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‘शादी कागजों में रह जाए तो तलाक ही बेहतर’, जानें सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा

सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला देते हुए कहा कि यदि पति-पत्नी वर्षों से अलग रह रहे हों और वैवाहिक मुकदमे के कारण विवाह केवल कागजों तक सीमित रह गया हो, तो यह अपने आप में क्रूरता है।

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Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट (ANI)

Supreme Court on Divorce Petition: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए कहा कि यदि लंबे समय तक पति-पत्नी में चल रहे वैवाहिक मुकदमे के कारण विवाह कागजों में ही रह जाए और सुलह की उम्मीद न हो तो यह अपने आप में क्रूरता है। ऐसे विवाह की पवित्रता भंग हो जाती है और इसे समाप्त करना ही ठीक है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने संविधान के तहत मिली विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए उस दंपती का विवाह भंग कर दिया जो 24 साल से अलग रहकर मुकदमे लड़ रहे थे।

जस्टिस मनमोहन और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने पति की याचिका पर यह फैसला सुनाया। इस मामले में अपीलकर्ता की 2000 में शादी हुई थी और 2001 से पति-पत्नी अलग रहने लगे। पति की याचिका पर 2007 में निचली अदालत में तलाक मंजूर हुआ लेकिन 2011 में हाईकोर्ट ने फैसला पलट दिया तो पति सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।

फैसले में जस्टिस मनमोहन ने कहा कि अदालतों को केवल कागजों पर बचे विवाह को बनाए नहीं रखना चाहिए। वैवाहिक जीवन के प्रति दोनों पक्षों के मौलिक रूप से भिन्न दृष्टिकोण और एक-दूसरे को समायोजित करने से लंबे समय तक इनकार करना पारस्परिक क्रूरता के बराबर है। यदि मुकदमा काफी लंबे समय से लंबित है तो पक्षों के बीच संबंध तोड़ देना ही पक्षों और समाज के हित में है।

किसका मत सही, कोर्ट तय नहीं कर सकता

कोर्ट ने कहा कि इस पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन के प्रति दृष्टिकोण को लेकर उनके दृढ़ मत हैं और वे लंबे समय से एक-दूसरे के साथ तालमेल बिठाने से इनकार करते रहे हैं। वैवाहिक मामले में यह तय करना अदालत या समाज का काम नहीं है कि किसका दृष्टिकोण सही है या गलत। मामला गलती या दोष तय करने का नहीं, बल्कि एक खत्म हो चुकी शादी की सच्चाई को पहचानने का है।