
Chousla News
चौसला. नदियां सालभर निर्मल जल से लबालब भर कर बहती रहती थी। वहीं खेतों में सिंचाई के लिए बड़े-बड़े कुएं थे। जिन पर डीजल चलित इंजन दिन-रात चला करते थै अब यह गुजरे जमाने की बात हो गई। क्षेत्र में सूखा तो नहीं है, लेकिन हालात सूखे से कम नहीं है। तीन दशक पहले तक ताल तलैया लबालब रहते थे वहीं तीन जिलों से होकर गुजरने वाली मेंढा नदीं में हर साल बारिश के दिनों में 3-4 माह तक शीतल जल बहता था। वो जल आज भी है, लेकिन सिर्फ जमीन के भीतर।
अतिदोहन ने बिगाड़े हालात
क्षेत्र के किसानों में अधिकाधिक मुनाफा कमाने की होड़ कदम-कदम पर लगे नलकूप और उनसे होते अंधाधुंध व बेतहाशा जलदोहन ने क्षेत्र के हालात ही पलट कर रख दिए। कभी लबालब भरे रहने वाले तालाब ओर कलकल बहने वाली तुरतमती व नीमकाथाना स्थित झाड़ली सुराणा के पहाड़ों से होकर 150 किलोमीटर का सफर तय कर सांभर झील में मिलने वाली जैसी नदी आज सूखी पड़ी है। जिससे नदी के आस-पास वाले दर्जनों गांवों के हालात गर्मी के दिनों में विकट हो जाते है।
कभी बहती थी जलधाराएं
तीन दशक पहले इन नदियों के बहने से सांभर झील व झील से सटे सब देवी-देवताओं की नानी कहलाने वाली देवयानी तीर्थस्थल कभी बेतहाशा जल की उपलब्धता के लिए जाना जाता था। यहां जगह-जगह जलधाराएं बहती थी। नदी के निकट पिपराली में करीब 1300 वर्ष व लूणवां में हजारों साल पूराने शिव सागर तालाब जल से लबालब भरे रहते थे, लेकिन तीन दशक से बारिश का कम होना और नदी क्षेत्र में जगह-जगह एनिकट बनाने से हालात विपरीत हो गए है। देवयानी सरोवर को अब नलकूपों से भरा जाने लगा है। मेंढा नदी सूखी पड़ी है। पानी की प्रचुरता से छाइ रहने वाली वीरान हो गए खेत
बुजुर्गो की माने तो तीन दशक पहले तक इलाके में खरीफ व रबी की बम्पर पैदावार होती थी। ओर किसान समृद्ध थे चारों और हरियाली ही हरियाली थी, आज क्षेत्र के कई इलाकों मे देखा जाए तों दूर-दूर खेत विरान पड़े दिखाई दे रहे है।

Published on:
13 Mar 2018 06:21 pm
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