अजय खरे।नरसिंहपुर। विशेष स्वाद और सुगंध की वजह से पूरे देश में प्रसिद्ध अरहर दाल के उत्पादन में नरसिंहपुर पूरे प्रदेश में प्रथम नंबर पर है। दालों के अच्छे दाम और किसानों के रुझान से जिले में इसकी उत्पादकता 20.00 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच गई है। अरहर की दाल उच्च क्वालिटी के प्रोटीन के लिए पहचानी जाती है, लेकिन नर्मदा कछार की मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व और निर्मल जल इसे विशेष पहचान देता है।
प्रदेश में अरहर दाल का सर्वाधिक उत्पादन
मध्यप्रदेश में अरहर की दाल का सर्वाधिक उत्पादन नरसिंहपुर जिले में होता है। जिसमें गाडरवारा, चावरपाठा, चीचली, साईंखेड़ा, नरसिंहपुर प्रमुख दाल उत्पादक क्षेत्र हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा उत्पादन चावरपाठा में होता है। पूरे देश में यहां की अरहर दाल की ब्रांडिंग और मार्केटिंग गाडरवारा की दाल के नाम से है।
नर्मदा ने दिया दालों को खास स्वाद
दालों का खास स्वाद यहां से गुजरने वाली नर्मदा नदी के कारण है। नर्मदा कछार की उपजाऊ मिट्टी और पानी यहां की दालों को अधिक पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाता है। जिसकी वजह से यहां पैदा होने वाली दालों की मांग पूरे देश में तो है ही इसके अलावा विदेशों में रहने वाले भी गाडरवारा की दालों के स्वाद के दीवाने हैं।
पहले था सोयाबीन जिला अब बना दाल का कटोरा
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार पांच साल पहले तक यह सोयाबीन जिला था। प्रदेश में सोयाबीन की खेती सबसे पहले मालवा और नरसिंहपुर में शुरू की गई थी। जिले के खेती योग्य 3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 1990 से 2012-13 तक यहां बड़ी मात्रा में सोयाबीन पैदा किया जाता था। जिसका रकबा करीब 1.5 लाख हेक्टेयर तक था। जबकि अरहर का क्षेत्र 35 हजार हेक्टेयर था। अब सोयाबीन का रकबा काफी कम हो चुका है ओर अरहर का क्षेत्र बढ़कर 69 हजार 200 हेक्टेयर हो गया है।
ये हैं यहां की खास किस्म की दालें
यहां की जिन दालों की मांग सबसे ज्यादा है वे हैं टीजेटी-501,आईसीपीएल-87,88039,आशा और लक्ष्मी। जो तैयार होने में क्रमश: 150,180,140,200 और 180 दिन लेती हैं। इनमें सबसे ज्यादा उत्पादकता आशा किस्म की अरहर की है।
नेचुरल प्रोसेस से बढ़ता है स्वाद, एक अरब का कारोबार
यहां की अरहर (तुवर) दाल का विशेष स्वाद दो कारणों से है पहला नर्मदा नदी के कछार की उर्वरता और दूसरा इसकी नेचुरल तरीके से प्रोसेसिंग। दालों को सरसों का तेल लगाकर 8 से 10 दिन तक रखते हैं जिससे उसका छिलका स्वत: उतर जाता है। जिसके बाद हल्का पानी लगाकर धूप में सुखाते हैं जिससे दाना अपने आप फूट जाता है। इस प्रकार की दाल प्राकृतिक गुणों से भरपूर होती है जिसे 'पटकाÓ के नाम से पहचाना जाता है। इसकी पूरे देश में मांग रहती है। नरसिंहपुर में दाल का कारोबार करीब एक अरब का है।
प्रमोद चौकसे गे्रन मर्चेंट एंड दाल मिलर्स एसोसिएशन के सचिव और प्रमुख दाल कारोबारी
इनका कहना है
कृषि वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में यह पाया है कि इसका विशेष स्वाद नर्मदा नदी के कछार की उर्वरा शक्ति व उसके पानी के कारण है। यहां की दाल न सिर्फ जल्दी पकती है बल्कि इसका दाना भी अन्य क्षेत्रों की दाल के मुकाबले बड़ा होता है।