रायधनु के संस्था प्रधान अर्जुनराम जाजड़ा ने किया था ड्रेस कोड प्रयोग, खुद के प्रयासों व नवाचारों से विद्यालय का बदल दिया परिदृृश्य
नागौर. राजकीय शिक्षण संस्थानों के कई संस्था प्रधान ड्रेस कोड के प्रबल समर्थक होने के साथ ही संस्था प्रधानों व शिक्षकों, दोनों के ही इसमें होने के हिमायती हैं। ऐसे संस्था प्रधानों का कहना है कि ड्रेस कोड में शिक्षक व संस्था प्रधान आए तो फिर निश्चित रूप से न केवल विद्यालय का वातावरण बदलेगा, बल्कि बच्चों को भी एक आदर्श विद्यालय में आने का एहसास भी होने लगेगा। ऐसे ही संस्था प्रधानों में से एक हैं राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय रायधनु के संस्था प्रधान अर्जुनराम जाजड़ा। वर्ष 2016 में चार अक्टूबर को विद्यालय में पदभार ग्रहण किया। उस समय बच्चों की संख्या कम होने के साथ ही विद्यालय भी अव्यवस्थित था। इसके बाद उन्होंने विद्यालय के स्टॉफ के साथ मिलकर नागौर के सांसद व उपभोक्ता एवं खाद्य व सार्वजनिक वितरण मंत्री सी. आर. चौधरी व नागौर विधायक हबीबुर्रहमान से मुलाकात कर एक-एक कक्षा-कक्ष का निर्माण कराया। इसके अलावा भामााशाहों के सहयोग से चार कमरे, विद्यालय के खेल मैदान का समतलीकरण, प्याऊ के लिए वाटर फिल्टर, फर्नीचर आदि की व्यवस्थाएं की। रमसा के सहयोग से विद्यालय का कलर कराने के साथ ही कई शैक्षिक श्लोगन विविध प्रकार की डिजाइनों में अंकित कराए गए।
शिक्षकों ने कहा कि पैसे नहीं हैं
संस्था प्रधान अर्जुनराम जाजड़ा ने वर्ष 2017 में ही विद्यालय में संस्था प्रधान व शिक्षकों को ड्रेस कोड में आने के लिए आग्रह किया। जाजड़ा का कहना था कि इससे विद्यालय के वातावरण बदलने के साथ ही बच्चों को भी एक बेहतर स्कूल में आने का अहसास होगा। विद्यालय के दो शिक्षकों को छोड़कर शेष सभी ने अपनी-अपनी ड्रेसें भी बनवा ली, और उसी में विद्यालय आने भी लगे। इनमें से दो शिक्षकों ने बहानेबाजी करते हुए कहा कि उनके पास ड्रेस सिलवाने के पैसे नहीं हैं। निजी शिक्षण संस्थानों की अपेक्षा कई गुना अधिक वेतन पाने वाले अध्यापकों के इस जवाब की उम्मीद कोई नहीं थी। फिलहाल इन दोनों के कारण, ही बाद में विद्यालय के अन्य शिक्षक भी पुरानी वेशभूषा में आ गए।
प्रधानाचार्य कहिन...
प्रधानाचार्य अर्जुनराम जाजड़ा का कहना है कि ड्रेस कोड का तो राजकीय विद्यालयों में अनिवार्य रूप से प्रावधान होना चाहिए। विद्यालय में आने वाले बच्चों से ही शिक्षकों का अस्तित्व है। यदि विद्यालयों में बच्चे ही नहीं रहेंगे तो फिर शिक्षकों का स्कूल में क्या काम होगा? शिक्षकों की ओर से यह बात नहीं समझने के कारण ही विभाग को नामांकन अभियान चलाना पड़ रहा है।