
26/11 मुंबई आतंकी हमले के प्रमुख आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा का भारत प्रत्यर्पण एक बड़ी कूटनीतिक और कानूनी उपलब्धि है। गुरुवार, 10 अप्रैल 2025 को अमेरिका से विशेष विमान के जरिए दिल्ली लाए गए राणा को पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया, जहां से एनआईए को उनकी 18 दिनों की रिमांड मिली। अब राणा के खिलाफ कानूनी जंग शुरू होने वाली है, जिसमें उनके बचाव और अभियोजन दोनों पक्षों की ओर से अनुभवी वकील कोर्ट में दमदार दलीलें पेश करेंगे। राणा का पक्ष दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) द्वारा नियुक्त वकील पीयूष सचदेवा संभाल रहे हैं, जबकि एनआईए की ओर से नरेंद्र मान विशेष लोक अभियोजक (स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर) के रूप में केस लड़ेंगे। आइए, जानते हैं इन दोनों वकीलों के बारे में और इस हाई-प्रोफाइल केस की अहम बातें।
पीयूष सचदेवा एक प्रतिभाशाली और अनुभवी वकील हैं, जो दिल्ली में पिछले एक दशक से अधिक समय से वकालत कर रहे हैं। दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) ने तहव्वुर राणा जैसे संवेदनशील और जटिल केस के लिए उन्हें चुना है, जो उनकी कानूनी विशेषज्ञता का प्रमाण है। 37 वर्षीय सचदेवा ने 2011 में पुणे के प्रतिष्ठित ILS लॉ कॉलेज से अपनी कानून की डिग्री हासिल की थी। इसके बाद उन्होंने लंदन के किंग्स कॉलेज से इंटरनेशनल बिजनेस और कमर्शियल लॉ में मास्टर डिग्री प्राप्त की, जिसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय कानून के क्षेत्र में गहरी समझ दी।
सचदेवा का करियर आपराधिक और हाई-प्रोफाइल मामलों से भरा रहा है। वे जटिल कानूनी प्रक्रियाओं को बारीकी से समझते हैं और कई बार कोर्ट में अपनी दमदार दलीलों से सुर्खियां बटोर चुके हैं। उनकी नियुक्ति DLSA ने इसलिए की, क्योंकि राणा ने कोर्ट में बताया कि उनके पास कोई निजी वकील नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत हर आरोपी को कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार है, और इसी के तहत सचदेवा को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। उनके साथ लक्ष्य धीर भी सह-वकील के रूप में काम कर रहे हैं, जो साइबर क्राइम और व्हाइट-कॉलर अपराधों के विशेषज्ञ हैं।
सचदेवा वर्तमान में CGC पार्टनर्स नामक फर्म में पार्टनर हैं और 2021 से DLSA के साथ पैनल में शामिल हैं। उनकी नियुक्ति को लेकर सोशल मीडिया पर कुछ विवाद भी देखने को मिला, लेकिन कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह उनकी पेशेवर जिम्मेदारी है, न कि व्यक्तिगत पसंद।
राणा के खिलाफ एनआईए की ओर से केस लड़ने की जिम्मेदारी नरेंद्र मान को दी गई है, जिन्हें केंद्र सरकार ने तीन साल के लिए विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया है। 58 वर्षीय मान एक जाने-माने वकील हैं, जिनका अनुभव आपराधिक और संवेदनशील मामलों में बेजोड़ है। उन्होंने पहले केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के लिए विशेष लोक अभियोजक के रूप में कई हाई-प्रोफाइल केस लड़े हैं। खास तौर पर 2018 के कर्मचारी चयन आयोग (SSC) पेपर लीक मामले में उनकी दलीलें चर्चा में रही थीं।
मान को एनआईए ने इसलिए चुना, क्योंकि उनकी कानूनी समझ और कोर्ट में तर्क पेश करने की शैली बेहद प्रभावी है। उनके साथ दयान कृष्णन, जो एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं, और संजीव शेषाद्रि व श्रीधर काले जैसे अनुभवी वकील भी एनआईए की टीम का हिस्सा हैं। दयान कृष्णन ने राणा के प्रत्यर्पण के लिए अमेरिकी कोर्ट में भारत का पक्ष रखा था और अब दिल्ली में इस केस को आगे बढ़ाएंगे। मान और उनकी टीम का लक्ष्य राणा के खिलाफ पुख्ता सबूत पेश कर 26/11 हमले की साजिश को पूरी तरह उजागर करना है।
पटियाला हाउस कोर्ट में 10 अप्रैल की रात को हुई सुनवाई के दौरान एनआईए ने राणा की 20 दिन की रिमांड मांगी थी, ताकि उनसे गहन पूछताछ की जा सके। एनआईए ने कोर्ट को बताया कि राणा ने डेविड कोलमैन हेडली और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के साथ मिलकर मुंबई हमले की साजिश रची थी। राणा के ईमेल और हेडली के साथ उनकी बातचीत के सबूत भी जांच एजेंसी ने पेश किए। हालांकि, विशेष एनआईए जज चंद्रजीत सिंह ने 18 दिन की रिमांड मंजूर की।
सचदेवा ने कोर्ट में राणा का प्रतिनिधित्व करते हुए रिमांड की अवधि और मेडिकल जांच पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि रिमांड की शुरुआत और अंत में राणा का व्यापक मेडिकल टेस्ट होना चाहिए। दूसरी ओर, मान और कृष्णन ने एनआईए की ओर से राणा की आतंकी गतिविधियों और भारत के खिलाफ साजिश के सबूतों को मजबूती से रखा।
64 वर्षीय तहव्वुर राणा, जो पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है, पर आरोप है कि उसने डेविड हेडली को मुंबई में रेकी करने और 26/11 हमले की योजना बनाने में मदद की। राणा ने अपनी इमिग्रेशन फर्म के जरिए हेडली को वीजा और कवर प्रदान किया था। 26 नवंबर 2008 को हुए इस आतंकी हमले में 166 लोग मारे गए थे और 238 से ज्यादा घायल हुए थे। एनआईए का दावा है कि राणा की पूछताछ से आतंकी नेटवर्क और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की भूमिका पर नए खुलासे हो सकते हैं।
राणा को कोर्ट में पेश करने के लिए अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम किए गए थे। दिल्ली पुलिस की SWAT टीम, बख्तरबंद वाहन और NSG कमांडो ने कोर्ट परिसर को छावनी में तब्दील कर दिया था। सुरक्षा कारणों से मीडिया और आम लोगों को कोर्ट परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। राणा को फिलहाल एनआईए मुख्यालय में एक विशेष पूछताछ कक्ष में रखा गया है, जहां केवल 12 अधिकृत अधिकारियों को ही प्रवेश की अनुमति है।
राणा की 18 दिन की रिमांड के दौरान एनआईए उनसे कई अहम सवाल पूछेगी, जैसे:
दूसरी ओर, पीयूष सचदेवा और उनकी टीम राणा के लिए निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे, जो भारतीय कानून के तहत उनका अधिकार है। नरेंद्र मान और एनआईए की टीम इस बात पर जोर देगी कि राणा को उसके कथित अपराधों के लिए कड़ी सजा मिले।
Published on:
11 Apr 2025 01:37 pm
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