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पिपरिया की लाल तुअर दाल को जीआई टैग दिलाने की कोशिशें

नर्मदापुरम जिले के पिपरिया की उत्पादित लाल तुअर दाल को जीआई टैग यानी भौगोलिक संकतक का दर्जा दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं। गुरुवार को पिपरिया मंडी में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत संभागीय कार्यशाला हुई।

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पिपरिया की लाल तुअर दाल को जीआई टैग दिलाने की कोशिशें

पिपरिया की लाल तुअर दाल को जीआई टैग दिलाने की कोशिशें

नर्मदापुरम. जिले के पिपरिया की उत्पादित लाल तुअर दाल को जीआई टैग यानी भौगोलिक संकतक का दर्जा दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं। गुरुवार को पिपरिया मंडी में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत संभागीय कार्यशाला हुई। कृषि संयुक्त संचालक बीएल बिलैया ने कहा कि जीआई टैग यहां की प्रसिद्ध तुअर दाल को कानूनी संरक्षण प्रदान करेगा। इससे दाम बढ़ेंगे और किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। कार्यशाला में कृषि उप संचालक जेआर हेडाऊ ने भी जानकारी दी। इसमें बैतूल के उप संचालक आरजी रजक,तीनो जिलों से आये कृषि वैज्ञानिक, जीआई टैग / पेटेन्ट विशेषज्ञ बलराम सिंह, जिला दिशा निगरानी समिति सदस्य अरविन्द राय, ग्रेन सीड एण्ड दाल मर्चेन्ट एसोसिएशन. के उपाध्यक्ष मनोहर दूदानी, नगर व्यापारी संघ के अध्यक्ष गोपाल गांगूला, युवा व्यापारी संघ के सचिव संजीव नवीरा तथा जिला हरदा बैतूल और नर्मदापुरम के र उत्पादक किसान बन्धु उपस्थित रहे।

इसलिए देश में ख्याति है यहां की दाल की
उपसंचालक हेडाऊ ने बताया कि पिपरिया की लाल तुअर अपने मिठास युक्त स्वाद, विशेष सुगंध, खाना पकाने की गुणवत्ता व लाल रंग जैसे विशेष गुणों के कारण अनेक वर्षो से देश में ख्याति प्राप्त है। इसकी गरिमा को बनाये रखने व क्षेत्र के किसानों को उपज के अच्छे दाम दिलाने हेतु जीआई टैग अर्जित करने के प्रयास जारी है। दुनिया भर में प्रसिद्ध करने की एक कानूनी कवायद है को पूरा किया जा रहा है, ताकि पिपरिया लाल तुअर की प्रतिष्ठा संरक्षित व सुरक्षित रह सके। बताया कि जीआई टैग को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता है। गुणवत्ता विशेषता के साथ साथ जीआई टैग होने से दाल के अच्छे दाम मिलेंगे।

जुटा रहे एतिहासिक दस्तावेज
पिपरिया क्षेत्र के किसानों और दाल प्रसंस्करणकर्ता व्यापारियों से आग्रह किया है कि यह क्षेत्र में आदिकाल से उगाई जा लाल तुअर से संबंधित कोई भी जानकारी जैसे कोई एतिहासिक दस्तावेज परम्परापरागत पद्धतिया कोई फोटो, लोकोक्तियां/ मुहावरे, पत्राचार, पत्रिका या अन्य कोई भी एतिहासिक जानकारी यदि उपलब्ध हो तो उसे कृषि विभाग / कृषि वैज्ञानिक के साथ जरूर साझा कर सहयोग प्रदान करें।