
भाजपा नेता अमित मालवीय (फोटो-IANS)
BJP नेता और आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय (Amit Malviya) ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त शहाबुद्दीन याकूब कुरैशी (Former CEC SY Qureshi) पर हमला बोला है। मालवीय ने कुरैशी के नेपाल (Nepal) में हुए उग्र आंदोलन को जीवंत लोकतंत्र बताने को आश्चर्यजनक करार दिया है। उन्होंने कहा कि पूर्व CEC के कार्यकाल को देखते हुए उन्हें नेपाल का उग्र आंदोलन आश्चर्यजनक नहीं लगा होगा।
मालवीय ने एक्स पर लिखा कि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने नेपाल में हाल की घटनाओं को अराजकता नहीं बल्कि जीवंत लोकतंत्र का संकेत बताया है, लेकिन उनके रिकॉर्ड को देखते हुए यह टिप्पणी आश्चर्यजनक नहीं है। उन्होंने कहा कि कुरैशी के CEC रहते हुए भारत के चुनाव आयोग ने इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स के साथ एक MOU साइन किया था, जो जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि यह डीप स्टेट संस्था है और कांग्रेस पार्टी की सहयोगी है।
अमित मालवीय ने कहा कि इससे भी बुरी बात यह है कि एक बातचीत के दौरान कुरैशी ने खुद स्वीकार किया था कि 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद एक 'बड़े नेता' ने उन्हें फोन करके शिकायत की थी कि आपने हमारे बोगस वोटर्स को वोट देने नहीं दिया।
उन्होंने आगे कहा, "उस समय कुरैशी चुनाव आयुक्तों में से एक थे और समाजवादी पार्टी, जो अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के लिए कुख्यात है, सत्ता में थी, लेकिन चुनाव हार गई। अगर कुरैशी को यह पता था, तो उन्होंने इन सालों में इस नेता को क्यों बचाया? क्या समाजवादी पार्टी 'वोट चोरी' कर रही थी? यह नेता कौन था? यह एक बड़ा सवाल उठाता है, अगर कुरैशी को मतदाता सूची में स्थानांतरित, अनुपस्थित और मृत वोटरों के बारे में पता था, तो उन्होंने कभी विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) का आदेश क्यों नहीं दिया? वे 2006-2010 तक चुनाव आयुक्त और फिर 2010-2012 तक मुख्य चुनाव आयुक्त थे, यह उनका संवैधानिक कर्तव्य था कि वे कार्रवाई करते।
अमित मालवीय ने पूर्व चुनाव आयुक्तों पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, "वास्तव में, न तो उन्होंने और न ही उनके बाद आए लोगों, चाहे अशोक लावासा, ओपी रावत या अन्य, ने 2003 में आखिरी एसआईआर के बाद 23 सालों से अधिक समय तक हमारी समझौताग्रस्त मतदाता सूचियों को साफ करने के लिए कोई कदम उठाया? और फिर भी, यही लोग अब मीडिया में वर्तमान एसआईआर के 'जाने-माने' आलोचक बन गए हैं।"
उन्होंने आगे कहा कि यह न भूलें, उस समय मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अकेले प्रधानमंत्री द्वारा की जाती थी। आज, विपक्ष के नेता सहित तीन सदस्यीय पैनल यह निर्णय लेता है। पुराने लोग अपने पदों पर पूरी तरह से कांग्रेसी व्यवस्था की बदौलत हैं और यह साफ दिखाई देता है। अब इन कमजोर कार्यकालों को बेनकाब करने का समय आ गया है। जो लोग पहले अपना कर्तव्य निभाने का मौका गंवा चुके हैं, वे अब राष्ट्र को उपदेश नहीं दे सकते। विचारों का संघर्ष स्वागतयोग्य है, लेकिन जवाबदेही उनसे शुरू होनी चाहिए, जिनके पास मौका था और उन्होंने कुछ नहीं किया।"
स्रोत-IANS
Updated on:
16 Sept 2025 01:47 pm
Published on:
16 Sept 2025 01:24 pm
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