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maharastra tourism : खारेपाटण में छिपा है सदियों का समृद्ध इतिहास

- देश-विदेश के पर्यटकों को मोह लेती है कोंकण की नैसर्गिक खूबसूरती- सुखी नदी किनारे पाश्र्वनाथ की मूर्ति विशेष आकर्षण- शिलाहार राजाओं ने यहां बनवाया किला- मुस्लिम, मराठा, आंग्रे व अंग्रेजों ने किया शासन

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मुंबई

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arun Kumar

Apr 20, 2022

maharastra tourism : खारेपाटण में छिपा है सदियों का समृद्ध इतिहास

maharastra tourism : खारेपाटण में छिपा है सदियों का समृद्ध इतिहास

बसंत मौर्य
मुंबई. गर्मी की छुट्टियों के साथ मई से देश भर में पर्यटन सीजन शुरू होगा। नैसर्गिक खूबसूरती वाले देश के राज्यों में महाराष्ट्र बेमिसाल है। कोंकण का लंबा समुद्री किनारा ही नहीं सह्याद्रि की ऊंची पहाडिय़ां व वनाच्छादित घाटियां और माथेरान-महाबलेश्वर जैसे हिल स्टेशन, छत्रपति शिवाजी महाराज की शौर्य गाथा को बयां करते ऐतिहासिक किले, नासिक के अंगूर, रत्नागिरी व सिंधु दुर्ग के हापुस आम व काजू के बागान मेहमानों की आवभगत के लिए तैयार हैं। सिंधुदुर्ग जिले की कणकवली तहसील में स्थित खारेपाटण गांव का समृद्ध इतिहास है। चारों तरफ फैले भग्नावशेषों को सहेजे खारेपाटण गांव दो हजार साल पहले बड़ा कारोबारी केंद्र था। यहां के बंदरगाह से सात समुंदर विदेश सामान भेजे-मंगाए जाते थे। यह गांव रत्नागिरी के राजापुर स्टेशन से 18 किमी और सिंधुदुर्ग के नांदगांव से 32 किमी दूर स्थित है। पेरिप्लस ऑफ एथिरियन सी नामक ग्रीक पुस्तक और शिलाहार कालीन साहित्य में वलिपट्टनम नाम से इसका उल्लेख है।
खारेपाटण के आसपास महाराष्ट्र पर्यटन मंत्रालय पर्यटकोंं को आकर्षित करने के लिए लगातार प्रयासरत है। इसके तहत महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (एमटीडीसी) की ओर से जरूरी सुविधाएं विकसित की गई हैं। रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग स्थित एमटीडीसी कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।

शिलाहार की दक्षिणी राजधानी
राजा दामियार ने खारेपाटण को शिलाहार की दक्षिणी राजधानी बनाया था। यह गांव ऐतिहासिक विजयदुर्ग से 40 किमी दूर है। विजयदुर्ग वही बंदरगाह है, जहां विदेश से आए जलयानों से सामान उतार कर देश भर के बाजारों में पहुंचाया जाता था। व्यापारिक सुरक्षा के लिए वाघोटन खाड़ी के मुहाने पर दो किले बनाए गए थे। इनमें खारेपाटण किला और विजयदुर्ग शामिल हैं।

प्राचीन मंदिर-बौद्ध स्तूप
दोनों किलों को जोडऩे वाले मार्ग पर कई बौद्ध स्तूप, लेणी-स्तूप, पानी के कुंड, प्राचीन मंदिर आदि हैं। चालुक्य और शिलाहार राजाओं ने यहां काफी काम कराया है। मंदिरों-स्तूपों के शिल्प में उनकी छाप दिखती है। बड़ी संख्या में लोग इन्हें देखने आते हैं।

पुरानी जैन बस्ती
कोंकण की सबसे पुरानी जैन बस्ती भी इसी गांव में है। यहां से बहने वाली सुख नदी के किनारे 10वीं सदी में बनी 23वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्ववनाथ की मूर्ति खास है। यहां छोटे-बड़े कई जैन मंदिर हैं। देश के दूसरे हिस्सों में बने जैन मंदिरों में यहां की शिल्पकला देखी जा सकती है। जैन समुदाय के लिए यह आस्था का केंद्र है।

कई प्राचीन मंदिर
खारेपाटण के आसपास कई प्राचीन मंदिर हैं। इनमें भैरी, रामेश्वर, कपालेश्वर आदि शामिल हैं। विशाल परिसरों में फैले इन मंदिरों की शिल्पकला बेमिसाल है। स्थानीय किले पर आधिपत्य के लिए कई लड़ाइयां हुईं। मातृ भूमि की रक्षा में कई भूमि पुत्र शहीद हो गए।