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बिहार चुनाव: कांग्रेस को बूस्ट-अप करने के लिए अशोक गहलोत की जादूगरी की परीक्षा, क्या ये दो नेता भी दे पाएंगे बूस्टर डोज

Congress Bihar Election Strategy: कांग्रेस ने बिहार चुनाव 2025 के लिए अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और अधीर रंजन चौधरी को पर्यवेक्षक नियुक्त किया है।

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भारत

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MI Zahir

Oct 12, 2025

Ashok Gehlot

राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (फोटो-पत्रिका)

Congress Bihar Election Strategy: बिहार में कांग्रेस चुनाव (Congress Bihar Election) प्रचार टीम को लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के टॉप लीडर राहुल गांधी ( Rahul Gandhi) के लीड करने के बावजूद कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए कांग्रेस के कद्दावर नेता और तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) को सीनियर ऑब्जर्वर नियुक्त किया है, जो एक महत्वपूर्ण कदम है। वे कांग्रेस अध्यक्ष पद के भी दावेदार थे। इधर गहलोत के साथ छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) और लोकसभा में कांग्रेस नेता रहे अधीर रंजन चौधरी (Adhir Ranjan Chowdhury ) को भी पर्यवेक्षक बनाया गया है। यह नियुक्ति इस बात का संकेत है कि कांग्रेस ने वरिष्ठ नेताओं की कद्र की है और उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां देने के लिए तैयार है।

गहलोत की जादूगरी का इतिहास

अशोक गहलोत को राजनीति का जादूगर कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने कई राज्यों में कांग्रेस को मजबूत बनाया। ध्यान रहे कि राजस्थान में 1998 के विधानसभा चुनाव में उनकी अगुवाई में कांग्रेस ने 153 सीटें जीतीं, जो लैंडस्लाइड जीत थी। 2018 में भी 99 सीटें हासिल कर सरकार बनाई। गुजरात 2017 में, जहां गहलोत AICC इंचार्ज थे, कांग्रेस ने 77 सीटें जीतीं—बीजेपी को 99 पर रोक दिया, जो मोदी-शाह के गढ़ में बड़ी उपलब्धि मानी गई। कर्नाटक 2018 में पोस्ट-पोल गठबंधन में उनकी भूमिका से जेडीएस के साथ मिल कर सरकार बनी। हिमाचल प्रदेश 2022 में गहलोत सीनियर ऑब्जर्वर थे, और कांग्रेस ने 40 सीटें जीतकर सरकार बनाई। वहीं सन 2022 राजस्थान राज्यसभा चुनाव में गहलोत ने 3 उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित की। इन आंकड़ों से साफ है कि गहलोत की रणनीति ने कांग्रेस को कई बार संकट से उबारा है।

बघेल और चौधरी की भूमिका

भूपेश बघेल को चुनाव प्रबंधन का उस्ताद माना जाता है। कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में 2018 के चुनाव में उनकी अगुवाई में 90 सीटें जीतीं, बीजेपी को 15 पर सिमटा दिया। वे बिहार में संगठन को मजबूत करने और ग्रामीण वोटरों को जोड़ने में मदद करेंगे।
बंगाल से ताल्लुक रखने वाले अधीर रंजन चौधरी हैं, प्रवासी बिहारियों को पार्टी की ओर लाने में कुशल हैं। उन्होंने 2019 लोकसभा में कांग्रेस को बंगाल में कुछ सीटें दिलाईं। बिहार में उनकी रणनीति शहरी और प्रवासी वोट बैंक पर फोकस करेगी। लेकिन चुनौती बड़ी है—कांग्रेस का वोट शेयर 2020 में 9.5% था, जबकि आरजेडी-बीजेपी गठबंधन ने 71% हासिल किया।

बिहार चुनाव की रणनीति

कांग्रेस ने नीतीश सरकार पर 'चार्जशीट' जारी कर भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और विकास की कमी को मुद्दा बनाया है। गहलोत बिहार में राहुल गांधी के नेतृत्व को मजबूत करेंगे। पार्टी का लक्ष्य 40-50 सीटें जीतना है, ताकि महागठबंधन में हिस्सेदारी बढ़े। गहलोत की जादूगरी ने गुजरात में 2017 में वोट शेयर 38% तक पहुंचाया (2012 के 38% से बेहतर), कर्नाटक में गठबंधन से 37% वोट से सरकार बनी। हिमाचल में 43% वोट शेयर से 40/68 सीटें मिलीं। लेकिन 2023 राजस्थान में कांग्रेस को 93 सीटें मिलीं, फिर भी सरकार गंवाई। बिहार में सफलता के लिए गठबंधन मजबूत रखना जरूरी है।

क्या बूस्टर डोज मिलेगी ?

कांग्रेस को उम्मीद है कि गहलोत, बघेल और चौधरी की तिकड़ी बिहार में पार्टी को नई दिशा दे सकती है। गहलोत ने गुजरात में बीजेपी को कड़ी टक्कर दी, जहां 2017 में कांग्रेस-गठबंधन ने 128 सीटें जीतीं। हिमाचल 2022 में कांग्रेस ने 40/68 सीटें हासिल कीं। लेकिन बिहार का समीकरण अलग है—जातिगत गणित और मोदी लहर। अगर ये नेता स्थानीय मुद्दों पर फोकस करें, तो कांग्रेस का वोट शेयर 15-20% तक पहुंच सकता है। अब देखना है कि गहलोत की जादूगरी बिहार की मिट्टी में उतरेगी या नहीं।

बिहार चुनाव में फायदा होने की उम्मीद

बहरहाल अशोक गहलोत की नियुक्ति से कांग्रेस को बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद मिल सकती है। गहलोत की जादूगरी और बघेल और अधीर रंजन की भूमिका से कांग्रेस को बिहार चुनाव में फायदा हो सकता है। अब देखना यह है कि गहलोत और उनकी टीम बिहार में कांग्रेस की नैया पार लगा पाते हैं या नहीं।