29 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

कॉलेजियम सिस्टम का विरोध करना पड़ा भारी, जानिए किरेन रिजिजू से क्यों छीना कानून मंत्रालय?

Kiren Rijiju On Collegium System: केंद्रीय कानून मंत्री पद से किरेन रिजिजू की विदाई हो गई है। किरेन रिजिजू की जगह अर्जुन राम मेघवाल भारत के नए कानून मंत्री बने हैं। उन्होंने मुखर होकर न्यायपालिका और सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम व्यवस्था पर सवाल खड़े किए। इससे न्यायपालिका बनाम सरकार जैसी स्थिति बनी। रिजिजू को कानून मंत्री के पद से हटाने के पीछे यह एक बड़ी वजह मानी जा रही है।

3 min read
Google source verification
kiran_rijiju.jpg

कॉलेजियम सिस्टम का विरोध करना किरेन रिजिजू को पड़ा भारी !

Kiren Rijiju On Collegium System: मोदी सरकार ने कानून मंत्री किरेन रिजिजू का विभाग बदल दिया है। रिजिजू को अब पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय दिया गया है। सीधे शब्दों में कहें की किरेन रिजिजू का ओहदा इस कैबिनेट में कम किया गया है। रिजिजू की जगह अब अर्जुन राम मेघवाल नए लॉ मिनिस्टर होंगे। राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी सूचना में बताया गया है कि अर्जुन मेघवाल को स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया है। मेघवाल के पास पहले से संसदीय मामलों के राज्य मंत्री का जिम्मा भी है। बता दें की, किरेन रिजिजू को रविशंकर प्रसाद की जगह जुलाई 2021 में कानून मंत्री नियुक्त किया गया था। रिजिजू अपने कार्यकाल के दौरान जजों पर टिप्पणियों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। उन्होंने कॉलेजियम को लेकर खुलकर कहा था कि देश में कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता है। ऐसे में एक नजर डालते हैं किरेन रिजिजू के उन बयानों पर जो उन्होंने लॉ मिनिस्टर रहते हुए दिया था


जजों को भारत विरोधी ग्रुप का हिस्सा बताया था

इसी साल 18 मार्च को किरण रिजिजू ने कहा था कि कुछ रिटायर्ड जजों की बात सुनकर लगता है की ये एंटी इंडिया ग्रुप का हिस्सा बन गए हैं। ये लोग कोशिश करते हैं कि भारतीय न्यायपालिका विपक्ष की भूमिका निभाए। देश के खिलाफ इस तरह के काम करने वालों को इसकी कीमत चुकानी होगी।

देश के बाहर और भीतर भारत विरोधी ताकतें एक ही भाषा का इस्तेमाल करती हैं कि यहां लोकतंत्र खतरे में है, अल्पसंख्यक खतरे में है। इंडिया में मानवाधिकार का अस्तित्व ही नहीं है।भारत विरोधी ग्रुप जो कहता है, वही भाषा राहुल गांधी भी इस्तेमाल करते हैं। इससे पुरे विश्व में भारत की छवि खराब होती है।

देश संविधान से चलता है

इसी साल फरवरी में इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम के दौरान किरेन रिजिजू ने सरकार बनाम न्यायपालिका की बात से इनकार किया था और कहा था कि देश में न्यायपालिका बनाम सरकार जैसा कुछ नहीं है। यह लोग हैं, जो सरकार का चुनाव करते हैं, वो हीं सर्वोच्च हैं और हमारा देश संविधान के अनुसार चलता है।

कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता, जनता ही मालिक

जजों की नियुक्ति में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने इस साल की शुरुआत में ही नाराजगी जताई थी। केंद्र से कहा था कि हमें ऐसा स्टैंड लेने पर मजबूर न करें, जिससे परेशानी हो। इसके बाद रिजिजू ने प्रयागराज में एक सभा के दौरान कहा था- मैंने देखा कि मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम पर चेतावनी दी है। इस देश के मालिक यहां के लोग हैं, हम सिर्फ उनके सेवक हैं। हम संविधान को सर्वोपरि मानते हैं, संविधान के अनुसार ही देश चलेगा। कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता है।

कॉलेजियम सिस्टम क्या होता है?

कॉलेजियम सिस्टम का भारत के संविधान में कहीं कोई जिक्र नहीं है। 28 अक्टूबर 1998 को 3 जजों के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए यह पहली बार प्रभाव में आया था। कॉलेजियम सिस्टम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों का एक फोरम जजों की नियुक्ति और तबादले की सिफारिश करता है। कॉलेजियम की सिफारिश दूसरी बार भेजने पर सरकार के लिए मानना जरूरी होता है। अगर इसी फैसले को मानने में सरकार देर करती है तो फिर घमासान मचता है।


रिटायर्ड अफसरों ने किया था विरोध

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की व्यवस्था के खिलाफ भी किरेन रिजिजू मुखर रहे और कई बार इसकी आलोचना की। किरेन रिजिजू के बयानों के चलते ही बीते कुछ माह पहले ही 90 रिटायर्ड अफसरों ने इस पर नाराजगी जताई थी और कानून मंत्री को पत्र लिखा था। अफसरों ने पत्र में लिखा था कि कानून मंत्री ने कई मौकों पर जजों की नियुक्ति के कॉलेजियम सिस्टम और न्यायिक स्वतंत्रता पर ऐसे बयान दिए, जो सुप्रीम कोर्ट पर हमला लगते हैं।

पत्र में रिजिजू के बयानों की सामूहिक निंदा की गई और कहा गया कि न्यायिक स्वतंत्रता से किसी भी सूरत में समझौता नहीं किया जा सकता। वकीलों के एक बड़े ग्रुप ने भी किरेन रिजिजू के बयानों का विरोध किया था और कहा था कि उन्होंने संवैधानिक मर्यादाओं को लांघा है। सरकार की आलोचना करना, राष्ट्र की आलोचना करना नहीं है ना ही ये देशद्रोह है। हमें जहां भी सरकार की नीतियों में कमी दिखेगी हम उसपर सवाल करेंगे।