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तीन साल से बंद पड़ा है सरकारी स्कूलों में स्वास्थ्य परीक्षण का काम

-कोरोना के समय से बंद है, राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत दिल में छेद समेत कुछ बड़ी बीमारियों के बच्चों को किया जाता है चिन्हित, इनके भी कई अभिभावक लापरवाह, नहीं कराते समय पर ऑपरेशन

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स्वास्थ्य परीक्षण

सरकारी स्कूलों में बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण का काम पिछले तीन साल से बंद पड़ा है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत केवल कुछ बड़ी बीमारियों वाले बच्चों को चिन्हित कर इलाज कराने का काम जरूर पटरी पर है।

नागौर. सरकारी स्कूलों में बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण का काम पिछले तीन साल से बंद पड़ा है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत केवल कुछ बड़ी बीमारियों वाले बच्चों को चिन्हित कर इलाज कराने का काम जरूर पटरी पर है। इसमें भी परिजन की लापरवाही बच्चों पर भारी पड़ रही है।

सूत्रों के अनुसार कोरोना काल से सरकारी स्कूलों में स्वास्थ्य परीक्षण का काम बंद हो गया। पहले हर स्कूल के सभी बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण होता था। अलग-अलग बीमारियों से चिन्हित बच्चों के दवा व इलाज के लिए कार्ड बनता था। हर कक्षा में इसका एक रजिस्टर होता था, जिसमें हर बच्चे की जानकारियां रहती थीं। बताया जाता है कि मार्च 2020 में आए कोरोना के बाद से लगभग सभी स्कूलों में स्वास्थ्य परीक्षण बंद है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत जो शिविर लगते हैं, उनमें केवल दिल में छेद, जीभ तालू से चिपकना, पैर टेढ़े होने जैसे रोग के बच्चों को चिन्हित किया जाता है। इनका सरकार अपने स्तर पर ऑपरेशन कराती थी। पहले इसके लिए बजट अलग से होता था जिसे अब चिरंजीवी योजना के बजट में समाहित कर दिया है।

सूत्र बताते हैं कि नागौर (डीडवाना-कुचामन) जिले में करीब तीन लाख साठ हजार बच्चे अभी पढ़ रहे हैं। इन स्कूलों में पढ़ रहे कुछ बच्चे और शिक्षकों से बात हुई तो यही सामने आया कि यहां पर पिछले तीन-चार साल से किसी प्रकार का स्वास्थ्य परीक्षण नहीं हुआ। नाम नहीं बताते हुए एक शिक्षक ने कहा कि वैसे इससे कोई खास फर्क तो नहीं पड़ता पर कोई ना कोई गंभीर रोग समय पर पकड़ में आ जाए तो इलाज के लिए अभिभावक चेत जाते हैं।

यहां स्थिति दूसरी

सूत्रों का कहना है कि सामान्य स्वास्थ्य परीक्षण तो बच्चों का हो नहीं रहा, राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत दिल में छेद समेत कुछ बीमारियों के लिए जरूर सर्वे किया जाता है। बताया जाता है कि इस काम को देख रहे चिकित्सक व अन्य कर्मचारी बताते हैं कि वर्ष 2016 से लेकर अकेले नागौर जिले में दिल में छेद के करीब 330 बच्चों के ऑपरेशन कराए जा चुके हैं। तालू, मुड़े पैर समेत 172 ऑपरेशन भी हो चुके हैं। ऐसे में स्कूल में पढऩे वाले बच्चों के सामान्य रोग पकडऩे की परम्परा पर ही ब्रेक सा लग गया है।

परिजन तक लापरवाह

बताया जाता है कि राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत भी कई बच्चों के दिल में छेद होने के बावजूद भी परिजन टालमटोल करते रहते हैं। फ्री में होने वाले इस ऑपरेशन के लिए भी परिजन टालते रहते हैं। कई बार कहते हैं कि बाद में करा लेंगे तो कई बार बोलते हैं कि अभी तो कोई परेशानी नहीं है, बाद में देखेंगे। इस तरह बीस फीसदी बच्चों का ऑपरेशन तक समय पर नहीं हो रहा है।

इनका कहना

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत दिल में छेद समेत दो-तीन गंभीर बीमारियों का मुफ्त इलाज/ऑपरेशन होता है। जागरूकता की कमी कहें या लापरवाही, कुछ अभिभावक इसे भी गंभीरता से नहीं लेते।

-डॉ शुभकरण धोलिया, नोडल इंचार्ज, बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम नागौर

०००००००००००००००००००००००००० स्वास्थ्य परीक्षण होता तो है, बीमारियां भी चिन्हित की जाती हैं।

-मुंशी खान, सीडीइओ, नागौर