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वोटर लिस्ट-पैन कार्ड समेत यह 15 दस्तावेज नागरिकता का सबूत नहीं

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक महिला की नागरिकता (Citizenship) के लिए नहीं माने दस्तावेज।
अपने माता-पिता और भाई से अपना रिश्ता साबित नहीं कर सकी याचिकाकर्ता।
असम में विदेशी न्यायाधिकरण ने 2018 में महिला को एनआरसी (NRC) से किया था बाहर।

नई दिल्लीFeb 20, 2020 / 03:58 pm

अमित कुमार बाजपेयी

नागरिकता और एनआरसी

नागरिकता और एनआरसी

गुवाहाटी। भारत सरकार के नए नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देशभर में कुछ स्थानों पर दिसंबर से ही विरोध प्रदर्शन जारी है। CAA के बाद नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) को लेकर भी लोगों की खिलाफत चल रही है। इन सब विरोधों से अगर आप इसलिए लापरवाह हैं क्योंकि आपके पास अपनी पहचान साबित करने के तमाम दस्तावेज हैं, तो एक बार फिर से सोचें क्योंकि एक हाईकोर्ट ने अपने ताजा आदेश में वोटर आईडी कार्ड और पैन कार्ड समेत 15 दस्तावेज को नागरिकता के सबूत के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
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दरअसल यह मामला है असम के गुवाहाटी का। बुधवार को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक 50 वर्षीय महिला की याचिका को खारिज कर दिया, जो अपनी नागरिकता वापस पाने के लिए अदालत पहुंची थी। अदालत ने उसके द्वारा माता-पिता के नाम लिखे पैन कार्ड, वोटर कार्ड समेत 15 दस्तावेज पेश किए, लेकिन अदालत ने इनके आधार पर उसे नागरिकता देने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।
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गुवाहाटी हाईकोर्ट में जस्टिस मनोजीत भूयन और जस्टिस पार्थिवज्योति सैकिया की बेंच ने जाबेदा बेगम की याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह पेश किए गए माता-पिता और भाई से अपना संबंध साबित करने में विफल रही।
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याचिकाकर्ता जाबेदा बेगम द्वारा फॉरेन ट्रिब्यूनल के जरिये अदालत के सामने जो 15 दस्तावेज पेश किए गए, उनमें पैन कार्ड, राशन कार्ड, दो बैंक पासबुक, उसके पिता जाबेद अली की एनआरसी डिटेल, वो मतदाता सूचियां जिनमें उनके दादा-दादी, माता-पिता के साथ उसका और उसके पति का नाम छपा हुआ था समेत कई भू-राजस्व रसीदें शामिल थीं।
असम में अपनी नागरिकता साबित करने और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) में नाम जोड़ने के लिए आवेदकों को मार्च 1971 से पहले जारी किया गया 14 में से कोई एक दस्तावेज दिखाना है।
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हालांकि जाबेदा बेगम ने अपने पिता के 1966 से जुड़े दस्तावेज भी दिखाए थे, लेकिन विदेशी न्यायाधिकरण ने अपने पिता से संबंध साबित न कर पाने के चलते 2018 में महिला को विदेशी घोषित कर दिया था। बुधवार को अदालत ने भी न्यायाधिकरण के फैसले को बरकरार रखा।
वहीं, जन्म प्रमाण-पत्र की गैर-मौजूदगी में महिला ने अपने गांव के प्रधान द्वारा दिया गया सर्टिफिकेट जमा किए था, जिसमें उसका नाम, जन्म स्थान और माता-पिता का नाम लिखा हुआ था। हालांकि इसे भी ना तो न्यायाधिकरण और ना ही हाई कोर्ट ने स्वीकार किया।

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