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भगवान की भक्ति के लिए समर्पण आवश्यक

Nagaur. संत जानकीदास ने समझाई भक्ति की महत्ता

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Surrender is necessary for devotion to God

Nagaur. Sant Janaki Das delivering a discourse on Bhagwat Katha at Ramdwara Bakhtsagar Keshavdas Maharaj Garden

नागौर. रामद्वारा बख्तसागर केशवदास महाराज बगीची में भागवत कथा पर प्रवचन करते हुए संत जानकी दास ने कहा कि संसार में सभी आकार माया से बने हुए हैं। संसार के किसी भी आकार के साथ प्रेम करने पर मन में विकार आता है । भगवान की भक्ति करने वाला ही वासना का विनाश कर सकता है। भगवत कृपा के बिना भक्ति के बिना सूक्ष्म वासना का विनाश नहीं होता है। बाहर का संसार किसी को दुख नहीं देता। जो संसार मन में है वह दुख देता है। घर छोड़ कर के जंगल में जाने से तुरन्त भगवान का दर्शन नहीं होता। कहीं भी जाने पर माया भी पीछे आती है। संयम को धीमी गति से बढ़ाने का कार्य करना चाहिए। बहुत से लोग भक्ति के लिए अनुकूलता की तलाश करते हैं। सभी प्रकार की अनुकूलता कभी नहीं हो सकती है। इसलिए प्रतिकूलता में ही भक्ति करनी होगी। भगवान के सिवा किसी को मन में रखने पर दुख ही प्राप्त होता है। संसार जब मन में आता है तो दुख भी आता है। इसके लिए सावधानी रखनी पड़ेगी। संसार रूपी समुद्र को पार करने के लिए भक्ति के प्रति समर्पित होना पड़ेगा। एक बार समर्पित हो गए और भक्ति करने लगे तो फिर ईश्वर का एहसास भी होने लगेगा। भक्ति में रमने पर फिर ईश्वर के सिवा कुछ भी नजर नहीं आता है, लेकिन भक्ति करनी पड़ेगी। मन में अर्चन के दौरान भी संसार की समस्याओं का आना यह बताता है कि आप भक्ति को कर ही नहीं रहे। भक्ति का अर्थ है कि भगवान एवं भक्त के मध्यम फिर कुछ नजर नहीं आना चाहिए। केवल भगवान ही नजर आने चाहिए, तभी भक्ति सफल हो सकती है। इसमें कालूराम बोराणा ,बाबूलाल भाटी, सत्यनारायण सेन ,अक्षय कुमार, धनराज रांकावत, किशोरराम चौधरी आदि मौजूद थे।