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समाज व्यवस्था को समझने के लिए अर्धनारीश्वर सबसे बड़ा सिद्धांत: गुलाब कोठारी

पत्रिका के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चंद्र कुलिश की जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में पत्रिका समूह की ओर से बेंगलूरु में आयोजित ‘स्त्री : देह से आगे’ विषय विवेचन कार्यक्रम में अपनी बात रखी।

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पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी

पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी

पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी (Editor-in-Chief of Patrika Group- Gulab Kothari) ने कहा कि समाज व्यवस्था को समझने के लिए अर्धनारीश्वर (Ardhanarishwar) सबसे बड़ा सिद्धांत हैं। हर पुरुष में आधा स्त्री और हर स्त्री में आधा पुरुष है। इसलिए, उसमें परिपक्वता तभी आएगी, जब दोनों हिस्सों का संतुलित विकास होगा। दुर्भाग्य से करियर को प्राथमिकता देने वाली आधुनिक शिक्षा में इसे नजरअंदाज किया जा रहा है। मातृत्व शक्ति को जागृत करने से ही संस्कृति की जड़ को सींचने का रास्ता खुलेगा।

पत्रिका के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चंद्र कुलिश की जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में पत्रिका समूह की ओर से बेंगलूरु में दो दिवसीय चिंतन शृंखला में गुरुवार को सी.बी. भंडारी जैन कॉलेज में आयोजित ‘स्त्री : देह से आगे’ विषय विवेचन कार्यक्रम में महिलाओं, युवतियों और छात्राओं को संबोधित करते हुए गुलाब कोठारी ने कहा कि यह जिंदगी की जरूरी बातें हैं, जो दिखाई तो नहीं देतीं पर समझ में आती हैं।

उन्होंने कहा कि सृष्टि में पुरुष एक ही है और वह ईश्वर है। ब्रह्मांड में कोई दूसरा पुरुष नहीं है। विज्ञान भी कहता है कि हर व्यक्ति आधा पुरुष और आधा स्त्री है। अगर एक भाग कमजोर है और दूसरा भाग शक्तिशाली, तो संतुलन बिगड़ जाएगा। घरों में पुरुष के आधे भाग की पूरी परवरिश हो रही है। पौरुष का हिस्सा एकांगी भाव से बढ़ता जाता है, जबकि दूसरा, स्त्री वाला भाग नहीं बढ़ता।

असंतुलित व्यक्तित्व विकास से बढ़ रही आक्रामकता

उन्होंने कहा कि जिंदगी के धरातल पर जितने विषय हैं, उनकी अनदेखी कर केवल व्यापार और नौकरी का पाठ पढ़ाया जा रहा है। इससे लड़के का पुरुष भाग भारी होता जाता है, लेकिन दूसरा भाग जो माया, ममता और करुणा है, अपूर्ण रह जाता है। लड़कियों की भी यही स्थिति है। उन्हेंं भी वही पढ़ाया जाता है, जो लड़कों को पढ़ाया जा रहा है।

इससे उनमें लड़कों का आधा भाग भारी हो जाता है। मां-बेटी को वही सिखाना चाहती है जो बेटे को सिखा रही है। उसके आधे भाग का पोषण खत्म हो गया है। लड़कियों की भूमिका पर, उनकी शिक्षा पर कोई चर्चा नहीं होती। इसलिए आज समाज जिस मोड़ पर खड़ा है वहां लड़का भीतर से स्त्रैण नहीं है और उसकी आक्रामकता बढ़ गई है। यह बढ़ी हुई आक्रामकता ही समाज के लिए खतरा है।

बुद्धि में अहंकार है, संवेदना नहीं

उन्होंने कहा कि जो लड़कों की लड़ाई है, वहीं लड़कियों की भी लड़ाई है। क्योंकि, दोनों शरीर को भूल गए हैं। दिमाग के ऊपर जिंदगी आकर टिक गई है। यह जिंदगी केवल आक्रामकता ही नहीं बढ़ा रही है। बुद्धि का एक दुर्गुण यह है कि इसमें अहंकार छिपा होता है। बुद्धि केवल तटस्थ भाव से काम करती है। इससे दोनों में संवेदनहीनता बढ़ गई है। क्योंकि बुद्धि में संवेदना नहीं है, मिठास नहीं है। जिसमें मिठास भरी है, वह मन है। जब इस दृष्टि से वापस मुड़कर देखें तो लड़का कोई सपना नहीं देखता, सिवाय करियर के।