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‘माता-पिता के अधिकार से ज्यादा जरूरी है बच्चे का कल्याण’, बॉम्बे हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी

Bombay High Court: बॉम्बे कोर्ट ने कहा है, "हमारे देश में वैवाहिक विवाद सबसे तीखी लड़ाई वाली प्रतिकूल मुकदमेबाजी हैं। एक समय ऐसा आता है जब लड़ने वाले जोड़े कारण देखना बंद कर देते हैं। बच्चों को चल संपत्ति के रूप में माना जाता है।"

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मुंबई

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Dinesh Dubey

Apr 12, 2023

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15 वर्षीय रेप पीड़िता को नहीं मिली गर्भपात की इजाजत, बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला

Mumbai News: बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने तलाकशुदा पति और पत्नी से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने मंगलवार को एक महिला को अपने 15 साल के बेटे के साथ थाईलैंड से भारत आने का निर्देश देते हुए कहा कि वैवाहिक विवादों में बच्चों को चल संपत्ति की तरह समझा जाता है। कोर्ट ने बेटे को भारत लाने के लिए इसलिए कहा ताकि वह यहां रह रहे अपने पिता और भाई-बहनों से मिल सके।

जस्टिस आरडी धानुका (RD Dhanuka) और जस्टिस गौरी गोडसे (Gauri Godse) की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के विवाद हमारे देश में सबसे कड़वी क़ानूनी लड़ाई के तौर पर लड़े जाते है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि एक बच्चे का कल्याण उस पर माता-पिता के अधिकारों से अधिक महत्वपूर्ण है। यह भी पढ़े-कुत्ते, बिल्लियां इंसान नहीं हैं... बॉम्बे हाईकोर्ट ने रद्द की स्विगी डिलीवरी बॉय पर दर्ज FIR, पुलिस को फटकारा

अदालत थाईलैंड में अपनी मां के साथ रहने वाले अपने 15 वर्षीय बेटे से मिलने की मांग करने वाले एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने कहा कि लड़के को अपने माता-पिता के बीच कड़वाहट भरे मुकदमे के कारण धक्का लगा है और वह अपने पिता से मिलने का इच्छुक है।

कोर्ट ने कहा है, "हमारे देश में वैवाहिक विवाद सबसे तीखी लड़ाई वाली प्रतिकूल मुकदमेबाजी हैं। एक समय ऐसा आता है जब लड़ने वाले जोड़े कारण देखना बंद कर देते हैं। बच्चों को चल संपत्ति के रूप में माना जाता है।"

जजों ने कहा, बच्चों को संपत्ति के रूप में नहीं माना जा सकता है, माता-पिता का अपने बच्चों के भाग्य और जीवन पर पूर्ण अधिकार होगा। सर्वोपरि विचार बच्चे का कल्याण है, न कि माता-पिता के कानूनी अधिकार है।

अलग रह रहे जोड़े के बड़े बच्चे- एक बालिग बेटा और एक बालिग बेटी अपने पिता के साथ रहती हैं। पिता ने दावा किया कि सितंबर 2020 में पारिवारिक अदालत के निर्देश का उसकी पत्नी पालन नहीं कर रही है। इसलिए उसने याचिका दायर कर मांग कि की हाईकोर्ट महिला को गर्मी की छुट्टियों में बेटे को भारत लाने का निर्देश दें।

जबकि, महिला के वकील ने न्यायालय से कहा कि वह अपने बेटे के साथ भारत आने को तैयार है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक आदेश पारित किया जाना चाहिए कि वह छुट्टी के अंत में अपने बेटे के साथ सुरक्षित रूप से थाईलैंड लौट सके।

हाईकोर्ट ने कहा कि माता-पिता की आवश्यकताओं और बच्चे के कल्याण के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। अदालत ने कहा, बच्चे के विकास के लिए यह जरूरी है कि बच्चे को अपने माता-पिता और भाई-बहन दोनों का साथ मिले। माता-पिता दोनों को पछतावा व्यक्त करना चाहिए और सुधारात्मक उपायों को अपनाना चाहिए।

पीठ ने महिला को निर्देश दिया कि वह अपने बेटे के साथ भारत आए ताकि वह अपने पिता और बड़े भाई-बहनों से मिल सके। साथ ही आदेश में कहा कि पिता महिला और उनके बेटे के भारत में होने के दौरान उनकी गिरफ्तारी/हिरासत के लिए कोई शिकायत या कार्रवाई नहीं करेगा।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि संबंधित राज्य और केंद्रीय एजेंसियां यह सुनिश्चित करें कि बाद में उनकी (महिला और बच्चे की) थाईलैंड वापसी में कोई बाधा उत्पन्न न हो।