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सृष्टि के रचियता ब्रह्मा ने की थी यहां नर्मदा के आंचल में तपस्या

बरमान में नर्मदा के आंचल में स्थित स्वर्ण पर्वत पर स्वयं ब्रह्मा ने की थी दीपेश्वर महादेव की स्थापना

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Ajay Khare

Jan 04, 2017

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अजय खरे@ नरसिंहपुर। संपूर्ण भारत में सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का एकमात्र मंदिर पुष्कर में है यह बात सभी धर्मपरायण लोग जानते हैं पर ब्रह्मा ने तपस्या कहां की यह बात कम ही लोगों को पता है। यह पवित्र स्थान मां नर्मदा के आंचल में नरसिंहपुर के बरमान में एक टापू पर है जिसे स्वर्ण पर्वत कहा जाता है। यहां तैरकर या नाव के सहारे ही पहुंचा जा सकता है। श्रद्धालुओं के लिए इस स्थान का विशेष धार्मिक महत्व है।

टापू पर बना है मंदिर
जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर बरमान में नर्मदा की धारा पर एक टापू के बीच है वह स्थान जिसे ब्रह्मा की तपस्थली माना जाता है। यहां बना दीपेश्वर महादेव का भव्य और दिव्य मंदिर इस बात की गवाही देता है कि हजारों -हजार साल पहले आदिकाल में ब्रह्मा ने मां नर्मदा के आंचल में ध्यानस्थ होकर अपने आराध्य देव दीपेश्वर महादेव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी। ब्रह्मा की तपस्थली पर बना यह मंदिर ब्रह्मा के आराध्य भगवान शिव के रूप दीपेश्वर महादेव को समर्पित है।ऐसी मान्यता है कि स्वयं ब्रह्मा ने दीपेश्वर महादेव की स्थापना कर उनकी पूजा अर्चना की थी। दीपेश्वर महादेव को गुरुओं का गुरु माना गया है। कहा जाता है कि सूर्य देव सहित अन्य सिद्ध ऋषि मुनियों ने भी उनकी पूजा अर्चना की है।

नर्मदा नदी करती है परिक्रमा
यह मंदिर नदी की दो धाराओं के बीच एक टापू पर स्थित है नदी की दोनों धाराओं का प्रवाह इसकी परिक्रमा करता प्रतीत होता है। टापू पर स्थित यह मंदिर प्राकृतिक रूप से मनोहारी है। बारिश के दिनों में मां नर्मदा जब अपने पूरे वेग के साथ बहती हैं तो दूर से मंदिर का दर्शन और भी आकर्षक होता है। बाढ़ की स्थिति में नर्मदा जल स्वयं दीपेश्वर महादेव का अभिषेक करता है।

सूरजकुंड के जल से अभिषेक का है विशेष महत्व
ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि और मकर संक्रांति जैसे पर्वों पर दीपेश्वर महादेव का सूरजकुंड के जल से अभिषेक करने पर श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मान्यता अनुसार लोग सूरजकुंड में स्नान कर वहां से जल लाकर महादेव का अभिषेक करते हैं।

ओंकारेश्वर की तरह है महत्व,स्वर्ण पर्वत कहा गया है टापू को
इस टापू को स्वर्ण पर्वत की संज्ञा दी गई है। पंचकोषी परिक्रमा में इसे ओंकारेश्वर की तरह महत्व दिया जाता है। बताया गया है कि टापू पर बने मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढिय़ां बनाई गई थीं जो कुछ साल पहले तक नजर आती थीं पर लगातार साल-दर-साल उन पर मिट्टी जमा होते जाने से सीढिय़ां पुर गई हैं। अब श्रद्धालु मिट्टी पर बने कच्चे मार्ग से होकर ऊपर तक पहुंचते हंै जहां काफी आगे सीसी रोड मिलती है।दीपेश्वर मंदिर के पास ही इन दिनों श्रीराम भक्त हनुमान की विशाल प्रतिमा तैयार की जा रही है। पवनपुत्र की यह प्रतिमा अभय मुद्रा में हैं और काफी दूर से उनके दर्शन होने लगते हैं।

स्वर्ण पर्वत से नजर आता है विहंगम दृश्य
धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस स्वर्ण पर्वत से मां नर्मदा का अत्यंत मनोहारी और विशाल रूप नजर आता है। मीलों दूर तक नर्मदा का प्रवाह और प्राकृतिक संरचनाएं श्रद्धालुओं को आनंदित करती हैं। नर्मदा जल के स्पर्श से शीतल हवाओं के बीच यहां से बरमान के दोनों घाट और उनके तट पर स्थित मंदिर, नदी में चलती नाव के नजारे देखने योग्य होते हैं। सूर्यास्त के समय मां शारदा मंदिर के पीछे से सूर्य के सप्तरंगी प्रकाश का प्रकीर्णन मां नर्मदा का संध्या वंदन करता प्रतीत होता है।

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