इसलिए कर रहे बढ़ोतरी
प्री-एग्जिस्टिंग कंडीशन यानी पहले से मौजूद बीमारियों के लिए इरडा ने अधिकतम वेटिंग पीरियड को 4 साल से घटाकर 3 साल कर दिया है। वेटिंग पीरियड का मतलब है कि यदि आप पहले से किसी बीमारी से पीडि़त हैं, तो बीमा क्लेम करने के लिए वेटिंग अवधि के खत्म होने तक इंतजार करना होगा। इन बीमारियों में हाई बीपी, मधुमेह, थायराइड आदि सभी शामिल हैं। साथ ही इरडा ने मोरेटोरियम पीरियड को भी 8 साल से घटाकर 5 साल कर दिया है। यानी 5 साल तक बीमा प्रीमियम जमा करने के बाद बीमा कंपनियां बीमारी की जानकारी छिपाने सहित किसी भी आधार पर क्लेम को रिजेक्ट नहीं कर सकती हैं। इससे बीमा कंपनियों को लग रहा है कि उनका रिस्क बढ़ जाएगा और अधिक लोगों के क्लेम देना होगा। इस वजह से कंपनियां प्रीमियम बढ़ा रही हैं।43 फीसदी पॉलिसीधारकों को क्लेम लेने में हुई परेशानी
लोकल सर्कल्स के सर्वेक्षण में पता चला कि करीब 43 प्रतिशत स्वास्थ्य बीमा पॉलिसीधारकों को क्लेम लेने में संघर्ष करना पड़ा। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले तीन वर्षों में देश में कई स्वास्थ्य बीमा दावों को या तो रिजेक्ट कर दिया गया है या आंशिक रूप से स्वीकृत किया गया है। कंपनियां पहले से बीमार होने का हवाला देकर क्लेम को खारिज कर दे रही हैं या क्लेम राशि पूरा देने की बजाय आधा अधूरा क्लेम ही दे रही हैं। साथ ही हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम पाने की प्रक्रिया में लंबा समय लगता है। इसके मरीजों को डिसचार्ज होने के लिए 10-12 घंटे इंतजार करना पड़ता है।यह है वजह
पॉलिसियों में दावों के लिए पात्रता आदि के बारे में पूरी जानकारी नहीं होना, तकनीकी शब्दजाल और जटिल शब्दों के उपयोग के कारण बीमा कॉन्ट्रैक्ट में अस्पष्टता, पहले से मौजूद बीमारी के कारण दावों का खारिज किया जाना आदि शामिल है। यह सर्वे देश के 302 जिलों में 39,000 लोगों पर किया गया।किस बीमा के क्लेम में परेशानी
बीमा हिस्सेदारीहेल्थ इंश्योरेंस 43 फीसदी
मोटर इंश्योरेंस 24 फीसदी
होम इंश्योरेंस 10 फीसदी