमारियों में भी साइटोकिन स्टॉर्म का डर बना रहता है। तेज बुखार, शरीर में सूजन और त्वचा का रंग हल्का लाल होते जाना, थकान और उल्टी होना इसके शुरुआती लक्षण हैं। यह जानना जरूरी है कि यह स्थिति सिर्फ कोरोना संक्रमित व्यक्ति में ही हो, ऐसा नहीं है। वैसे तो यह शरीर की स्वत: रक्षा प्रक्रिया है, मगर कई बार ज्यादा सक्रिय होने पर यह शरीर की स्वस्थ्य कोशिकाओं की ही दुश्मन बन जाती है और उसे नष्ट करने लगती है।
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देखा जाए तो साइटोकिन स्टॉर्म वर्ष 1918-20 में आई स्पेनिश फ्लू महामारी के दौरान हुई मरीजों की मौत की प्रमुख वजहों में से एक थी। यही नहीं, बीते कुछ साल में एच1एन1 यानी स्वाइन फ्लू और एच5एन1 यानी बर्ड फ्लू के मामलों में भी इसके कई मरीज सामने आए। इस बीच, एंटीजन को नष्ट करने के लिए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता अधिक मात्रा में प्रोटीन बनाने लगती है। इससे स्वस्थ्य उत्तक यानी कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं, जिससे कई अंग काम करना बंद कर देते हैं और मरीज की मौत हो जाती है।
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