
Kakori Conspiracy : Kakori Train action heroes Ram Prasad Bismil, Ashfaq Ullah Khan and Roshan Singh
Kakori Train Action anniversary: देश की आजादी में न जाने कितने ही लोगों ने अपनी जान का बलिदान दिया है। यदि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देश में आग न भड़कती और क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश राज के खिलाफ जंग न छेड़ा होता तो शायद आज हम आजादी मिलने में और देर हुई होती। अंग्रेजों के जुल्म से हर भारतीय परेशान था और यही वजह भी थी कि अधिकतर क्रांतिकारियों ने गांधी जी की अहिंसा के रास्ते की बजाय हिंसा के मार्ग को चुना था। 1857 के बाद 1925 में पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खां सहित 10 स्वतंत्रता संग्राम के मतवालों ने काकोरी रेलवे स्टेशन पर ऐसे कारनामे को अंजाम दिया जिसने अंग्रेजी शासन को हिलाकर रख दिया।
देश में अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ रोष था और उनका मुकाबला करने के लिए धन और हथियार दोनों ही चीजों की आवश्यकता थी। ये बात क्रांतिकारी अच्छी तरह से समझते थे और इसलिए उन्होंने हथियार खरदीने के उद्देश्य से 9 अगस्त 1925 को यूपी के काकोरी से गुजरने वाले एक ट्रेन में रखे सरकारी खजाने को लूटा था। ट्रेन को लूटने में शामिल क्रांतिकारी 'हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन' से जुड़े थे।
हरदोई और लखनऊ के बीच स्थित काकोरी रेलवे स्टेशन से एक ट्रेन चली जिसमें ब्रिटिश शासन का खजाना था। 9 अगस्त 1925 को काकोरी रेलवे स्टेशन से चली एक ट्रेन में ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खां, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल सहित कुल 10 स्वतंत्रता सेनानियों इस ट्रेन में सवार हुए थे। जब ये ट्रेन लखनऊ से 8 मील की दूरी पर थी तब इनमें से 3 युवाओं ने ट्रेन को बीच रास्ते में ही रोक दिया और अन्य ने ट्रेन में रखे खजाने को लूट लिया।
ये लूट उस समय करीब 8 हजार रुपये की थी जिसने अंग्रेजी हुकूमत को हैरान कर दिया था। इस दौरान दोनों तरफ से गोलीबारी भी हुई थी जिसमें क्रांतिकारियों ने जर्मनी निर्मित माउज़र पिस्टल का इस्तेमाल हुआ था। इस हादसे में एक यात्री की मौत हो गई थी। अंग्रेजी शासन को यकीन नहीं हो रहा था कि अहिंसा की बात करने वाले भारतीय इस तरह की घटना को अंजाम दे सकते हैं।
इस घटना से ब्रिटिश शासन में हड़कंप मच गया और इस लूट में शामिल क्रांतिकारियों की खोज शुरू कर दी। इस दौरान हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के 40 सदस्यों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। इनपर क्रांतिकारियों को बचाने के आरोप लगे थे। इसके बाद 1927 में अंग्रेजी हुकूमत ने राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को ट्रेन की लूट के आरोप में फांसी की सजा दे दी थी।
हालांकि, इन क्रांतिकारियों को फांसी से बचाने के कई प्रयास किये गए थे, खुद मदन मोहन मालवीय ने भी प्रयास किये थे, पर उनके प्रयास सफल नहीं हुए क्योंकि ब्रिटिश सरकार पहले ही फैसला कर चुकी थी।
भले ही इन चार क्रांतिकारियों को ब्रिटिश सरकार ने फांसी पर चढ़ा दिया हो लेकिन इसने पूरे भारत में आजादी की ज्वाला को भड़का दिया। इसके बाद दिनों दिन अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों में आक्रोश बढ़ता गया जिस कारण अंग्रेजों की हालत बीतते समय के साथ खराब होने लगी।
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Updated on:
09 Aug 2022 04:37 pm
Published on:
09 Aug 2022 04:34 pm
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