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Govardhan Puja 2021: जानिए क्यों की जाती है गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा, क्या है इससे जुड़ी कहानी

Govardhan Puja 2021 ऐसा माना जाता है कि गोवर्धन पर्व के दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से मोक्ष प्राप्त होता है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा 21 किलोमीटर की है। इसके करने में औसतन 7 से 8 घंटे का वक्त लगता है। अन्नकूट के दिन हजारों श्रद्धालु गिरिराज की परिक्रमा करने आते हैं

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Dheeraj Sharma

Nov 01, 2021

Govardhan Puja

नई दिल्ली। दिवाली ( Diwali ) के अगले दिन सनातन धर्म में गोवेर्धन पूजा ( Govardhan Puja 2021 ) श्रद्धा पूर्वक मनाई जाती है। इस दिन सुबह घर के बहार गाय के गोबर से गोवर्धन बना कर पूजा की जाती है। दरअसल देश में गोवर्धन पूजा के पर्व को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है।

गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि देवी लक्ष्मी जिस तरह सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी तरह गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं।

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इसलिए की जाती है गोवर्धन की परिक्रमा
मान्यता है कि गोवर्धन की परिक्रमा करने से व्यक्ति को इच्छानुसार फल मिलता है। वल्लभ संप्रदाय में भगवान कृष्ण के उस स्वरूप की पूजा की जाती है, जिसमें उन्होंने गोवर्धन पर्वत उठा रखा है। ऐसी भी मान्‍यता है कि जो इच्‍छा मन में रखकर इस गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की जाती है, वह इच्‍छा जरूर पूरी होती है।

हिन्‍दू धर्म के लोगों का यह भी मानना है कि चारों धाम की यात्रा न कर सकने वाले लोगों को भी गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा जरूर करनी चाहिए।

ऐसा माना जाता है कि गोवर्धन पर्व के दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से मोक्ष प्राप्त होता है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा 21 किलोमीटर की है। इसके करने में औसतन 7 से 8 घंटे का वक्त लगता है। अन्नकूट के दिन हजारों श्रद्धालु गिरिराज की परिक्रमा करने आते हैं।

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गोवर्धन पूजा से जुड़ी कहानी
श्री कृष्ण ने देखा कि सभी बृजवासी इंद्र की पूजा कर रहे थे। जब उन्होंने अपनी मां को भी इंद्र की पूजा करते हुए देखा तो सवाल किया कि लोग इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? उन्हें बताया गया कि वह वर्षा करते हैं, जिससे अन्न की पैदावार होती और हमारी गायों को चारा मिलता है। फिर कृष्ण ने कहा ऐसा है तो सबको गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं।

कृष्ण की बात मानकर लोग गोवर्धन की पूजा करने लगे। बृजवासियों को ऐसा करता देख इंद्र नाराज हो गए और मूसलाधार वर्षा की, ताकि प्रलय आ जाए। लेकिन कृष्ण ने अपने हाथ की सबसे छोटी अंगूली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों की रक्षा की। यहां इंद्र का मान ( घमंड) भी टूटा और वहीं से गोवर्धन पूजा की शुरुआत भी हुई।