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Cash at Home मामले में बुरे फंसे जस्टिस यशवंत वर्मा, अब CJI से हाईकोर्ट्स की बार एसोसिएशन ने किया आपराधिक जांच की मांग

बयान में कहा गया, “हम सीजेआई द्वारा पारदर्शिता अपनाने और दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट सहित अन्य सामग्री को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर सार्वजनिक करने के कदम की सराहना करते हैं।”

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भारत

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Anish Shekhar

Mar 27, 2025

दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के ‘कैश एट होम’ मामले ने देश की न्यायिक और कानूनी व्यवस्था में हलचल मचा दी है। इस मामले में अब विभिन्न हाईकोर्ट्स की बार एसोसिएशन एकजुट हो गई हैं और उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना से जस्टिस वर्मा के खिलाफ आपराधिक जांच शुरू करने की मांग की है। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की सिफारिश को वापस लेने का भी आग्रह किया गया है। यह घटनाक्रम तब शुरू हुआ जब 14 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के सरकारी बंगले के स्टोररूम में आग लगी और वहां से नकदी से भरी बोरियां बरामद होने की खबरें सामने आईं।

5 राज्यों के बार एसोसिएशन ने जारी किया संयुक्त बयान

विभिन्न हाईकोर्ट्स की बार एसोसिएशन—दिल्ली, इलाहाबाद, केरल, कर्नाटक और गुजरात—के अध्यक्षों द्वारा जारी संयुक्त बयान में कई गंभीर मांगें रखी गई हैं। बयान में कहा गया, “हम सीजेआई द्वारा पारदर्शिता अपनाने और दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट सहित अन्य सामग्री को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर सार्वजनिक करने के कदम की सराहना करते हैं।” इसके साथ ही, बार एसोसिएशन ने मांग की कि जस्टिस वर्मा का तबादला रद्द किया जाए, उनके न्यायिक कार्यों के साथ-साथ प्रशासनिक कार्य भी वापस लिए जाएं और उनके खिलाफ आपराधिक कानून को लागू किया जाए, जैसा कि किसी सरकारी कर्मचारी के मामले में होता है।

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...तो सबूतों को नष्ट होने से रोका जा सकता था

संयुक्त बयान में यह भी तर्क दिया गया कि दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट के अनुसार, 15 मार्च 2025 को किसी ने जस्टिस वर्मा के आवास से सामग्री हटाई थी। अगर उस समय आपराधिक जांच शुरू कर दी गई होती, तो सबूतों को नष्ट होने से रोका जा सकता था। बयान में कहा गया, “इस तरह के अपराधों में अन्य लोगों की संलिप्तता हो सकती है, और एफआईआर दर्ज न करने से उनकी अभियोजन प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।” बार एसोसिएशन ने यह भी घोषणा की कि अगर जस्टिस वर्मा का तबादला रद्द नहीं किया गया, तो सभी हाईकोर्ट्स के बार अध्यक्ष इलाहाबाद में एकत्र होंगे और इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के साथ एकजुटता दिखाएंगे।

इस संयुक्त बयान का उद्देश्य उच्च न्यायपालिका के जजों के लिए जवाबदेही के मानक स्थापित करना और 1999 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत इन-हाउस प्रक्रिया, 1997 में स्वीकृत ‘न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन’ और 2002 के बैंगलोर सिद्धांतों की समीक्षा करना है। इस बीच, एक जनहित याचिका (PIL) भी दायर की गई है, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और सीजेआई द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति की वैधता को चुनौती दी गई है।

21 मार्च को खुला मामला

यह विवाद 21 मार्च को तब शुरू हुआ, जब खबरें आईं कि जस्टिस वर्मा के बंगले के आउटहाउस में स्टोररूम में लगी आग के बाद वहां से नकदी की बोरियां मिलीं। 22 मार्च को सीजेआई संजीव खन्ना ने इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की, जो इन-हाउस प्रक्रिया का हिस्सा थी। यह निर्णय दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय की रिपोर्ट के बाद लिया गया, जिसमें गहन जांच की आवश्यकता बताई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट, जस्टिस वर्मा का जवाब और दिल्ली पुलिस आयुक्त द्वारा साझा की गई तस्वीरें व वीडियो भी प्रकाशित किए।

इलाहाबाद HC बार एसोसिएशन तबादले के फैसले से नाराज

आग की घटना 14 मार्च की रात 11:30 बजे हुई, जब जस्टिस वर्मा शहर से बाहर थे। दिल्ली पुलिस आयुक्त ने 15 मार्च की शाम 4:50 बजे दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को इसकी सूचना दी। जस्टिस वर्मा ने नकदी के कब्जे से इनकार किया है और इसे अपने खिलाफ साजिश करार दिया है। 24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दिल्ली हाईकोर्ट ने जस्टिस वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिए। उसी दिन, इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के तबादले के फैसले से नाराज होकर 25 मार्च से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी।

यह मामला अब केवल जस्टिस वर्मा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह न्यायपालिका की पारदर्शिता, जवाबदेही और विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है। बार एसोसिएशन का एकजुट होना और आपराधिक जांच की मांग इस बात का संकेत है कि यह विवाद आने वाले दिनों में और गहरा सकता है।