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उन तीन सालों में कहां रहीं इंदिरा गांधी, हार की राख से फिर जिंदा उठ खड़े होने की कहानी

1979 में जनता सरकार गिर गई। 1980 में चुनाव हुए। इंदिरा ने "स्थिर सरकार चुनो" का नारा दिया। कांग्रेस (आई) ने दो-तिहाई बहुमत जीता।

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वो साल था 1977 और महीना था मार्च का। जब लोकसभा चुनाव के परिणाम आए, तो पूरे भारत में एक  राजनीतिक भूचाल आ गया। इंदिरा गांधी, जो 11 साल से भारत की प्रधानमंत्री थीं और जिन्हें दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिला माना जाता था, अपनी रायबरेली सीट से चुनाव बुरी तरह से हार गईं। उनके बेटे संजय गांधी भी अमेठी से पराजित हुए। कांग्रेस पार्टी की करारी हार हुई और जनता पार्टी की सरकार बनी, जिसके नेता मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद अब सवाल था – पूर्व प्रधानमंत्री कहां रहेंगी?

प्रधानमंत्री

पद छोड़ते ही इंदिरा गांधी को अपना आधिकारिक आवास 1 सफदरजंग रोड खाली करना पड़ा। जनता सरकार ने उन्हें कोई विशेष सुविधा नहीं दी। अप्रैल 1977 में वे 12 विलिंग्डन क्रेसेंट (आज मदर टेरेसा क्रेसेंट के नाम से जाना जाता है) नामक बंगले में शिफ्ट हुईं।  यहां पर ही पहले इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र  मोहम्मद यूनुस भी रहे थे। बाद में यह इंदिरा गांधी का घर बना। यहीं से उन्होंने अपनी राजनीतिक जंग की दूसरी पारी शुरू की।

सियासत का केन्द्र बना

12 विलिंग्डन क्रेसेंट एक सामान्य बंगला था। कम से कम 1 सफदरजंग रोड की तुलना में तो था ही। यह बाहर से देखने में कोई राजसी बंगला नहीं लगता था। लेकिन 1977 से 1980 तक के तीन सालों में यह बंगला भारतीय राजनीति का केंद्र बन गया। यहां इंदिरा गांधी ने अपनी हार की राख से खुद को फिर से गढ़ा। यह वो दौर था जब वे सत्ता से बाहर थीं, लेकिन जनता के दिलों में फिर से जगह बनाने की जद्दोजहद कर रही थीं। मार्च 1977 की रात जब परिणाम आए, इंदिरा गांधी शांत थीं। उन्होंने रेडियो पर कहा, "जनता का फैसला स्वीकार है।" लेकिन अंदर से वे टूट चुकी थीं। संजय गांधी ने सार्वजनिक रूप से इमरजेंसी की गलतियों के लिए माफी मांगी।

कौन-कौन रहता था

इंदिरा के नए घर में राजीव-सोनिया गांधी, संजय-मेनका गांधी और बच्चे एक साथ थे। 12 विलिंग्डन क्रेसेंट में दोनों बहुएं साथ रहती थीं। सोनिया घर संभालती थीं, मेनका 'सूर्या' पत्रिका चलाती थीं। जनता सरकार ने उन्हें प्रताड़ित करने की कोई कसर नहीं छोड़ी। इंदिरा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। शाह आयोग बना, जो इमरजेंसी की ज्यादतियों की जांच कर रहा था। अक्टूबर 1977 में सीबीआई उनके घर पहुंची और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इंदिरा ने कहा, "हथकड़ी लगाओगे तभी जाऊंगी!" उन्हें तिहाड़ जेल ले जाया गया, लेकिन कोर्ट ने तुरंत रिहा कर दिया क्योंकि आरोप बेबुनियाद थे। यह गिरफ्तारी उनके लिए वरदान साबित हुई – पूरे देश में सहानुभूति की लहर दौड़ी। लोग कहने लगे, "इंदिरा को सताया जा रहा है।"

राजनीतिक पुनरुत्थान की शुरुआत

12 विलिंग्डन क्रेसेंट में सुबह से शाम तक कार्यकर्ताओं की भीड़ लगी रहती। इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को फिर से खड़ा करना शुरू किया। पुरानी कांग्रेस दो हिस्सों में बंट गई – एक इंदिरा की कांग्रेस (आई) और दूसरी कांग्रेस (ओ)। जनवरी 1978 में इंदिरा फिर कांग्रेस अध्यक्ष बनीं। वे देश भर में घूमने लगीं – बेलछी गांव में दलितों की हत्या पर हाथी पर सवार होकर पहुंचीं, जिसकी तस्वीरें अखबारों में छपीं और जनता फिर उनके साथ जुड़ने लगी। नवंबर 1978 में कर्नाटक के चिकमंगलूर उपचुनाव में इंदिरा ने भारी मतों से जीत हासिल की। बारिश हो रही थी, लेकिन लाखों लोग वोट डालने आए। यह उनकी वापसी का पहला संकेत था। अब 12 विलिंग्डन क्रेसेंट में जश्न का माहौल था।

मिलने कौन-कौन आता था

उस कठिन दौर में इंदिरा गांधी से बहुत से नेता 12, विलिंगडन क्रिसेंट में मिलने-जुलने के लिए आया करते थे। 1 सफदरजंग रोड की तरह यहां पर भी आर.के.धवन उनसे मिलने आया करते थे। उनके अलावा, दिल्ली कांग्रेस के अर्जुन दास और रमेश दत्ता, राम बाबू शर्मा जैसे तमाम नेता भी यहां आते-जाते रहते थे।  अर्जुन दास और रमेश दत्ता दिल्ली कांग्रेस के दिगगज नेता थे। इनकी गांधी के प्रति वफादारी निर्विवाद थी। अर्जुन दास का दफ्तर लक्षीमीबाई मार्केट के डाक खाने के साथ ही था। वे संजय गांधी के करीबी थे। पर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगों को भड़काने के आरोप अर्जुन दास पर भी लगे। वह पंजाब में आतंकवाद का दौर था। अर्जुन दास की 3 सितंबर, 1985 को हत्या कर दी गई। ।

चुनौतियां और व्यक्तिगत जीवन

यह दौर आसान नहीं था। जनता पार्टी की सरकार अंदरूनी कलह से जूझ रही थी – मोरारजी देसाई, चरण सिंह, जगजीवन राम में लड़ाई थी। लेकिन इंदिरा पर हमले जारी थे। दिसंबर 1978 में फिर गिरफ्तारी हुई, संसद से निष्कासित किया गया। वे जेल गईं, लेकिन बाहर आकर और मजबूत हुईं। प्रख्यात ज्योतिषी जे.पी. शर्मा लालधागेवाला बताते हैं कि वो उस दौर में ज्यादा धार्मिक हो गई थीं – मंदिर जाना, ज्योतिषियों से सलाह लेना खूब होता था।

संजय गांधी की सुरक्षा को लेकर चिंता रहती। घर में कुत्ते, बच्चे, बहुएं – सबके साथ समय बितातीं। वे किताबें पढ़तीं, बागवानी करतीं, लेकिन राजनीति कभी नहीं छोड़ी। जून 1980 में संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत हो गई। इंदिरा पूरी तरह टूट गईं। वे खुद को दोष देती थीं। लेकिन राजनीति रुकी नहीं। वह राजीव गांधी को राजनीति में लेकर आईं।

वापसी की राह

1979 में जनता सरकार गिर गई। 1980 में चुनाव हुए। इंदिरा ने "स्थिर सरकार चुनो" का नारा दिया। कांग्रेस (आई) ने दो-तिहाई बहुमत जीता। 14 जनवरी 1980 को इंदिरा गांधी फिर प्रधानमंत्री बनीं। 12 विलिंग्डन क्रेसेंट में कीर्तन हुआ, आशीर्वाद लिया गया। वे फिर 1 सफदरजंग रोड लौट आईं। वो तीन साल – एक सबक 1977-1980 का दौर इंदिरा गांधी के जीवन का सबसे कठिन लेकिन सबसे प्रेरणादायक हिस्सा था। 12 विलिंग्डन क्रेसेंट सिर्फ एक बंगला नहीं था – वह उनकी संघर्षशाला था। वहां से उन्होंने साबित किया कि सत्ता खोने से नेता खत्म नहीं होता। जनता की नब्ज पकड़कर, सहानुभूति को ताकत बनाकर, वे फीनिक्स की तरह फिर उठीं। यह दौर भारतीय लोकतंत्र की ताकत भी दिखाता है – जनता ने सत्ता दी, जनता ने छीनी और जनता ने फिर लौटाई।

इंदिरा गांधी ने खुद कहा था, "मेरा जीवन लंबा रहा है, मैंने बहुत कुछ देखा है।" 12 विलिंग्डन क्रेसेंट के उन दिनों ने उन्हें और मजबूत बनाया। यह एक ऐसी कहानी है जो आज भी प्रेरणा देती है – हार से डरने की नहीं, लड़ने की।