
नागौर. राजस्थान सहित देश के हर राज्य के साथ विदेशों में भी राजस्थानी भाषा बोली और पढ़ी जाती है। राजस्थानी के शब्दकोष में ढाई लाख शब्द हैं और यह करोड़ों लोगों की भाषा है। अचरज की बात तो यह है कि राजस्थानी को नेपाल में संवैधानिक दर्जा है, जबकि अमरिका के हाउस ऑफ कांग्रेस (संसद भवन) में राजस्थानी भाषा को विदेशी भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है।
साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने भी राजस्थानी भाषा को अन्य भाषाओं के समकक्ष मान्यता दे रखी है तथा राजस्थानी भाषा के अनेक साहित्यकारों को मान्यता प्राप्त अन्य भाषा के रचनाकारों के समान ही पुरस्कृत किया जाता रहा है। इन सब के बावजूद हमारी केन्द्र सरकार ने राजस्थानी को अब तक संवैधानिक मान्यता नहीं दी है।
राज्य सरकार की ओर से केन्द्र सरकार को लिखे गए अद्र्धशासकीय पत्रों में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने के लिए कई प्रकार की जानकारियों के साथ सिफारिश की गई है, लेकिन केन्द्र सरकार ने आंख खोलकर पत्रों को देखा भी नहीं, यही वजह है कि आज भी राजस्थानी भाषा अपने ही घर में बेगानी है।
गौरतलब है कि भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में और भाषाओं को शामिल करने एवं वस्तुनिष्ठ मानदण्ड तैयार करने के लिए श्री सीताकान्त महापात्र की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिशों में राजस्थानी को संवैधानिक दर्जा देने के लिए पात्र बताया गया था, लेकिन उनकी सिफारिशें अब भी गृह मंत्रालय में विचाराधीन हैं।
व्यापक एवं सुसमृद्ध भाषा
राज्य सरकार के अनुसार वीरभूमि, राजस्थान प्राचीन, पौराणिक व धार्मिक गौरवशाली विरासत का पर्याय है। राजस्थान की भाषा भी समृद्ध है और यह प्राचीन ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत की स्वामिनी है। इस भाषा की प्रकृति साहित्यिक है और इसका विपुल साहित्य उपलब्ध है। राजस्थानी भाषा में विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली बोलियां यथा- हाड़ौती, वागड़ी,मेवाती, ढूंढाडी, मारवाड़ी, मालवी, शेखावाटी व बृज (पिंगल) आदि शामिल हैं। सरकार ने बताया कि राजस्थानी भाषा स्वयं में व्यापक एवं सुसमृद्ध भाषा है और इस पर विदेशों में भी शोध कार्य हो रहे हैं। राजस्थान के प्रवासी नागरिक देश-विदेश में स्थाई रूप से चले गए हैं, लेकिन वहां पर भी उनके सामाजिक परिवेश को यथावत रखने में राजस्थानी उनकी मायड़ भाषा के तौर पर आज भी उन्हें सम्बल प्रदान करती है। वे देश-विदेश में राजस्थान की संस्कृति, सभ्यता एवं गौरवशाली परम्परा को राजस्थानी भाषा के माध्यम से अद्यतन, निरन्तर जीवन्त रखे हुए हैं।
राजस्थानी का खुद का व्याकरण
राजस्थानी भाषा स्वतंत्र विशाल तथा विविध प्रकार के साहित्यिक स्वरूपों से सम्पन्न भाषा है। इसका अपना व्याकरण है। इस तथ्य को विश्व के प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिकों, विद्वानों तथा साहित्यकारों ने सहर्ष स्वीकार किया है। विख्यात इतिहास ग्रंथों व ज्ञान कोषों में इसकी विशिष्टता दर्शाई गई है। यह गुजरात, पंजाब, हरियाणा और मध्यप्रदेश के साथ-साथ पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में भी बोली जाती है।
90 सालों से चल रहे प्रयास
सरकार ने बताया कि राज्य की जनता तथा जनप्रतिनिधियों ने सन 1930 से ही अपनी मातृभाषा राजस्थानी के उन्नयन के लिए जनतांत्रिक रूप से सक्रिय प्रयास प्रारम्भ कर दिए थे। दीनाजपुर (वर्तमान बांग्लादेश) में आयोजित अखिल भारतीय राजस्थानी सम्मेलन के भाषण आज भी महत्वपूर्ण हैं। संसद के दोनों सदनों व प्रदेश की विधानसभा में भी सांसदों व विधायकों ने इसके पक्ष में निरन्तर आवाज उठाई है।
केन्द्र नहीं देती तो राज्य सरकार बनाए राजभाषा
राजस्थानी भाषा का समृद्ध साहित्य भण्डार और वृहद शब्दकोश उपलब्ध होने के बावजूद संवैधानिक मान्यता नहीं मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके लिए लम्बे अरसे से मांग की जा रही है। किसी भी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कर संवैधानिक मान्यता प्रदान करने का अधिकार केन्द्र सरकार के पास है, लेकिन अनुच्छेद 345-346 के तहत कोई भी राज्य सरकार अपनी स्थानीय भाषा को राजभाषा का दर्जा दे सकती है। अगर राजस्थान सरकार इसे राजभाषा का दर्जा देती है तो न केवल राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति को संरक्षण मिलेगा, अपितु आठवीं अनुसूची में मान्यता की राह में भी यह एक मजबूत आधार साबित होगा।
- प्रहलाद सिंह झोरड़ा, प्रदेश महामंत्री, राजस्थानी मोट्यार परिषद
अब केंद्र बैकफुट पर क्यों
जब सीताकांत महापात्र कमेटी ने 38 भाषा में से तीन को मान्यता की हकदार माना, जिसमें राजस्थानी शामिल रही है। वर्ष 2019 में जब केंद्र सरकार ने राजस्थानी की मान्यता के लिए पांच सदस्यीय दल से केबिनेट नोट भी तैयार करवा लिया तो अब केंद्र बैकफुट पर क्यों है? यह समझ से परे है। नई शिक्षा नीति-2020 के अनुसार प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा माध्यम बनाया गया है। राज्य सरकार भी इसे जल्द राजभाषा का दर्जा प्रदान कर मान्यता की पैरवी मजबूती से करे।
- डॉ. रामरतन लटियाल, उप प्राचार्य एवं विषय विशेषज्ञ, राजस्थानी भाषा, मेड़ता
Published on:
17 Apr 2023 11:49 am
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