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बस नहीं तो हाथ से चली जाती है दिहाड़ी

बस नहीं तो हाथ से चली जाती है दिहाड़ी,महंगा और असुरक्षित भी होता है मालवाहकों में सफ र गांवों के तय रूट पर बस चलाने में नहीं दिखाई आपरेटरों ने रुचि

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Without a bus

Without a bus

Without a bus, daily wages are lost

जिले के ग्रामीण अंचलों में आज भी सुरक्षित और सुलभ यात्री परिवहन एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। गांवों के लिए तय किए गए कई रूटों पर बसों का संचालन नहीं होने से ग्रामीणों को मजबूरी में ऑटो, ट्रैक्टर.ट्रॉली और मालवाहक वाहनों से सफ र करना पड़ रहा है। यह सफ र न सिर्फ महंगा साबित हो रहा है, बल्कि जान जोखिम में डालने जैसा भी है। हालात ऐसे हैं कि यदि समय पर साधन न मिले तो ग्रामीणों की दिहाड़ी तक हाथ से निकल जाती है।


बसें नहीं, मजबूरी में दूसरे साधन


नरसिंहपुर से करताज और कपूरी जैसे गांवों के लिए बस सुविधा नहीं है। इसी तरह करेली से बीतली खुलरी, करहैया, सगौरिया, कुसमी सहित आधा दर्जन गांवों तक बसें नहीं चलतीं। करेली से रांकई पिपरिया, रांकई, भुगवारा, बघुवार और बसेंड़ी जैसे गांवों के लिए भी बस सेवा उपलब्ध नहीं है। ऐसे में ग्रामीणों को मजबूरी में मालवाहक या आटो वाहनों में ठसाठस भरकर सफ र करना पड़ता है। बीतली गांव के एक युवक तीरथ पटेल कहते हैं कि गांव तक बस की सुविधा नहीं है। यदि मजदूरी या फिर किसी अन्य कार्य शहर जाना हो तो सिर्फ एक आटो सुबह जाता है और शाम को लौटता है। उसी का सहारा लेना पड़ता है। इसी प्रकार एक अन्य गांव सड़ूमर के ग्रामीण रामकुमार लोधी कहते हैं कि आटो सुबह देर से जाता है और शाम को जल्द वापस लौटता है ऐसे में मजदूरी करने का समय ही नहीं मिला पाते हैं। लिहाजा स्थानीय स्तर पर ही काम ढूंढना पड़ता है। करहैया गांव के राजेंद्र दुबे की पीड़ा भी यही है कि उनके गांव में बस की सुविधा नही है। यदि किसी को इलाज के लिए करेली या गाडरवारा ले जाना हो तो निजी वाहनों का सहारा लेना मजबूरी है।


कागजों में सिमटी योजना


ग्रामीण क्षेत्रों तक यात्री परिवहन को आसान बनाने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री ग्रामीण सडक़ परिवहन योजना शुरू की गई थी लेकिन यह योजना बस आपरेटरों के लिए घाटे का सौदा साबित हुई। नतीजतन गांवों के लिए तय किए गए रूटों पर वाहन चलाने में आपरेटरों ने रुचि नहीं दिखाई और योजना कागजों तक सीमित रह गई।


डेढ़ दर्जन रूट, एक भी आवेदन नहीं


जानकारी के अनुसार पिछले वर्षो में शुरू की गई मुख्यमंत्री ग्रामीण सडक़ परिवहन योजना के तहत जिले में करीब डेढ़ दर्जन ग्रामीण रूट चिन्हित किए गए थे। इन रूटों पर 3 से 4 पहिए वाले यात्री वाहन, जैसे बस, कार और ऑटो 5 से 10 सीट क्षमता को परमिट देकर संचालन का प्रावधान था। बावजूद इसकेए किसी भी रूट पर एक भी आपरेटर ने परमिट के लिए आवेदन नहीं कियाए जिससे इन रूटों पर यात्री परिवहन शुरू नहीं हो सका।


पीछे हटे आपरेटर


बस आपरेटर एसोसिएशन नरसिंहपुर के यूनियन मेंबर गिरीश होतवानी का कहना है कि योजना के तहत दिए जाने वाले परमिट में वाहन को केवल संबंधित ग्रामीण क्षेत्र तक ही सीमित रखा गया था। शहर या जिला मुख्यालय तक वाहन लाने.ले जाने की अनुमति नहीं थी। गांवों में सालभर एक जैसी सवारियां नहीं मिलतीं, जबकि वाहनों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे में फ ाइनेंस पर लिए गए वाहन की किश्त निकालना भी मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि ग्रामीण रूटों पर वाहन चलाना व्यवहारिक नहीं हो सका।नतीजन योजना के धरातल पर न उतर पाने का खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। सुरक्षित बस सेवा के अभाव में आज भी लोग जान जोखिम में डालकर मालवाहक वाहनों से सफ र करने को मजबूर हैं।