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Bihar Polls: NDA को चुनाव में बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं ये मुद्दे, जानें किन बातों को लेकर मजबूत पड़ रहा महागठबंधन?

बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर है। एनडीए में भाजपा, जदयू और अन्य दल शामिल हैं, जबकि महागठबंधन में राजद, कांग्रेस और वाम दल हैं। सीट बंटवारे को लेकर महागठबंधन में खींचतान जारी है। दोनों गठबंधनों की ताकत और कमजोरियों का विश्लेषण करना आवश्यक है।

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पटना

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Mukul Kumar

Oct 06, 2025

NDA vs महागठबंधन। (फोटो- IANS)

बिहार में विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। इसको लेकर एनडीए और महागठबंधन ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की सूची भी लगभग तैयार कर ली है। जबकि महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है।

इस बीच, रैलियों में एनडीए और महागठबंधन के नेता तमाम मुद्दों को लेकर एक दूसरे को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। बता दें कि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ऐसे कई मजबूत और कमजोर पक्ष हैं, जो बिहार में एनडीए-महागठबंधन की हार-जीत का फैसला कर सकते हैं। तो आइये उन पक्षों पर नजर डालें।

कहां कमजोर पड़ रहा एनडीए?

  • बिहार चुनाव में एनडीए की सफलता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि पर टिकी है, लेकिन उनका स्वास्थ्य गिर रहा है। बीते कुछ दिनों में नीतीश की गतिविधियों ने उनके मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
  • कई कार्यक्रमों में नीतीश को अजीब व्यवहार करते हुए देखा गया है। जिसको लेकर राजद नेता तेजस्वी यादव ने तो यह तक कह दिया है कि नीतीश कुमार अब सरकार चलाने की स्थिति में नहीं हैं। दूसरी तरफ, भाजपा के पास बिहर में कोई मजबूत स्थानीय चेहरा नहीं है। इससे चुनाव में बुरा असर दिखने की संभावना है।
  • सीट बंटवारे पर जदयू, भाजपा, लोजपा (रामविलास), हम और अन्य सहयोगियों के बीच तनाव भी एक कमजोर पक्ष है। इससे भी चुनाव में फर्क पड़ सकता है।
  • जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर ने बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और मंत्री अशोक चौधरी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने दोनों के खिलाफ कई सबूत भी पेश किए हैं। जिससे एनडीए की छवि को नुकसान पहुंचने की उम्मीद है।
  • बिहार में रोजगार को लेकर लाखों युवा पलायन कर रहे। टीचर भर्ती में धांधली का आरोप भी एनडीए के लिए विधानसभा चुनाव में मुसीबत खड़ी कर सकती है।
  • वहीं, एनडीए के कई विधायकों को लेकर क्षेत्र में नाराजगी है। ऐसे में एनडीए के लिए यह चुनाव कई मायनों में चुनौतीपूर्ण होगा।
  • इसके अलावा, बीजेपी में गुटबाजी और 20 साल की सत्ता से थकान बिहार की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन गया है। इस बार के विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा काफी महत्वपूर्ण हो सकता है।

एनडीए के लिए मजबूत पक्ष

  • एनडीए सरकार की महिलाओं के लिए योजनाएं, जैसे 10,000 रुपये की डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) योजना और जीविका दीदी ने महिला मतदाताओं में गहरी पैठ बनाई है। यह योजना बिहार में महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए शुरू की गई है। इससे एनडीए को फायदा मिल सकता है।
  • भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मजबूत संगठन, बूथ-स्तरीय कार्यकर्ता, और केंद्रीय नेतृत्व (नरेंद्र मोदी-अमित शाह) का प्रभाव बिहार में एनडीए को मजबूती देता है। केंद्र की योजनाएं जैसे उज्ज्वला, आयुष्मान भारत, और पीएम-किसान बिहार में लोकप्रिय हैं। यह चुनाव में अच्छा प्रभाव डाल सकते हैं।
  • एनडीए का पारंपरिक वोट बैंक ऊपरी जातियां (भूमिहार, राजपूत), वैश्य और कुछ EBC समुदाय (कुर्मी, कोइरी) मजबूत है। इसके अलावा, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के साथ दलित (पासवान) वोट और जितन राम मांझी की हम के साथ कुछ दलित उप-जातियों का समर्थन एनडीए को फायदा देता है।
  • पीएम मोदी की बिहार के लिए बड़ी घोषणा भी एनडीए के लिए कारगर साबित हो सकती है। बिहार के युवाओं को टारगेट करते हुए अब विद्यार्थियों के लिए स्कॉलरशिप भी 1,800 से बढ़ाकर 3,600 की गई है।
  • 'मुख्यमंत्री निश्चय स्वयं सहायता भत्ता' योजना का शुभारंभ हुआ है, जिसके तहत दो साल के लिए 5 लाख स्नातकों को एक हजार रुपये का मासिक भत्ता मिलेगा।

कहां कमजोर पड़ रहा महागठबंधन?

  • महागठबंधन में सीट शेयरिंग पर गंभीर विवाद है। कांग्रेस 2020 के फॉर्मूले पर सवाल उठा रही है, जबकि आरजेडी कांग्रेस को कम सीटें देने का दबाव बना रहा है।
  • वाम दलों (सीपीआई और सीपीएम) ने कुल 35 सीटें (सीपीआई 24, सीपीएम 11) मांगी हैं, जो गठबंधन में दरार पैदा कर रहा है।
  • तेजस्वी यादव की अपरिपक्व छवि और परिवारवाद के आरोप महागठबंधन को नुकसान पहुंचा रहे हैं। कांग्रेस और वाम दलों में तेजस्वी के नेतृत्व पर असंतोष है।
  • रैलियों के दौरान पीएम मोदी की मां पर अपमानजनक टिप्पणी और 'ब से बीड़ी' और 'बिहार' का मामला महागठबंधन के लिए घातक साबित हो सकता है।
  • प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी महागठबंधन के वोट काट सकती है, विशेष रूप से युवा और ईबीसी वर्ग में। बसपा का उभार भी महागठबंधन के दलित वोटों को प्रभावित कर सकता है।
  • महागठबंधन की गारंटियां (जैसे महिलाओं को 2,500 रुपये मासिक, 25 लाख तक मुफ्त इलाज) अच्छी हैं, लेकिन एनडीए की डीबीटी (10,000 रुपये) और केंद्र की योजनाएं अधिक प्रभावी हैं।

महागठबंधन का मजबूत पक्ष

  • MY समीकरण महागठबंधन को 70-80 सीटों पर मजबूत बनाता है, खासकर मगध, सीमांचल और मिथिलांचल जैसे क्षेत्रों में। अगर यह वोट बैंक 80 प्रतिशत से अधिक एकजुट रहा, तो महागठबंधन 100+ सीटें जीत सकता है।
  • तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी और शिक्षा जैसे मुद्दों को जोर-शोर से उठाया है। उनकी "बेरोजगारी हटाओ यात्रा" और सरकारी नौकरी के वादे (10 लाख नौकरियां) युवाओं में लोकप्रिय हैं।
  • CPI, CPM और CPI-ML का ग्रामीण और मजदूर वर्ग में मजबूत आधार है, खासकर सीमांचल और मगध क्षेत्रों में। CPI-ML की 2020 में 12 सीटों की जीत ने इसे मजबूत सहयोगी बनाया है।
  • महागठबंधन ने एनडीए के नेताओं, जैसे सम्राट चौधरी और अशोक चौधरी पर भ्रष्टाचार के आरोपों को जोर-शोर से उठाया है। 'वोट चोरी' का मुद्दा (वोटर लिस्ट विवाद) भी महागठबंधन के लिए नैरेटिव बना रहा है।