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Space Science To Agricultural: पश्चिमी विचारों और अंग्रेजी कैलेंडर में ढले हमारे समाज के बड़े हिस्से को शायद यह जानकर आश्चर्य हो कि हमारे पूर्वजों ने खगोल विज्ञान के अध्ययन से खेती जैसी बेहद सामान्य प्रक्रिया को उन्नत और मौसम के अनुरूप बनाया। ऋतुचक्र को खगोलीय गणनाओं से आंकना खेती के विकास के लिए सबसे अहम खोज थी।
साल के किस समय बारिश होगी, कब सर्दी आएगी और कब गर्मियां, यह सब हमारे पूर्वजों ने अंतरिक्ष में ग्रहों और सूर्य की गति और स्थिति को दर्ज करके बताना शुरू किया। इसने एक ऐसा कृषि चक्र बनाने में मदद दी, जिसने तमाम आपदाओं और विपदाओं के बावजूद भारतीय सभ्यता का अस्तित्व बनाए रखा। दूसरी ओर कृषि में संवत्सर आधारित ज्ञान भी अद्भुत ढंग से उपयोगी साबित हुआ। वराहमिहिर की 'बृहत्संहिता' में मौसम पूर्वानुमान के वैज्ञानिक सिद्धांत दिए गए।
हाल ही में नासा ने यह सिद्ध किया है कि चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण पौधों के जल अवशोषण और वृद्धि को प्रभावित करता है। यह ज्ञान भारतीय कृषि ग्रंथों में हजारों वर्ष पहले दर्ज था।
ऋग्वेद में ही कृषि को सर्वोच्च कार्य बताया गया :
"अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित् कृषस्व वित्ते रमस्व बहुमन्यमानः।"
यानी, जुआ मत खेलो, कृषि करो और सम्मान के साथ धन पाओ।
उन्होंने इसे मानव जीवन का आधार बताया। उनके ग्रंथ 'कृषि पाराशर' में अच्छे बीज की पहचान, बुआई की विधि, सिंचाई के सही तरीके और भूमि को स्वस्थ रखने के उपाय भी विस्तार से बताए गए। खेत को हर चार वर्षों में एक वर्ष विश्राम देने का सुझाव भी दिया ताकि उसकी उर्वरता बनी रहे।
वृक्षायुर्वेद के रचयिता सुरपाल बताते हैं कि कुछ फसलें परस्पर पूरक होती हैं और मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाती हैं। यही कारण है कि आज बस्तर के कोंडागांव में काली मिर्च को ऑस्ट्रेलियाई टीक जैसे ऊंचे वृक्षों के साथ उगाकर उसकी गुणवत्ता और पैदावार को चार गुना तक बढ़ाया जा रहा है।
"कृषिर्न जीवनस्य मूलं, धात्र्याः सौंदर्यमेव च।" अर्थात, कृषि ही जीवन का मूल है और धरती माता का सौंदर्य है।
Updated on:
01 Apr 2025 04:18 pm
Published on:
01 Apr 2025 09:47 am
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