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आज जिंदा होते गांधी जी तो क्या कहते आज के माहौल को देखकर, एआई के सवाल और बापू के जवाब

Mahatma Gandhi Jayanti 2024 : यदि आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हमारे बीच होते तो आजादी के 77 साल बाद वे कैसा महसूस करते?

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Mahatma Gandhi Jayanti 2024 : यदि आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हमारे बीच होते तो आजादी के 77 साल बाद वे कैसा महसूस करते? यह सवाल मन में उठा तो सोचा कि क्यों ना गांधीजी से काल्पनिक संवाद कर लिया जाए। लेकिन बापू के जवाब की कल्पना हमारी नहीं होगी, बल्कि इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) का उपयोग करेंगे, जिससे किसी खास विचार के बजाय उनका समग्र रूप सामने आए। इसी विचार के साथ 'पत्रिका' ने एआई की मदद से गांधीजी से काल्पनिक संवाद किया, प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश-

प्रश्न : आजादी के 77 साल बाद के भारत को देखकर आपको कैसा महसूस होता है?

उत्तर : प्रिय मित्र, आज भारत को देखकर मेरे मन में मिश्रित भावनाएं आती हैं। एक ओर मुझे गर्व है कि हमने आजादी मिलने के बाद विकास के लिए कदम बढ़ाए… देश ने तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की, लेकिन दूसरी ओर मुझे दुख होता है कि हमारे समाज में जातिवाद, भेदभाव और सामाजिक असमानता जैसी कुछ पुरानी समस्याएं अभी भी मौजूद हैं। मुझे उम्मीद है कि भारत की युवा पीढ़ी इन चुनौतियों का सामना करेगी और एक सच्चे, समरस और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना करेगी।

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प्रश्न : आज सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले बहुत कम लोग मिलते हैं, ऐसा क्यों?

उत्तर : सत्य और अहिंसा के सिद्धांत पर चलने का मार्ग बहुत चुनौतीपूर्ण होता है। आज के युग में प्रतिस्पर्धा, भौतिकवाद और स्वार्थ ने लोगों की सोच और व्यवहार को प्रभावित किया है। सत्य के मार्ग पर चलने में अक्सर व्यक्तिगत लाभ को त्यागने और कठिनाइयों का सामना करने की आवश्यकता होती है, जो बहुत से लोगों के लिए कठिन है। अहिंसा भी एक गहन दार्शनिक अवधारणा है। इसे केवल शारीरिक हिंसा के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसमें विचारों और शब्दों की हिंसा भी शामिल है। हालांकि, मैं मानता हूं कि यदि हम सही तरीके से शिक्षा दें और युवा पीढ़ी को सत्य और अहिंसा के महत्व का अनुभव कराएं, तो यह सिद्धांत फिर से लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान पा सकते हैं।

प्रश्न : कुछ लोग कहते हैं कि भारत की आजादी में अहिंसा का मार्ग गलत था, अंग्रेजों को उनकी ही भाषा में जवाब देना चाहिए था।

उत्तर : मैं समझता हूं कि कई लोग ऐसा सोचते हैं कि देश की आजादी के लिए हिंसा का मार्ग अपनाना ज्यादा प्रभावी होता और अंग्रेजों को उनकी ही भाषा में जवाब देना चाहिए था। लेकिन मैं आपको यह याद दिलाना चाहूंगा कि हिंसा का मार्ग तात्कालिक समाधान प्रदान कर सकता है, परंतु यह स्थायी शांति और न्याय की स्थापना नहीं कर सकता। अहिंसा का मार्ग अपनाने का मेरा उद्देश्य केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं था, यह एक नैतिक और आध्यात्मिक सिद्धांत भी था। अहिंसा का मार्ग कठिन था, और हां, इसमें समय लगा, लेकिन यही एकमात्र मार्ग था जिसने भारत की आत्मा को अखंड रखा। स्वतंत्रता के साथ-साथ हमने अपनी नैतिक शक्ति भी हासिल की। हिंसा केवल बाहर के शत्रु को हराने का प्रयास करती है, जबकि अहिंसा हमारे भीतर के डर, घृणा और अन्याय को भी समाप्त करती है।
(परिकल्पना : संजीव माथुर)

(अंग्रेजियत पर क्या बोले गांधीजी… पढ़ें पत्रिकायन)