
कोर्ट। फाइल फोटो
4 नवंबर 2025 को केरल हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि एक मां को अपने बच्चों से भरण-पोषण मांगने का हक है। यह उसके पति की उसे भरण-पोषण देने की जिम्मेदारी से अलग है। शादीशुदा बेटा अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हट सकता है।
दरअसल, केरल की एक बूढ़ी औरत ने अपने बेटे के खिलाफ भरण पोषण को लेकर निचली अदालत में केस किया था। उन्होंने कोर्ट से बताया था कि उनका बेटा खाड़ी देश में काम करता है। उसके भरण-पोषण के लिए कोई भी खर्च नहीं देता है। मामले की सुनावई के बाद फैमिली कोर्ट ने बेटे को हर महीने 5,000 रुपये का भरण-पोषण देने का आदेश दिया। इस फैसले को केरल हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। जहां HC ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।
हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान पीड़ित मां ने कहा कि उसके पास कोई रोजगार या खुद का गुजारा करने का कोई साधन नहीं है। इस पर बेटे ने कहा कि मां मवेशी पालती है। जिससे उन्हें काफी कमाई होती है। पिता भी मछुआरे हैं। उनके पास एक नाव है। वह भी मां को भरण पोषण दे रहे हैं। इसलिए जब पिता हैं तो बेटे को भरण-पोषण देने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बेटे का यह तर्क कि उसकी मां मवेशी पालती है और पर्याप्त कमाई करती है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और अनुचित है कि एक अमीर बेटा अपनी बूढ़ी मां से कहे कि उसे अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए मवेशी पालने का काम करना चाहिए।
केरल हाई कोर्ट ने कहा कि मवेशी पालना एक शारीरिक रूप से थका देने वाला काम है। 60 साल की मां से ऐसे काम करने की उम्मीद करना बेटे की तरफ से एक बड़ी नैतिक विफलता और मां की भलाई और गरिमा के प्रति उपेक्षा को दिखाता है। यह स्थिति आमतौर पर एक बूढ़े माता-पिता के प्रति देखभाल, समर्थन और सम्मान की कमी को दर्शाती है, जो शायद अपने अमीर बच्चे के समर्थन पर निर्भर हैं या इसके हकदार हैं।
Published on:
19 Dec 2025 07:21 am
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