
प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (फोटो- IANS)
राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के न्यायिक सदस्य जस्टिस शरद कुमार शर्मा ने एक मुकदमा छोड़ दिया है।
इसकी वजह भी उन्होंने बताई है। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा नाम एक पार्टी के पक्ष में फैसला देने का दबाव बनाया था।
जस्टिस शरद कुमार शर्मा ने 13 अगस्त को मुकदमा छोड़ने का एलान किया। इसके साथ, उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सबसे सम्मानित सदस्यों में से एक ने उनकी पीठ से जुड़े एक जज से संपर्क किया था।
इस दौरान, उन्होंने एक पार्टी के पक्ष में फैसला देने की बात कही। जस्टिस शरद ने यह तक कह दिया कि ये बहुत ही दुख की बात है। इसकी वजह से मैं खुद को केस से अलग कर रहा हूं।
दरअसल, कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण की हैदराबाद पीठ ने एक रियल स्टेट कंपनी केएलएसआर इंफ्राटेक लिमिटेड के खिलाफ फैसला सुनाया था, जिसे आगे चुनौती दी गई। मामला दिवालियेपन की कार्यवाही से जुड़ा था।
मामला हैदराबाद स्थित रियल एस्टेट कंपनी केएलएसआर इंफ्राटेक लिमिटेड से जुड़ा है। केएलएसआर इंफ्राटेक लिमिटेड ने दिवालियेपन की कार्यवाही से जुड़े मामले में राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण की हैदराबाद पीठ के फैसले को चुनौती दी थी।
18 जून को जस्टिस शरद की पीठ ने इस मामले में आदेश सुरक्षित रखा लिया था। इसके साथ, पक्षों को अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था।
दरअसल, एक लेनदार, एएस मेट कॉर्प प्राइवेट लिमिटेड का आरोप था कि केएलएसआर इंफ्राटेक के पास उसके 2,88,79,417 रुपये बकाया हैं। यह पैसे ब्याज सहित हैं।
आपसी सहमति से दोनों के बीच लेनदेन हुआ था। एएस मेट कॉर्प ने अदालत में कहा कि केएलएसआर इंफ्राटेक ने अब तक इन पैसों का भुगतान नहीं किया है।
दलीलों को सुनने के बाद हैदराबाद की पीठ ने एएस मेट कॉर्प के पक्ष में फैसला सुनाया। उसने केएलएसआर इंफ्राटेक लिमिटेड के खिलाफ कॉर्पोरेट दिवालियेपन समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) शुरू करने की अनुमति दे दी। जिसे आगे चुनौती दी गई।
दूसरी तरफ, केएलएसआर इंफ्राटेक लिमिटेड की ओर से कहा गया कि उनकी कंपनी पिछले पांच सालों में 300 करोड़ रुपये का बिजनेस करती है, इस लिहाज से उसपर दिवालियेपन की कार्रवाई करना उचित नहीं होगा।
कंपनी ने यह भी दावा किया कि एएस मेट कॉर्प प्राइवेट लिमिटेड के निदेशकों पर 30 जून, 2022 को कदाचार के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई थी, वे काफी समय से फरार हैं। आपराधिक कार्रवाई की वजह से दोनों पक्षों के बीच विवाद है, ऐसे में दिवालियापन की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।
ऐसा पहली बार नहीं है जब जस्टिस शरद ने तीसरे पक्ष के प्रभाव का हवाला देते हुए खुद को सुनवाई से अलग लिया है। साल 2024 में भी एक केस की सुनवाई से जस्टिस शरद खुद को अलग कर चुके हैं।
तब उन्होंने एक सीमेंट कंपनी से जुड़े मामले में सुनवाई करने से खुद को अलग कर लिया था। अपने आदेश में उन्होंने कहा कि उनके भाई ने इस मामले में उनसे संपर्क किया था। अपने आदेश में एक व्हाट्सएप संदेश भी दर्ज था, जो जज को भेजा गया था।
Published on:
28 Aug 2025 03:03 pm
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