
जब जॉर्ज फर्नाडिस ने चीन को बताया देश का सबसे बड़ा दुशमन तो दुनिया भर में फैल गई थी सनसनी
नई दिल्ली। जॉर्ज फर्नांडिस समाजवादी होने के साथ एक साफगोई ओर निर्भीक नेता थे। उनके दुस्साहस का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में जार्ज फर्नांडीस ने रक्षामंत्री के पद पर रहते हुई एक बयान देकर दुनिया भर में सनसनी फैला दी थी। बतौर रक्षा मंत्री उन्होंने कहा था कि चीन भारत को नंबर एक दुश्मन है। ये बात उन्होंने मई, 1998 में कहीं थी। बता दें कि उसी महीने वाजपेयी सरकार ने पोखरण टू विस्फोट किया था और अमरीका ने भारत को काली सूची में डाला दिया है। इस बात को बाद में रक्षा मंत्री पद रहते हुए सपा नेता मुलायम सिंह यादव ने भी बाद में स्वीकार किया किया था। मुलायम की ओर से भी इस बात की चिंता जाहिर करने के बाद एक बड़ा सवाल उठा था कि चीन के प्रति समाजवादियों का रुख हमेशा से इतना कड़ा क्यों रहा है और उन्हें भारत के इस सबसे बड़े व ताकतवर पड़ोसी से इतनी चिढ़ क्यों होती है?
जताई थी डोकलाम की आशंका
जॉर्ज फर्नांडिस करीब 21 साल पहले कहा था कि चीन हमारा दुश्मन नंबर एक है। रक्षामंत्री के पद पर रहते हुए उनका यह सीधा व तीखा बयान न केवल भारतीय नेताओं के लिए बल्कि वर्ल्ड लीडर्स के लिए चौंकाने वाला था। उनको इस बात का भय था कि है कि चीन भूटान व सिक्किम पर कब्जा करना चाहता है और किसी हाल में तिब्बत पर उसको कब्जा नहीं करने देना चाहिए और भारत को इसका तीखा प्रतिरोध करना चाहिए और अपनी पूरी ताकत इसके लिए लगानी चाहिए। दरअसल, जॉर्ज और मुलायम राममनोहर लोहिया की समाजवादी राजनीति की पाठशाला के छात्र रहे हैं। डॉ लोहिया ने तिब्बत पर चीन के हमले को शिशु हत्या करार दिया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू से आग्रह किया था कि वे इसे कदापि मान्यता नहीं दें। लेकिन, चाऊ एन लाई को नेहरू अपना मित्र मानते थे और उस दौर में हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे खूब गूंजे। नेहरू ने अपने करिश्माई व्यक्तित्व के जरिए चाऊ को वैश्विक राजनीति में स्थापित होने में मदद की।
नेहरू को लोहिया ने चेताया था
आपको बता दें कि नेहरू की सोच एक समाजवादी भारत की थी लेकिन आलोचकों के मुताबिक वे चीन की मंशा को ठीक से नहीं समझ सके। साम्यवादी चीन दरअसल विस्तारवादी सोच का राष्ट्र है। लोहिया अपने अनुभवों के कारण साम्यवाद के आलोचक थे। सोवियत रूस के स्टालीन की नीतियों ने उन्हें इस विचरधारा का आलोचक बना दिया। चीन ने 1949 में कम्युनिस्ट क्रांति के महज साल भर बाद 1950 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया। उसके बाद 1951 में दोनों पक्षों के बीच हुए संधियों को धता बताते हुए उसने तिब्बत को कुचलना शुरू किया। फिर तिब्बत में 1958 में बड़ा भारी विरोध हुआ और 1959 में दलाई लामा भागकर भारत आ गए। इस ऐतिहासिक घटना ने चीन-भारत के रिश्तों में एक खटास पैदा की और 1962 का युद्ध यह सर्वविदित इतिहास है।
Published on:
29 Jan 2019 10:38 am
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