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Kurmi Andolan: पश्चिम बंगाल में 35 विधानसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय का दबदबा, जानिए आंदोलन से जुड़ी एक-एक बात

पश्चिम बंगाल में कुर्मी समुदाय का एसटी दर्जे की मांग को लेकर उग्र आंदोलन जारी है। 20 सितंबर से शुरू हुए इस आंदोलन में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुई हैं और कई गिरफ्तारियां हुई हैं। लगभग 35 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखने वाले इस समुदाय का आंदोलन आगामी विधानसभा चुनावों में अहम भूमिका निभा सकता है।

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पश्चिम बंगाल में कुर्मी समुदाय का प्रदर्शन। (फोटो- IANS)

पश्चिम बंगाल में कुर्मी समुदाय ने बड़ा आंदोलन छेड़ दिया है। 20 सितंबर से वह हिसंक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं, सोमवार को पुरुलिया जिले में कोटशिला रेलवे स्टेशन पर आंदोलन के दौरान पुलिस पर हमला करने के आरोप में कुर्मी समुदाय के 29 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

दरअसल, शनिवार को कुर्मी समुदाय सदस्यों द्वारा हिंसक विरोध प्रदर्शन में दो आईपीएस अधिकारियों सहित कम से कम छह पुलिसकर्मी घायल हो गए। इन लोगों ने अपनी मांग को लेकर कोटशिला स्टेशन पर रेलवे ट्रैक जाम कर दिया था।

पुलिस ने किया लाठीचार्ज

पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज भी किया। वहीं, आंसू गैस के गोले दागने से कुछ प्रदर्शनकारी घायल हो गए। कुर्मी समुदाय ने आरोप लगाया कि पुलिस ने आंदोलन को नियंत्रित करने के नाम पर उन पर हमला किया।

अब उनका कहना है कि दुर्गा पूजा के बाद 5 अक्टूबर को पुरुलिया शहर के टैक्सी स्टैंड पर आतंकवाद विरोधी बैठक होगी। वे उसी दिन डीएम और एसपी को एक ज्ञापन भी सौंपेंगे।

क्या है कुर्मी समुदाय की मांग?

कुर्मी समुदाय के लोग अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग को लेकर पश्चिम बंगाल में व्यापक रूप से आंदोलन कर रहे हैं।

यह आंदोलन वैसे तो दशकों पुराना है, लेकिन हाल के वर्षों में बार-बार इसका हिंसक रूप देखने को मिला है। साल 2022, 2023 और 2024 में भी कुर्मी समुदाय के लोगों ने सड़क और रेलवे ट्रैक को जाम कर दिया था।

1931 की जनगणना में कुर्मी समाज को माना गया था एसटी

जानकारी के मुताबिक, 1931 की जनगणना में कुर्मियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था, लेकिन 1950 के बाद, जब स्वतंत्र भारत में फिर से अनुसूचित जनजातियों की सूची तैयार की गई, तो कुर्मी समुदाय को उसमें जगह नहीं मिली।

इस पर अब उनका का तर्क है कि ब्रिटिश काल में उन्हें विभिन्न दस्तावेजों में एक जनजाति और भारत के एक आदिवासी समुदाय के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। वे उसी पहचान को फिर से बहाल करना चाहते हैं। ये मांगें 1950 से चली आ रही हैं, लेकिन राज्य और केंद्र सरकारों की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

दरअसल, कुर्मी समुदाय खुद को आदिवासी मानता है। फिलहाल, उन्हें ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) का दर्जा प्राप्त है, जिससे वह संतुष्ट नहीं है, क्योंकि एसटी का दर्जा उन्हें शिक्षा, नौकरी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में अधिक आरक्षण और लाभ प्रदान कर सकता है।

विधानसभा चुनाव में दिख सकता है असर

पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव है। माना जा रहा है कि ममता बनर्जी सरकार पर यह आंदोलन भारी पड़ सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पश्चिम बंगाल में कुर्मी समुदाय की आबादी लगभग 50 लाख है। यह पुरुलिया, बांकुरा, झारग्राम, पश्चिम मेदिनीपुर और दक्षिण दिनाजपुर जैसे जिलों में बड़े पैमाने पर निवास करते हैं।

2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के विश्लेषण के मुताबिक, लगभग 30-35 विधानसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय का दबदबा है। पिछली बार, इन सीटों ने हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभाई थी। हारे और जीते हुए कैंडिडेट में मतों का अंतर काफी कम था।