विदित हो कि यूजीसी को ओर से पदों को शीघ्र भरने के सुझाव के बावजूद, राज्य सरकार के उच्च शिक्षा विभाग कीओर से इसकी अनदेखी की जा रही थी। सरकारी भर्ती की उपेक्षा के चलते यूजीसी ने पांच रिमाइंडर 4 जून, 31 जुलाई, 7 अगस्त, 5 सितंबर और 22 अक्टूबर को विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र भेजे, जिसमें सरकार भी शामिल थी। इस स्मरण पत्र को भेजने में यूजीसी ने 10 नवंबर तक भर्ती के साथ देरी के मामले में उचित कदम उठाने की सलाह भी दी थी। इसके बावजूद सरकार की उपेक्षा के चलते यूनिवर्सिटी में भर्ती प्रक्रिया को अंजाम नहीं दिया गया। हालांकि यूजीसी की ओर से 10 नवंबर की समयसीमा में दो दिन की देरी को लेकर उच्च शिक्षण विभाग की ओर से पदों की भर्ती के लिए यूनिवर्सिटी को आदेश दिया गया।
वहीं राज्य सरकार को प्रोफेसरों की भर्ती में मची उथल-पुथल को लेकर शिक्षा यूनियनों की ओर से राज्य सरकार के प्रति रोष व्यक्त किया गया है। इसके अलावा उच्च शिक्षा विभाग की उदासीनता के चलते विश्वविद्यालयों, सरकारी और सहायता प्राप्त कॉलेजों की भर्ती पूरी नहीं हो सकी, जबकि राज्य में 20 हजार नेट-सेट धारक उपलब्ध थे और इसके लिए यूजीसी की ओर से पांच बार रिमाइंडर दिए गए थे। इसलिए ऑल इंडिया नेट सेट टीचर्स ऑर्गेनाइजेशन संयोजके कुशल मुडे व नेशनल फोरम फॉर क्वालिटी एज्युकेशन के अध्यक्ष रमेश झाडे की ओर से इस बाबत उप-कुलपति, उच्च शिक्षा निदेशक और सचिव को दोषी ठहराया गया है।
हालांकि प्रोफेसरों की भर्ती के लिए एक बिंदु सूची बनाने की आवश्यकता है, अधिकांश विश्वविद्यालयों ने अभी तक सूची को मान्य नहीं किया है। इसलिए हम इस मामले को राज्यपाल के ध्यान में लाएंगे। साथ ही हम राज्यपाल से जल्द से जल्द इस पर गौर करने का आग्रह करेंगे।