'देता न दशमलव भारत तो फिर चांद पे जाना मुश्किल था…', लेकिन क्या आप जानते हैं, गणित में दशमलव पद्धति का जनक कौन है? जानिए इसका इतिहास।
मनोज कुमार की फिल्म पूरब-पश्चिम का वह गाना तो आपको याद होगा- 'देता न दशमलव भारत तो फिर चांद पे जाना मुश्किल था…', लेकिन क्या आप जानते हैं, गणित में दशमलव पद्धति का जनक कौन है? दशमलव पद्धति का श्रेय भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट (476 ई.) और ब्रह्मगुप्त (598-668 ई.) को दिया जाता है। आर्यभट्ट ने 'आर्यभटीय' (499 ई.) में संख्याओं को एक स्थानिक मान के साथ लिखा, जो दशमलव प्रणाली का आधार बना। उन्होंने 1, 10, 100, 1000 जैसी संख्याओं की गणना करने का तरीका विकसित किया। उनके कार्यों से प्रेरित होकर बाद के भारतीय गणितज्ञों ने दशमलव को और स्पष्ट रूप से परिभाषित किया।
> ब्रह्मगुप्त ने 'ब्रह्मस्फुटसिद्धांत' (628 ई.) में शून्य (0) और दशमलव प्रणाली के नियमों को स्पष्ट किया।
> उन्होंने बताया कि किसी भी संख्या को शून्य से गुणा करने पर उत्तर शून्य ही होगा (a × 0 = 0)।
> यह प्रणाली बाद में अरब और यूरोप तक पहुंची, जिससे आधुनिक गणित की नींव पड़ी।
> यह पुस्तक गणित और खगोलशास्त्र का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है।
> इसमें शून्य (0) की संकल्पना को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया था।
> ऋणात्मक संख्याओं और शून्य पर पहली बार स्पष्ट गणितीय नियम प्रस्तुत किए गए।
> ग्रहों की गति, चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण की भविष्यवाणी के लिए उपयोगी गणनाएं दी गईं।
अरब गणितज्ञों, जैसे अल-ख्वारिज्मी और अल-बट्टानी, ने ब्रह्मगुप्त की गणनाओं से प्रेरणा ली।
ब्रह्मगुप्त के कार्यों ने यूरोप में पुनर्जागरण काल के गणितीय विकास को भी प्रभावित किया।
8वीं शताब्दी में अरब विद्वानों ने भारतीय गणित ग्रंथों का अनुवाद किया। प्रसिद्ध अरब गणितज्ञ अल-ख्वारिज्मी ने भारतीय दशमलव प्रणाली को अपनाया और इसे इस्लामी जगत में लोकप्रिय बनाया। 12वीं शताब्दी में यह प्रणाली यूरोप पहुंची और इसे 'हिंदू-अरबी संख्या प्रणाली' कहा गया। फ्रांसीसी गणितज्ञ पियरे साइमन लाप्लास ने लिखा कि 'भारतीयों ने संख्याओं को अभिव्यक्त करने के लिए एक सरलतम प्रणाली विकसित की, जो अब पूरे विश्व में उपयोग की जाती है।'