
लॉकडाउन के दूसरे चरण की शुरुआत में मुंबई के बांद्रा में मजदूरों के भड़कने की घटना सामने आई है। इसके बाद देश के अन्य हिस्सों से भी ऐसी खबरें आने लगी हैं। उत्तराखंड में बनाए गए राहत कैंपों में ठहरे मजदूरों में भी बेचैनी बढ़ गई है। यह भी बताया जा रहा है कि दिल्ली के कश्मीरी गेट के नजदीक भी भारी संख्या में मजदूर एक पुल क नीचे इकट्ठे हैं।
परिवार चलाने की चिंता
उत्तराखंड के राहत कैंपों में ठहरे मजदूरों का कहना है कि यहां पर रहने और खाने की समस्या नहीं है। मजदूरों का मानना है कि यहां पर खाली बैठकर क्या फायदा, गांव जाकर जो भी थोड़ी बहुत खेती है, उसे करके अपना परिवार चला सकते हैं।
खत्म होने लगे हैं पैसे
देहरादून में 25 राहत शिविर हैं, जिनमें करीब 500 लोग ठहरे हुए हैं। सभी को लग रहा था कि 14 अप्रैल के बाद से लॉकडाउन खुल जाएगा। लेकिन लॉकडाउन नहीं खुला और उनके पास बचे पैसे भी खत्म होने लगे हैं। इन्हें चिंता है कि अब यह अपना परिवार कैसे देखेंगे और उनका खर्च कैसे चल रहा होगा। इसे लेकर मजदूरों में बेचैनी बढ़ने लगी है।
गांव में खड़ी फसल की चिंता
IASBC के पास राजा राम मोहन राय अकादमी में ठहरे मुरादाबाद के रामशंकर का कहना है कि सोचा था कि 14 को लॉकडाउन खुल जाएगा। कुछ खेती का काम कर लिया जाएगा। फसल खड़ी है, उसी की चिंता सता रही है। डीएम आशीष श्रीवास्तव के मुताबिक- 'शिविरों में ठहरे लोगों को अभी वहीं रखा जाएगा। इनके खाने-पीने की व्यवस्था हो रही है। 20 अप्रैल के बाद जो भी गाइडलाइन आएंगी उसके अनुसार ही निर्णय लिया जाएगा।'
'घर वालों को भेजना है पैसा'
उत्तरकाशी के रहने वाले रमेश कहते हैं कि- 'जो भी पैसा था वह खर्च हो गया है। घर वालों को पैसा देना है। आगे की यात्रा भी करनी है। यही सब परेशानी है। किसी भी तरह घर चलें जाएं तो बेहतर होगा।' वहीं इसी कैंप में ठहरे अशोक का कहना है कि बीमारी फैली हुई है, घर परिवार की सुरक्षा देखना भी जरूरी है।
पैदल घर जाने की मांग रहे हैं इजाजत
वहीं हरिद्वार में ठहरे लोग भी घर जाने के लिए बेताब हैं। वह साइकिल और पैदल ही अपने घर जाने की आज्ञा मांग रहे हैं। यहां प्रशासनिक अधिकारी कह रहे हैं कि मजदूरों को घर भिजवाने के लिए शासन से अनुमति मांगी गई है। बागेश्वर में भी कई लोग फंसे हैं उन्हें भी अपने घर जाने का इंतजार है।
'घरवाले गांव में अकेले हैं'
रूड़की के राहत कैंप मथुरा के सोहन के अनुसार- गेंहू की फसल खड़ी है। घर पर पत्नी और बच्चे अकेले हैं। उनकी जान का डर सता रहा है। हमारा पहुंचना बहुत जरूरी है। इसी शिविर में रुके एक अन्य मजदूर का भी कहना कि उन्हें भी कृषि कार्य के लिए जाना बहुत जरूरी है।
केंद्रीय योजनाओं का लाभ भी कार्डधारकों को ही
मजदूरों की अवाज उठाने वाले चेतना आन्दोलन के सहसंयोजक शंकर गोपाल के अनुसार- 'प्रवासी मजदूर अपने परिवार को पैसा नहीं भेज पा रहे हैं। उनका परिवार कैसे चलेगा, इसकी उन्हें बहुत चिंता है। इसके अलावा जितनी भी केंद्रीय योजनाओं का लाभ भी राशन कार्ड पर मिलता है। उनका राशन कार्ड स्थानीय स्तर का नहीं होगा तो उनको राहत का लाभ नहीं मिल पाएगा। यही सब प्रवासियों की बेचैनी का कारण है।"
Updated on:
15 Apr 2020 08:15 pm
Published on:
15 Apr 2020 07:19 pm
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