
kinnar akhada
दीक्षांत हिन्दुस्तानी @ लाडनूं . 'न ही मैं नर हूं न मैं नारी विवश हूं, मूक हूं, मगर पत्थर नहीं' यह पंक्तियां किन्नर समुदाय पर सटीक बैठती है। आज के वैज्ञानिक युग में भी समाज की संकीर्ण विचारधारा के चलते समाज का ही एक हिस्सा होते हुए भी ये अलग थलग होकर हाशिए पर जीने को मजबूर हैं। प्रतिभाशाली होने के बावजूद मुख्यधारा से दूर है। उन्हें न अपने सपने साकार करने अवसर मिल रहा, न समानता का भाव।
लाडनूं की गौरी बाई उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद पारंपरिक काम से हटकर अपनी शिक्षा के अनुकूल कोई कार्य नहीं कर पा रही। गौरी फे्रंच व इंग्लिश की जानकार होने के साथ एमकॉम, एमएसडब्लू व होटल मैनेजमेंट कोर्स किए हुए हैं। भावुक स्वरों में वह कहती है कि मुझे सिर्फ किन्नर होने के कारण कोई जॉब नहीं देता। इसमें मेरा क्या दोष? वहीं खुशबू अपनी सुंदरता के चलते 2012 में मुंबई में इंडियन सुपर क्वीन का खिताब ले चुकी है। मॉडलिंग में अभिनेत्री जीनत अमान व शेलिना जेटली उन्हें यह अवार्ड दिया। गौरी भी 2015 में मिस राजस्थान का खिताब जीत चुकी। उन्हें हैंडीक्राफ्ट के कार्यो में भी दक्षता है। लेकिन न चाहते हुए भी इन्हें ‘दुआएं’ बांटकर पेट भरना पड़ रहा है।
गौरी और खुशबू बताती हैं कि पारंपरिक काम में भी किन्नरों को लेकर कई मनगढ़ंत बातें प्रचलित है, जो उनकी छवि पर विपरीत असर डालती है। मौत पर चप्पलों से मारने की अफवाह है, जबकि उन्हें ससम्मान समाधि दी जाती है। घरों से बच्चों को उठा ले जाने का आरोप भी इन पर लगता है। कुछेक नकली किन्नरों के व्यवहार का दोष भी हम पर आता। इसी कारण आमजन हमें लेकर डरता है, गलत सोचता है। जबकि हम सामान्य मानव की तरह हैं, हमारी भी भावनाएं है।
किन्नर क्यों बजाते हैं ताली
उन्होंने बताया कि वो विशेष प्रकार से 3 ताली बजाते हैं। यह ताली सैंकड़ों की भीड़ में उनकी पहचान बताने का तरीका है। घरों में जाने पर पहली ताली सूचनात्मक होती है कि हम आ गए हैं, दूसरी ताली बुरी हवा/आत्मा को दूर जाने के लिए व तीसरी ताली परिवार में खुशहाली आने के संकेत लिए होती है। जब पूछा गया कि आप पैसों के लिए अड़ क्यों जाते हैं तो सहज भाव में बताया कि हमारा जीवन लोगों के सहयोग से चलता है। यह हमारा वाजिब हक है। हम सदैव परिवार के स्तर को ध्यान में रखकर ही मांगते हैं, उसका हिस्सा भी कोई जरुतमंद मिल जाए तो उसे दे देते हैं।
क्या, कैसे व क्यों होते हैं किन्नर
सामान्यत: मानव पुरुष व स्त्री प्रकृति का होता है, लेकिन जब इन दोनों रूपों में से किसी एक में भी पूर्ण विकसित नहीं हो पाता तो उसे मध्यलिंगी, किन्नर अथवा ट्रांसजेंडर नाम से जाना जाता है। विज्ञान के अनुसार गुणसूत्रीय व हार्मोनल विकृति से ऐसा होता है। आयुर्वेद के अनुसार रज व वीर्य के बराबर होने से ऐसा होता है। वहीं धार्मिक मान्यताओं में ब्रम्हा की छाया से इनका निर्माण माना गया है। मुख्यत: नर व मादा दोनों रूप में किन्नर देखने को मिलते है।
दुख में भी देते हैं साथ
लोगों का मानना है कि किन्नर सिर्फ खुशी के मौके पर आ कर बधाई ले जाते हैं। जबकि खुशबू बताती हैं कि हम सभी को अपने परिवार की तरह मानते हंै। समाज के दुख दर्द में शामिल होने से भी पीछे नहीं हटते। इससे बड़ी बात क्या होगी कि जो समाज जीवन यापन के लिए दूसरों पर निर्भर है, लेकिन कोविड काल में इन्होंने भी दूसरों के माध्यम से पर्दे के पीछे रहते हुए सेवा कार्य किया।
नकली किन्नर करते बदनाम
वे बताते हैं कि पैसे कमाने के उद्देश्य से आज असली से अधिक नकली किन्नरों की बाढ़ आ रखी है। जो न केवल पैसे ठगते हैं बल्कि आमजन को परेशान भी करते हैं। इनके कारण असली किन्नरों को बदनाम होना पड़ता है। नकली किन्नरों को अबुआ कहा जाता है। जो सामान्यत: पुरूष होते हैं, लेकिन महिला वस्त्र धारण कर गलत कार्य करते हैं।
किन्नर गुरु परंपरा का करते हैं निर्वहन
किन्नरों के हर क्षेत्र में अपने गद्दीपति होते हैं। जो इनके गुरु के निर्देश से रहते हैं। नए किन्नरों को आश्रय देकर शिष्य के रूप में रखते हैं। किन्नर समाज का अपना अखाड़ा है। इनके सम्मेलन होते हैं। अब सरकार व कोर्ट के साथ विभिन्न एनजीओ इन्हें समाज की मुख्यधारा में जोडऩे का प्रयास कर रहे हंै। किन्नरों के अधिकारों को लेकर कानून बनाए जा रहे हैं। देश में 2011 की जनगणना के मुताबिक 4.9 लाख किन्नर हैं। जिनमें से 1 लाख 37 हजार उत्तरप्रदेश में है। नागौर जिले में भी किन्नरों की हवेली है, जिसमें रागिनी बाई गुरु के रूप में रहती है। गुरु की मान्यता परिवार से भी अधिक है, क्योंकि जीवनभर यही इनको संरक्षण देते हैं।
सर्वधर्म सद्भाव में रखते विश्वास
यह समुदाय जन्म से भले ही किसी वर्ग विशेष से ताल्लुक रखता हो मगर किन्नर समुदाय में शामिल होने के बाद सिर्फ ‘बाई’ शब्द नाम के आगे लगाते हैं। फिर भले वो हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या किसी भी सम्प्रदाय से क्यों न हो। सभी त्योहारों को इच्छानुसार मनाते हैं। पत्रिका टीम जब तेली रोड स्थित इनके घर 'आशियाना' पहुचीं तो स्वच्छता व सुंदरता के साथ यहां लगे पौधे, तोते, स्वनिर्मित हैंडीक्राफ्ट सहित साई बाबा के विशेष मन्दिर को देखते रह गई। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन सुबह 4 बजे उठकर नित्य सुबह शाम ईश आराधना करते हैं। खुशबू बाई तो गुरुवार को पूरे दिन भक्ति में व्यतीत करती है।
Published on:
28 Jun 2021 10:19 am
बड़ी खबरें
View Allनागौर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
