
बेंगलूरु पत्रिका ब्यूरो. अंटार्कटिका महाद्वीप की चौथी सबसे बड़ी बर्फ शेल्फ (भू-भाग से स्थायी रूप से जुड़ी हुई अस्थिर बर्फ की परतें) ‘लार्सन सी’ से लगभग 6200 वर्ग किलोमीटर का एक बड़ा हिमशैल (अस्थिर भू-बर्फ) पिछले दिनों टूटकर अलग हो गया। इसे ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव माना जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग का लंबवत प्रभाव अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों पर पड़ता है। इससे पैदा एक छोटी सी दरार धीरे-धीरे चौड़ी होती जाती है और अंतत: रिफ्ट का निर्माण होता है जिससे एक बड़ा हिमशैल टूटकर अलग हो जाता है।
दरअसल, दुनिया का 90 फीसदी ताजा पानी अंटार्कटिका में ही है और यह प्रायद्वीप जलवायु परिवर्तन की निगरानी के लिए एक सर्वश्रेष्ठ परीक्षण बेड की तरह है। लार्सन सी यहां की चौथी सबसे बड़ी बर्फ शेल्फ है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने हाल में लार्सन सी का नजदीकी से अध्ययन किया और अभी भी उसकी निगरानी की जा रही है। इसरो के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग के कारण असामान्य गति से लार्सन सी में दरारें पैदा हुईं। हालांकि, यहां बर्फ के प्रसार अथवा विघटन की घटनाएं सामान्य हैं लेकिन इस क्षेत्र का नियमित शोध एवं अध्ययन इसलिए किया है क्योंकि असामान्य तेज दरारें फैलाने के प्रेरक कारकों में से एक ग्लोबल वार्मिंग है।
लार्सन-सी बर्फ क्षेत्र जेसन प्रायद्वीप से लेकर हर्सट् द्वीप के बीच लगभग 50 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। फरवरी 2017 में लार्सन-सी भू-भाग से एक हिमशैल के संभावित अलगाव की खबरों के बाद इसरो की टीम ने बारीकी से निगरानी शुरू की। इसरो उपग्रह अनुप्रयोग केंद्र (सैक) ने सैकनेट के माध्यम से व्योम और वेदास पर इसकी रिपोर्ट भी जारी की। दरारें चौड़ी होने और रिफ्ट निर्माण के बाद पिछले 10 से 12 जुलाई 2017 के बीच एक बड़ा हिमशैल लार्सन सी से अलग हो गया। इस हिमशैल को वैज्ञानिक समुदाय ने ‘ए-68’ के रूप में नामित किया है।
दरअसल, अंटार्कटिका बर्फ से ढका हुआ भू-भाग है जो मोटे तौर पर पूर्वी अंटार्कटिका और पश्चिमी अंटार्कटिका में विभाजित है। यहां बर्फ की शीट (अधिकांश समय तक बर्फ की परत में अच्छादित भू-भाग), बर्फ शेल्फ, हिमशैल, ग्लेशियर और समुद्री बर्फ आदि हैं। लार्सन सी यहां की चौथी सबसे बड़ी बर्फ सेल्फ है। इसरो ने उपलब्ध आंकड़ों का उपयोग करते हुए लार्सन सी में रिफ्ट निर्माण और इस तरह हिमशैलों के अलग होने की घटनाओं की निगरानी के लिए एक स्वचालित प्रणाली तैयार की है। इस प्रणाली में उन्नत मौसम उपग्रह स्कैटसैट-1 की हाई रिजोल्यूशन तस्वीरों (2 किमी), आंकड़ों को समायोजित करने के लिए इस मॉड्यूल को संशोधित किया जा रहा है। भविष्य में इसका उपयोग रिसैट श्रृंखला के आंकड़ों के लिए भी किया जाएगा। गौरतलब है कि भारत ने दो अंटार्कटिक अनुसंधान केंद्र ‘मैत्री’ और ‘भारती’ की स्थापना की है, जो नियमित रूप से वैज्ञानिक अभियानों और वैज्ञानिक अनुसंधानों में योगदान दे रहा है।
दिसंबर से पहले पीएसएलवी मिशन की तैयारी में इसरो :
तिरुवनंतपुरम. अंतरिक्ष में नैविगेशन सैटलाइट छोडऩे के असफल प्रयास के करीब एक महीने बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब नवंबर-दिसंबर में अपने अगले पीएसएलवी मिशन की तैयारी कर रहा है। इसरो प्र्रमुख एएस किरण कुमार 68वीं नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ एयरोनॉटिकल सोसायटी ऑफ इंडिया में भाग लेने तिरु वंतपुरम आए थे। यहा उन्होंने बताया, ‘हम नवंबर-दिसंबर में अगले पीएसएलवी लॉन्च की तैयारी कर रहे हैं।’
Published on:
22 Sept 2017 08:43 pm
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