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जुमातुल विदा पर उमड़े नमाजी

रमजान के आखिरी जुम्मे की नमाज अदा

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babulal tak

Jun 23, 2017

रमजानुल मुबारक के आखिरी जुम्मा को जुमातुल विदा के रूप में मनाया गया। इस मौके पर शहर की सभी मस्जिदों में मुस्लिम समुदाय के हजारों लोगों ने आखिरी जुम्मे को विदा करते हुए नमाज अदा की। इस दौरान मुल्क में अमन-चैन और तरक्की की दुआएं मांगी गई।
इस मौके पर मुस्लिमजनों ने एक-दूसरे को गले लगाकर जुम्मे की मुबारकबाद दी। शुक्रवार को रमजान के जुमातुल विदा के कारण शहर में मुस्लिम समुदाय में उत्साह का माहौल देखा गया। आखिरी जुम्मा होने के कारण सभी मस्जिदें नमाजियों से पूरी तरह भर गई।
नमाज से पूर्व मौलानाओं ने तकरीरें एवं खुतबे का भी बयान किया। किला मस्जिद में हाफिज सैयद लियाकत अली अशरफी ने ‘अलविदा’ पढी। इस मौके पर खुतबा पढ़ा गया, जिसे लोगों ने खामोशी से सुना। इसके बाद पुरानी ईदगाह में शहरकाजी रेहान उसमानी, जामा मस्जिद में मौलाना अब्दुल रशीद, कचहरी वाली मस्जिद में हाफिज मोहम्मद अखलाक, किला मस्जिद में मौलाना वसीमुद्दीन, लाहोटियों वाली मस्जिद में मौलाना अब्बास अली खान, सिलावटों की मस्जिद में हाफिज आलमगीर, मरकज मस्जिद में मौलाना मूसा, गौसिया मस्जिद में हाफिज अजमल नागौरी, न्यारियों की मस्जिद में मौलाना इकबाल फैजानी, लुहारों की मस्जिद में मौलाना मिन्हाजुल इस्लाम, कटला मस्जिद में सैयद अताऊर्रहमान, दारिया मस्जिद में मौलाना मंसूर आलम, मस्जिद आले रसूल में मौलाना सरफराज, मुस्तफा मस्जिद में मौलाना उमर, मदीना मस्जिद में मौलाना अब्दुल सलाम, हमीद कॉलोनी में मौलाना सलीम शेरानी, बेगाना कॉलोनी मस्जिद में मौलाना फरीद आलम, नागौर फाटक के बाहर मस्जिद में मौलाना कुर्बान ने जुम्मे की नमाज अदा करवाई। नमाज के बाद मुसलमानों ने एक दूसरे को गले लगाकर मुबारकबाद दी।

अल्लाह से सीधा ताल्लुक कराती है नमाज

डीडवाना. एक मुसलमान के लिए नमाज की अहमियत सबसे ज्यादा है। इस्लाम के पांच रूकन (अनिवार्य) बातों में नमाज सबसे अहम है। नमाज खुदा से बंदे का सीधा ताल्लुक कायम करने, हर भेदभाव को खत्म करने, लोगों में एकता और भाईचारा को कायम करने, बुराई से रोकने और एक जाजम पर आकर अल्लाह की इबादत करने का जरिया है।
मस्जिद सैयदान के पेश इमाम मौलाना वसीमुद्दीन ने नमाज की अहमियत बयान करते हुए कहा कि मुसलमानों के लिए नमाज की इतनी ज्यादा अहमियत है कि वह सब कुछ छोड़ सकता है, लेकिन नमाज को नहीं छोड़ सकता। बंदा नमाज से हमेशा जुड़ा रहे और वह इसे कभी भी नहीं भूलें। इसके लिए अल्लाह ने अजान की शक्ल में एक ताकतवर जरिया दिया है। अजान के जरिए नमाज का वक्त होने पर मुसलमानों को इत्तला दी जाती है कि नमाज का वक्त हो गया, ताकि हर कोई जान ले कि नमाज का वक्त हो गया है। अजान एक प्रकार से यह ऐलान है कि अल्लाह के बंदे अपना सब काम छोडक़र नमाज के लिए मस्जिद में आ जाएं, क्योंकि यही उसकी कामयाबी और मगफिरत का रास्ता है।

नमाज में अल्लाह के सामने पेश होने से पहले हर मुसलमान को ‘वुजू’ करना होता है, जिसमें वह अपने शरीर के कुछ अंगों को तय तरीके से धोकर साफ करता है। ‘वुजू’ के बिना नमाज नहीं हो सकती। ‘वुजू’ एक मुसलमान को जिस्मानी और दिमागी तौर पर अल्लाह के सामने पेश होने के लिए तैयार करती है।
रमजान के महीने में नमाज की अहमियत और बढ जाती है, क्योंकि इस मुबारक महीने में नफील नमाजों का सवाब फर्जों के बराबर अता किया जाता है। और एक फर्ज का सवाब 70 गुना बढ़ा दिया जाता है। रमजान में ही तरावीह की खास नमाज भी होती है। इसके अलावा पांच शबे कद्र की रातों में भी खास इबादतें नमाज की शक्ल में होती है।