
Fear of pests and diseases in cumin and isabgol crops
जीरा एवं ईसबगोल के भावों में तेजी होने से इस बार जिले में किसानों ने दोनों ही फसलों की अच्छी बुआई की है। नागौर जिले में जीरे की खेती लक्ष्य 50 हजार हैक्टेयर की तुलना में करीब 54 हजार हैक्टेयर में की गई है। इसी प्रकार ईसबगोल की बुआई लक्ष्य की तुलना में 132 प्रतिशत की गई है। डीडवाना-कुचामन जिले में जहां 22,825 हैक्टेयर में बुआई हुई है, वहीं नागौर जिले में 50,200 हैक्टेयर में बुआई हुई है। पिछले काफी दिनों से मौसम में बार-बार आ रहे बदलाव से जीरा व ईसबगोल में रोग व कीट लगने की आशंका है, इसको देखते हुए पत्रिका ने कृषि विभाग के सहायक निदेशक शंकरराम सियाक से बात की। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश -
प्रश्न : प्रदेश में पश्चिमी विक्षोभ के असर से गत दिनों हुई मावठ के बाद मौसम में नमी व्याप्त हो गई है, ऐसे में जीरा व ईसबगोल में कौन-कौन से रोग लग सकते हैं?
उत्तर - ईसबगोल की बात करें तो पत्ती धब्बा/अंगमारी रोग व मोयला किट का प्रकोप हो सकता है। इसी प्रकार जीरा में भी मोयला, छाछ्या, झुलसा (ब्लाइट) व उखटा (विल्ट) आदि रोग हो सकते हैं। जीरा की फसल में मोयला के आक्रमण से फसल को काफी नुकसान होता है। यह कीट पौधे के कोमल भाग से रस चूस कर हानि पहुंचाता हैं।
प्रश्न : ईसबगोल में होने वाले रोगों के बचाव व उपचार के लिए किसान क्या करें?
उत्तर - ईसबगोल में पत्ती धब्बा/अंगमारी रोग की रोकथाम के लिए मैन्कोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. दवा का 0.2 प्रतिशत या मैंकोजेब कारबेंडाजिम की 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें। आवश्यक हो तो 15 दिन बाद दूसरा छिडक़ाव करें। इसके साथ फसल में 50-60 दिन की अवस्था पर तुलासिता रोग होने पर मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. के 0.2 प्रतिशत घोल या रिडोमिल एमजेड 78 की एक किलोग्राम मात्रा को पानी में घोल कर प्रति हैक्टर छिडक़ाव करें। आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद वापस दोहराएं। मोयला की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. का एक मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी या क्लोथियानिडिन 50 डब्ल्यू.डी.जी. का एक ग्राम प्रति 5 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें। आवश्यकता पडऩे पर उसका दूसरा छिडक़ाव 15 दिनों के अन्तराल पर करें।
प्रश्न - जीरा की फसल में मोयला का का प्रकोप होने पर बचाव के लिए किसान क्या करें?
उत्तर - जीरा फसल में मोयला का प्रकोप प्राय: फसल में फूल आने के समय प्रारम्भ होता है। इसके नियंत्रण के लिए डायमिथोएट 30 ईसी या मैलाथियॉन 50 ईसी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या ऐसीफेट 75 एस.पी. 750 ग्राम प्रति हैक्टर या इमिडोक्लोप्रीड 17.8 एसएल या थायोमिथोक्साम 25 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. घुलनशील चूर्ण 100 ग्राम प्रति हैक्टर की दर से पानी में घोलकर छिडक़ाव करना चाहिए। आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के बाद छिडक़ाव को दोहराएं।
प्रश्न - जीरा में छाछया रोग होने पर बचाव के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर - छाछ्या रोग का प्रकोप होने पर पौधों की पत्तियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देने लगता है। रोग की रोकथाम न की जाए तो चूर्ण की मात्रा बढ़ जाती है। यदि रोग का प्रकोप जल्दी हो गया हो तो बीज नहीं बनते हैं। नियंत्रण के लिए गन्धक के चूर्ण का 25 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करें या घुलनशील गन्धक चूर्ण ढाई किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से छिडक़ें अथवा केराथेन एलसी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर छिडक़ाव करने से भी इसकी रोकथाम की जा सकती है।
प्रश्न - मौसम में बदलाव आने पर जीरे में झुलसा का प्रकोप जल्द होता है, इसके लिए क्या करें?
उत्तर - झुलसा (ब्लाइट) रोग जीरे की फसल में फूल आना शुरू होने के बाद होता है। अगर आकाश में बादल छाए रहें, तो इस रोग का लगना निश्चित हो जाता है। रोग में पौधों की पत्तियों एवं तनों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं तथा पौधों के सिरे झुके हुए नजर आने लगते हैं। यह रोग इतनी तेजी से फैलता है कि रोग के लक्षण दिखाई देते ही यदि नियंत्रण कार्य न किया जाए तो फसल को नुकसान से बचाना मुश्किल होता है। नियंत्रण के लिए बुवाई के 30-35 दिन बाद फसल पर दो ग्राम टॉप्सिन एम या मैन्कोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. या थाइरम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडक़ें। किसान मेरे मोबाइल नम्बर 9772357131 पर भी बात कर सकते हैं।
Published on:
29 Dec 2023 08:33 pm
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