
सतपुड़ा के जंगलों में छिपा है यह अद्भुत नागलोक, साल में एक बार मिलता है यहां जाने का मौका
होशंगााबाद (गोविंद चौहान). क्या आप जानते हैं मप्र की हिल स्टेशन पचमढ़ी के घने जंगलों के बीच छिपा है एक नागलोक। जहां हल साल नागपंचमी पर प्रसिद्ध नागद्वारी मेला लगता है। दुर्गम रास्ते और बारिश में पैदल 18 घंटे चलना किसी चुनौती से कम नहीं है फिर भी यहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं और प्राकृतिक छटा के बीच इस दुर्गम यात्रा को पूरा कर नागलोक पहुंचते हैं। लेकिन इस वर्ष बारिश ने भक्तों की नागलोग की यात्रा पर संकट के बादल खड़े कर दिए हैं। क्योंकि दुर्गम पहाडियों के बीच अमरनाथ की यात्रा की तरह सैर सपाटे वाली नागद्वारी यात्रा भी पूरी तरह से बारिश पर निर्भर होती है। इस वर्ष अवर्षा के चलते मेला अवधि को प्रशासन दो बार आगे बढ़ा चुका है।
साल में एक बार ही मिलता है मौका : नागद्वारी मेला जहां आयोजित होता है वह क्षेत्र सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इसलिए यहां सालभर आना-जाना प्रतिबंधित रहता है। रिजर्व फारेस्ट प्रबंधन यहां जाने वाले रास्ते को बंद कर देता है। इसलिए साल में सिर्फ एक बार ही नागद्वारी की यात्रा और दर्शन का मौका मिलता है। हर साल नाग पंचमी पर यहां एक मेला होता है. जिसमें शामिल होने लोग कई किलोमीटर चलकर यहां पहुंचते हैं. सावन माह में नागपंचमी के 10 दिन पहले से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के भक्तों का आना प्रारंभ हो जाता है. यह मेला नागपंचमी तक चलता है।
इसलिए कहलाता है नागलोक : जिस तरह पृथ्वी के नीचे सात लोक समाए हुए हैं उसी तरह यहां भी सतपुड़ा जंगलों के बीच बनी चिंतामणि गुफा मौजूद है. यह गुफा करीब 100 फीट लंबी है. इस गुफा में नागदेव की अनेकों मूर्तियां हैं. यहां पहुंचने के बाद हर तरफ नागदेव की मूर्तियों के ही दर्शन होते हैं। इसलिए इसे नागलोक कहा जाता है। इसके नजदीक ही है स्वर्ग द्वार। यहां भी नागदेव की ही मूर्तियां हैं। इतना ही नहीं ऊबडख़ाबड़ पहाड़ों और दुर्गम रास्तों के बीच जब भक्त नागद्वारी की यात्रा करते हैं तो रास्ते में कई बार श्रद्धालुओं का सामना विभिन्न प्रजाति के सांपों से भी हो जाता है, लेकिन भोलेनाथ की ऐसी कृपा रहती है कि यह सांप भक्तों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. सुबह से श्रद्धालु नाग देवता के दर्शन के लिए निकलते हैं. 12 किमी की पैदल पहाड़ी यात्रा पूरी कर लौटने में भक्तों को दो दिन लगते हैं.
दशकों से जारी है यात्रा : ऐसा माना जाता है कि नागद्वारी मंदिर की इस धार्मिक यात्रा को 100 साल से ज्यादा हो गए हैं. लोग पीढिय़ों से मंदिर में नाग देवता के दर्शन करने के लिए आ रहे हैं. जानकारी अनुसार सबसे पहले 1959 में चौरागढ़ महादेव ट्रस्ट बना था उसके बाद 1999 में महादेव मेला समिति का गठन हुआ. हर वर्ष श्रावण माह में यह मेला आयोजित होता है। हर साल यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में पहुंचती है।
अमरनाथ जैसी है यह यात्रा: बाबा अमरनाथ और नागद्वारी की यात्रा सावन मास में ही होती है. बाबा अमरनाथ की यात्रा के लिए ऊंचे हिमालयों से होकर गुजरना होता है जबकि नागद्वारी की यात्रा सतपुड़ा की घनी व ऊंची पहाडिय़ों में सर्पाकार पगडंडियों से पूरी होती है. दोनों ही यात्राओं में भोले के भक्तों को धर्म लाभ के साथ ही प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य के दर्शन होते हैं. नागद्वारी की यात्रा भी अमरनाथ की ही तरह दुर्गम होती है जो भक्तों को अमरनाथ यात्रा की याद दिला देती है।
ये हैं प्रचलित मान्यताएं: नागद्वारी यात्रा को लेकर कुछ मान्यताएं प्रचलित हैं। इनमें पहाडिय़ों पर सर्पाकार पगडंडियों से नागद्वारी की कठिन यात्रा पूरी करने से कालसर्प दोष दूर होता है. वहीं नागद्वारी में गोविंदगिरी पहाड़ी पर मुख्य गुफा में शिवलिंग में काजल लगाने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसके आलावा और भी कई मान्यताएं हैं जो नागद्वारी की इस दुर्गम यात्रा को श्रद्धा्लुओं के बीच लोकप्रिय बनाती है। जिसके चलते साल-दर-साल श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जाती है।
Published on:
29 Jul 2019 03:30 pm
बड़ी खबरें
View Allहोशंगाबाद
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
