बिना शिक्षकों के सरकारी कॉलेज संचालित, कई जगह ताला खोलने वाला नहीं, नए शिक्षा सत्र की प्रवेश प्रक्रिया शुरू, लेकिन सरकार ने कॉलेजों में नहीं लगाए प्रोफेसर
नागौर. जिले के सरकारी कॉलेजों में 61 फीसदी से अधिक शिक्षकों के पद रिक्त हैं। पिछले पांच साल में खुले कॉलेजों में 90 फीसदी पद रिक्त हैं। जिले में कुल 15 सरकारी कॉलेज हैं, जिनमें से छह कॉलेज ऐसे हैं, जहां शैक्षणिक एवं अशैक्षणिक वर्ग के सभी पद रिक्त हैं, यहां ताला खोलने वाला भी कोई नहीं है। मतलब विद्यार्थियों को साफ संदेश है कि वे प्रवेश लेकर भूल जाएं और केवल परीक्षा देने आएं, उत्तीर्ण हुए तो ठीक, नहीं तो वापस परीक्षा दे दो। शिक्षा विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार की शिक्षा पाकर बच्चे कैसे सफल हो पाएंगे।
नागौर जिले में कॉलेजों की स्थिति
कुल सरकारी कॉलेज - 15
स्वीकृत शैक्षणिक पद प्राचार्य सहित - 242
कार्यरत - 86
रिक्त - 148
जीरो पोस्टिंग वाले विषय - 74
अशैक्षणिक पदों की स्थिति
स्वीकृत - 224
कार्यरत - 43
रिक्त - 181
विद्यार्थियों की संख्या
छात्र - 4519
छात्राएं - 6499
कुल - 11,018
इन कॉलेजों में एक भी शिक्षक व कर्मचारी नहीं
जिले में खींवसर के कन्या महाविद्यालय, पांचला सिद्धा कन्या महाविद्यालय, राजकीय महाविद्यालय खजवाना, मेड़ता विधानसभा में संचालित राजकीय महाविद्यालय रियांबड़ी, राजकीय महाविद्यालय गोटन, डेगाना विधानसभा में संचालित राजकीय कन्या महाविद्यालय डेगना में अब तक न तो शैक्षणिक स्टाफ लगाया गया है और न ही अशैक्षणिक स्टाफ। ये सभी महाविद्यालय राजसेस की ओर से संचालित हो रहे हैं। इसी प्रकार राजकीय कन्या महाविद्यालय मेड़ता व राजकीय महाविद्यालय कुचेरा में एक-एक शैक्षणिक पद भरा हुआ है।
बिना शिक्षकों के कॉलेज किस काम के
ग्रामीण क्षेत्र की कॉलेजों में प्रवेश ले चुके विद्यार्थियों ने पत्रिका को बताया कि सरकार ने युवाओं को राजी करने के लिए गांवों में कॉलेज तो खोल दिए, लेकिन उनमें पांच साल बाद भी शैक्षणिक स्टाफ नहीं लगाया, ऐसे कॉलेज किस काम के, जहां एक भी स्थाई शिक्षक नहीं हो। नए सत्र के लिए प्रवेश प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, लेकिन सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र के कॉलेजों में इस बार भी शिक्षकों के पद नहीं भरे हैं। ऐसे में छात्रों का भविष्य क्या होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
एक्सपर्ट व्यू : उच्च शिक्षा का उड़ रहा मखौल
पिछले आठ-दस साल में नागौर सहित प्रदेश में जहां-जहां नए सरकारी कॉलेज खोले गए हैं, वहां शैक्षणिक कार्य पूरी तरह ठप है। कॉलेज केवल परीक्षा केन्द्र बन कर रह गए हैं। जिस उद्देश्य से कॉलेज खोले गए, वो कहीं पूरा होता नजर नहीं रहा है और न ही सरकार इसको लेकर गंभीर है। गरीबी में आटा गीला वाली स्थिति तब हो गई, जब सरकार ने नई शिक्षा नीति के तहत सेमेस्टर व्यवस्था लागू की। उसका भी मखौल उड़ रहा है। दरअसल, यह व्यवस्था वहां लागू होती है, जहां शैक्षणिक एवं अशैक्षणिक स्टाफ पूरा हो, लेकिन सरकारी कॉलेजों में स्टाफ के अभाव में शैक्षणिक स्टाफ को अशैक्षणिक स्टाफ का काम करना पड़ रहा है। बच्चों की पढ़ाई से किसी को लेना देना नहीं है। जब तक सरकार कॉलेजों में शैक्षणिक पदों को नहीं भरेगी, तब तक उच्च शिक्षा का ढांचा सुधरना मुश्किल है।
- डॉ. शंकरलाल जाखड़, पूर्व प्राचार्य, बीआर मिर्धा कॉलेज, नागौर