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वकालत के अनुभवी न्यायिक अधिकारी कैसे बन सकते हैं जिला जज, पढ़ लें सुप्रीम कोर्ट की पूरी गाइडलाइन

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि वकालत और मजिस्ट्रेट के सात साल के संयुक्त अनुभव वाले जूनियर जज सीधे जिला जज बनने के पात्र होंगे। कोर्ट ने पुराने फैसले को बदलते हुए हाईकोर्टों और राज्य सरकारों को नियमों में संशोधन करने के निर्देश दिए

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भारत

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Mukul Kumar

Oct 10, 2025

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कोर्ट। पत्रिका फाइल फोटो

सुप्रीम कोर्ट ने जूनियर न्यायिक अधिकारियों के लिए तरक्की की नई राह खोलते हुए गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि वकालत और मजिस्ट्रेट के सात साल के संयुक्त अनुभव वाले जूनियर जज सीधे जिला जज बनने के पात्र होंगे।

चीफ जस्टिस (सीजेआइ) बीआर गवई और जस्टिस एमएम सुंदरेश, अरविंद कुमार, सतीश चंद्र शर्मा और के. विनोद चंद्रन की पांच जजों की संविधान बेंच ने चार साल पुराने मामले में आदेश सुनाते हुए पुराने फैसले को बदल दिया।

जिसमें जिला जज पद पर सीधी भर्ती के लिए सात साल के वकालत क अनुभव वाले केवल वकील ही पात्र थे। बेंच ने इस फैसले के आधार पर हाईकोर्टों और राज्य सरकारों को तीन माह में नियमों में जरूरी संशोधन करने के भी निर्देश दिए।

बेंच ने कहा कि यह निर्णय आज से ही लागू होगा तथा पहले से पूरी हो चुकी प्रक्रियाओं या की गई नियुक्तियों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

केरल से संबंधित इस अपील में तीन जजों की बेंच ने मामला पांच जजों की संविधान बेंच को भेजने की सिफारिश की थी जिस पर तीन दिन लगातार सुनवाई के बाद संविधान बेंच ने फैसला सुरक्षित रखा था।

फैसले में ये गाइड लाइन

  • न्यायिक अधिकारी बनने से पहले सात साल के वकालत के अनुभव वाला व्यक्ति सीधे जिला जज बनने का पात्र होगा।
  • नियुक्ति के लिए पात्रता आवेदन के समय देखी जाएगी।
  • सेवारत न्यायिक अधिकारी सेवा के लिए सेवापूर्व वकालत और सेवा का कुल सात साल का संयुक्त अनुभव होने पर सीधे जिला जज बनने का पात्र होगा।
  • ऐसे अधिकारी की पात्रता के लिए अनुभव निरंतर होना चाहिए।
  • ऐसे अधिकारी की आवेदन के समय न्यूनतम आयु 35 साल होनी चाहिए।
  • हाईकोर्ट और राज्य सरकारें तीन माह में नियमों में जरूरी संशोधन करें।
  • पूर्व में हो चुकी भर्तियों में यह नियम लागू नहीं होगा।
  • वकीलों के लिए सीधी भर्ती में 25 फीसदी कोटे की मांग खारिज

पुरानी व्याख्या त्रुटिपूर्ण, सर्वश्रेष्ठ का हो चयन

सीजेआइ गवई और जस्टिस सुंदरेश ने अलग-अलग लेकिन एकमत के फैसले में कहा कि जिला जजों की सीधी नियुक्ति के बारे में संविधान के अनुच्छेद 233 की पिछली व्याख्या त्रुटिपूर्ण थी जिसमें केवल वकालत करने वाले वकीलों को ही पात्र माना गया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह प्रावधान वकीलों के लिए योग्यता निर्धारित करता है, लेकिन यह पहले से न्यायिक सेवा में कार्यरत लोगों पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाता।

संकीर्ण व्याख्या संविधान के कुछ हिस्सों को निरर्थक बना देगी और मेधावी न्यायिक अधिकारियों को वकीलों के साथ समान स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने से रोकेगी। किसी भी चयन प्रक्रिया का उद्देश्य नौकरी के लिए सर्वश्रेष्ठ और सबसे उपयुक्त व्यक्ति को चुनना होता है।