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राज्य सरकार नमक उद्यमियों को तो सांभर साल्ट्स सरकार को ही बता रही अवैध

- सांभर झील के कब्जे को लेकर सांभर साल्ट्स लिमिटेड व राज्य सरकार के बीच चल रहा विवाद- सांभर साल्ट्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक ने भारत सरकार के भारी उद्योग मंत्रालय को लिखा पत्र

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Dispute between Sambhar Salts and state government over Sambhar Lake

Dispute between Sambhar Salts and state government over Sambhar Lake

नागौर/नावां. भारत ही नहीं एशिया की सबसे बड़ी अंतर्देशीय नमक झील के नाम से विख्यात सांभर झील के मालिकाना हक को लेकर नए-नए सवाल खड़े होने लगे हैं। गत दिनों नावां में दिनदहाड़े जयपाल पूनिया की गोली मारकर हत्या करने के बाद इस विवाद ने तूल पकड़ लिया है।

राजस्व विभाग के अधिकारी सांभर झील में नमक बनाने वाले लोगों को अवैध बताकर उनके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं, जबकि सांभर साल्ट्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक कमलेश कुमार ने भारत सरकार के भारी उद्योग मंत्रालय को लिखे पत्र में राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए समाधान कराने की मांग की है।उधर, अभिनव पार्टी के अध्यक्ष डॉ. अशोक चौधरी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर प्रशासन की कार्रवाई को गलत बताते हुए राजस्थान सरकार की उदासनीता व ढुलमुल रवैये पर सवाल खड़े किए हैं।

90 वर्ग मील में फैली है सांभर झील

90 वर्ग मील से अधिक क्षेत्रफल में फैली सांभर झील पर मालिकाना हक को लेकर स्थानीय अधिकारी कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं हैं। सूत्रों के अनुसार अतीत से ही सांभर लेक में उपलब्ध ब्राइन (नमकीन पानी) से नमक उत्पादन का कार्य किया जा रहा है। बिट्रिशर्स से पूर्व सांभर झील से नमक उत्पादन का कार्य जयपुर, जोधपुर रियासतों द्वारा किया जाता था। तत्पश्चात ब्रिट्रिश गवर्नमेन्ट ने दोनों जयपुर, जोधपुर रियासतों के साथ संधि कर सांभर झील को अपने अधिकार क्षेत्र में लेकर नमक उत्पादन का कार्य शुरू कर दिया। आजादी के बाद से भारत सरकार ने ब्रिट्रिश सरकार से सांभर झील का अधिग्रहण कर लिया। फलस्वरूप सांभर झील व नमक उत्पादन के कार्य व इसके प्रशासन का कार्य सीधे तौर पर भारत सरकार के अधीन आ गया। इसके बाद भारत सरकार द्वारा वर्ष 1958 तक स्वयं नमक उत्पादन का कार्य किया गया। बाद में सरकार ने सांभर झील को हिन्दुस्तान साल्ट्स लिमिटेड को एवं 1964 से सांभर साल्ट्स लिमिटेड को हस्तांतरित कर दिया।

लीज समाप्त होने के बाद शुरू हुआ विवाद

प्रबंध निदेशक द्वारा लिखे गए पत्र के अनुसार भारत सरकार व राजस्थान सरकार के मध्य रॉयलटी के संबंध में विवाद उत्पन्न होने पर तथा अन्य शर्तें निर्धारित करने के लिए दोनों सरकारों द्वारा आपसी सहमति से मामला मध्यस्थता के लिए वी.टी. कृष्णामाचारी के समक्ष रखा गया। कृष्णामाचारी ने 29 अप्रेल 1961 को अवार्ड जारी किया। अवार्ड के अनुसार नमक बनाने के लिए सम्पूर्ण सांभर झील को 99 वर्ष की लीज पर भारत सरकार को दिया गया और राजस्थान सरकार को 99 वर्ष तक प्रतिवर्ष 5.50 लाख रुपए देना तय हुआ तथा इस लीज राशि के बदले राज्य सरकार को सांभर झील में पानी की पूर्ण आवक (फ्री फ्लो वाटर) की व्यवस्था करनी तय हुई। यह भी तय हुआ कि नमक उत्पादन का कार्य करने के लिए भारत सरकार द्वारा एक नई कम्पनी का गठन स्वयं या जरिये हिन्दुस्तान साल्ट्स लिमिटेड किया जाए। सांभर साल्ट्स लिमिटेड का गठन कृष्णामाचारी के अवार्ड के अनुसरण में ही किया गया। 19 अगस्त 1961 को भारत सरकार ने गजट नोटिफिकेशन जारी कर अवार्ड में पारित निर्णय की पुष्टि कर झील को अपने अधिकार क्षेत्र में लिया।

राज्य सरकार ने जारी कर दिए पट्टे, यहीं से विवाद शुरू

सांभर झील में नमक बनाने का मुद्दा हिंसक होने के बाद हिन्दुस्तान साल्ट्स लिमिटेड एवं सांभर साल्ट्स लिमिटेड के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक कमलेश कुमार ने दो दिन पहले ही भारत सरकार को पत्र लिखकर राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए राज्य सरकार के मुख्य सचिव को दिशा निर्देश जारी करने की मांग की है -

फाइल देखकर ही बता पाऊंगा

सांभर झील के मालिकाना हक को लेकर मामला उच्च न्यायालय द्वारा गठित कमेटी के पास है। कमेटी ने जो निर्णय दिया है, उसकी फाइल देखकर ही कुछ बता पाऊंगा।

- ब्रह्मलाल जाट, एसडीएम, नावां

गुजरात के लोग नमक बना सकते हैं तो राजस्थान के क्यों नहीं

सांभर झील किसी समय राजस्थान की महत्वपूर्ण धरोहर और आर्थिक संपत्ति थी। 1960 में इस सांभर साल्ट्स लिमिटेड कम्पनी का यहां पर अधिकार समाप्त हो गया था, क्योंकि उसकी 90 साल की लीज पूरी हो गई थी और नई लीज स्वीकृत होकर रजिस्टर्ड नहीं हुई थी। केवल तीन अफसरों की कमेटी के माध्यम से एक अवैध समझौता हुआ, जिसका कोई वैधानिक अस्तित्व आज नहीं है। राजस्थान सरकार के राजस्व रिकॉर्ड में आज यह झील सांभर साल्ट लिमटेड के स्वामित्व में नहीं है, उसका यहां अवैध कब्जा है। स्थानीय व्यवसायी जब इस झील का पानी लेकर अपनी पुरानी परम्परा के अनुसार नमक बनाते हैं तो अधिकारी उनके काम को अवैध कारोबार ठहरा देते हैं। बार-बार इस झूठ को दोहराने से यह सच नहीं हो जाएगा। जब गुजरात के लोग समुद्र से नमक बना सकते हैं तो राजस्थान के लोग अपनी झील से नमक क्यों नहीं बना सकते?

- डॉ. अशोक चौधरी, अध्यक्ष, अभिनव राजस्थान पार्टी