
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि महिलाओं को घरेलू हिंसा (Domestic Violence) से संरक्षण कानून (DV Act) के तहत साझा घर में रहने का पत्नी का अधिकार पूर्ण नहीं है। यदि पत्नी लाभकारी नौकरी करती है तो उसे ससुराल के साझा घर से बेदखल किया जा सकता है भले ही उस घर पर किसी का भी स्वामित्व हो। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा (Justice Neena Bansal Krishna) ने ससुराल के साझा घर से बेदखल की गई पत्नी की अपील खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता पत्नी एमबीए शिक्षित महिला है और कंपनी में काम करती है। साझा घर से बेदखल कर उसे असहाय नहीं छोड़ा गया है। अदालत ने कहा कि डीवी एक्ट की धारा 19 में बहू को साझा घर में रहना जारी रखने के अधिकार को मान्यता इन दो शर्तों के अधीन दी गई है, पहला कि उसे कानून के अनुसार बेदखल किया जाए तथा दूसरा कि उसे वैकल्पिक आवास (किराये के आवास सहित) दिया जाए।
पति-पत्नी के बीच कानूनी विवाद की पृष्ठभूमि में कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि अपीलकर्ता के बुज़ुर्ग ससुर के पास साझा घर का स्वामित्व है और उन्हें बुढ़ापे में उनके घर से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। इस मामले में महिला को बेघर नहीं छोड़ा गया बल्कि किराये का वैकल्पिक आवास उपलब्ध करवाया गया।
तिरुवनंतपुरम केरल हाईकोर्ट ने पत्नी की सहमति के बिना उसके स्त्रीधन में मिले गहनों को गिरवी रखने को अमानत में खयानत का अपराध मानते हुए पति को छह माह के कारावास और पांच लाख रुपए के जुर्माने का उचित ठहराया है। जस्टिस ए.बदरुद्दीन ने कहा कि इस मामले में आपराधिक विश्वासघात (आइपीसी की धारा 406) के सभी तत्व साबित होते हैं। इस मामले में अपीलकर्ता पति की पत्नी को अपनी मां से आभूषण मिले थे जिसे उसने पति को लॉकर में रखने को दिए थे। पति ने गहने लॉकर में रखने के बजाय पत्नी की सहमति के बिना गोल्ड लोन कंपनी में गिरवी रखकर कर्ज ले लिया। पति ने सैशन कोर्ट के छह माह की सजा और पांच लाख रुपए के जुर्माने की सजा को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
Updated on:
23 Oct 2024 09:06 am
Published on:
23 Oct 2024 08:30 am
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