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Exclusive: मेजर शैतानसिंह ने 1200 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारा था, तीन महीने बाद घर पहुंची थी पार्थिव देह

Major Shaitan Singh Rezang La: मेजर शैतानसिंह ने 8 नवंबर 1962 को सिर्फ 120 जवानों के साथ 1500 चीनी सैनिकों को रेजांगला में मार गिराया। तीन महीने तक बर्फ में जमी उनकी देह फरवरी 1963 में जोधपुर पहुंची और पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ।

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भारत

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MI Zahir

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M. I. Zahir

Nov 18, 2025

Major Shaitan Singh Rezang La

मेजर शैतानसिंह। फोटो: X Handle / Rajnath Singh

Major Shaitan Singh Rezang La: चीन जब भी LAC पर आंखें तरेरता है, तब भारत के जांबाज शहीद मेजर शैतानसिंह (Major Shaitan Singh) का अदम्य साहस और वीरता याद हो आती है। हर भारतीय को रेजांगला (Rezang La battle 1962) की वो खौफनाक सुबह याद आती है। दरअसल 18 नवंबर 1962 (1962 war Rajasthan soldier), समुद्र तल से 16,500 फीट ऊंची बर्फीली चोटी चुशुल पर तापमान माइनस 30 डिग्री था। ऑक्सीजन इतनी कम कि सांस लेना भी मुश्किल था। ऐसे में मेजर शैतानसिंह भाटी परमवीर (13 कुमाऊं) अपनी सी कंपनी के केवल 120 जवानों के साथ डटे थे। सामने थी चीनी पीएलए की पूरी बटालियन – करीब 1200-1500 सैनिक, आधुनिक हथियारों और भरपूर गोला-बारूद के साथ। मेजर शैतानसिंह शहीद दिवस पर जयपुर आए हुए मेजर जनरल नरपतसिंह राजपुरोहित, जोधपुर से पूर्व सैनिक अमर​सिंह भाटी व बताते हैं कि चीनी कमांडर को लगा था – भारतीय सैनिकों के पास पुरानी .303 राइफलें हैं, गर्म कपड़े नहीं हैं, ऊंचाई पर लड़ने का अनुभव नहीं है। बस दो घंटे में पोस्ट पर कब्जा हो जाएगा। लेकिन उन्हें क्या पता था कि सामने खड़ा शेर राजस्थान के बानासर गांव का शैतानसिंह है, जिसने कभी हार नहीं मानी।

आधे घंटे में 80 चीनी सैनिक ढेर हो गए (India China war hero)

उन्होंने बताया कि सुबह ठीक 4 बजे चीनी सेना ने तीन तरफ से हमला बोला। पहला हमला बांयी प्लाटून पर था। आधे घंटे में 80 चीनी सैनिक ढेर हो गए। दूसरा हमला दांयी प्लाटून पर था– वहां भी भारतीय जवानों ने मुंहतोड़ जवाब दिया। तीसरा हमला सीधे कंपनी हेडक्वार्टर पर था। मेजर शैतानसिंह खुद मोर्चे पर थे। गोली उनके पेट और बाजू में लगी थी। खून बह रहा था, लेकिन वे चीखते रहे – “मारो सालों को! एक कदम पीछे नहीं!” जब साथी जवान उन्हें उठा कर नाले में ले जाने लगे, तो मेजर ने साफ मना कर दिया। बोले – “मुझे यहीं छोड़ो, जवान कम हैं, दुश्मन को रोकना जरूरी है।” उन्होंने मशीन गन का ट्रिगर रस्सी से बांधा और आखिरी सांस तक फायरिंग करते रहे। उन्होंने हाथ गंवाने के बाद पैरों से गोलियां चलाई थीं। जब तीन महीने बाद बर्फ पिघली, तो उनका शव ठीक उसी पोजीशन में मिला – एक हाथ में रस्सी, दूसरा ट्रिगर पर।

चीन ने भारत का लोहा माना था

सन 1962 की लड़ाई में भारत भले ही हार गया, लेकिन रेजांगला में चीन को सबसे बड़ा नुकसान यहीं हुआ। चीनी कमांडर ने बाद में कुबूल किया था – “हमने सोचा था दो घंटे में कब्जा हो जाएगा, लेकिन 14 घंटे तक भारतीय जवानों ने हमें रोके रखा।” मेजर शैतानसिंह की शहादत आज भी हर भारतीय को सिखाती है – देश के लिए जान देनी नहीं, दुश्मन से डरना नहीं सिखाती है।

तीन महीने बाद घर लौटी वीर की देह

मेजर शैतानसिंह के पुत्र नरपतसिंह भाटी उस समय मात्र 17 साल के थे और अजमेर में पढ़ाई कर रहे थे। उन्होंने बताया कि नवंबर 1962 में पिता की शहादत के बाद रेजांगला में इतनी बर्फ जम गई थी कि शव निकालना असंभव हो गया था।
उनकी पत्नी सुगनकंवर और बेटे नरपतसिं​ह के लिए यह बहुत कठिन समय था। तीन महीने बाद, फरवरी 1963 में भारतीय वायुसेना के विशेष विमान ने मेजर साहब की पार्थिव देह लद्दाख से जोधपुर पहुंचाई। विमान जैसे ही जोधपुर एयरपोर्ट पर उतरा, सबसे पहले देह को महाराजा उम्मेदसिंह के साले कर्नल मोहनसिंह के निवास ले जाया गया। इसके बाद आम जनता के अंतिम दर्शन के लिए पार्थिव देह को सर्किट हाउस में रखा गया। उसके बाद जोधपुर के 19 फरवरी 1963 को कागा श्मशान घाट पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार हुआ। आज भी श्मशान घाट के मुख्य द्वार पर परमवीर मेजर शैतानसिंह भाटी का नाम गर्व से अंकित है। सन 2024 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वहां जाकर सैल्यूट किया था।

रेजांगला की लड़ाई – हैरान करने वाले आंकड़े (Param Vir Chakra story)

भारतीय जवान: सिर्फ 120
चीनी सैनिक: 1200 से 1500
भारतीय हथियार: पुरानी .303 राइफलें, कुछ LMG
चीनी हथियार: ऑटोमैटिक राइफलें, मशीन गनें, मोर्टार
भारतीय शहीद: 114 (कंपनी में बचे सिर्फ 6 जवान)
चीनी मारे गए: 1200 से 1500 (चीनी इतिहासकार भी मानते हैं)
सम्मान: 1 परमवीर चक्र, 8 वीर चक्र, 4 सेना मैडल।

जोधपुर में अमर निशानियां

बानासर रेलवे स्टेशन का नाम बदला गया – मेजर शैतानसिंह स्टेशन।
गांव का नाम – मेजर शैतानसिंह नगर।
पावटा चौराहे पर 1986 में प्रतिमा का अनावरण।
1994 में नई प्रतिमा स्थापित।

सेना अब भी हर साल रेजांगला पर श्रद्धांजलि देती है

बहरहाल हर साल 18 नवंबर को राजस्थान के जोधपुर, जयपुर व दिल्ली में श्रद्धांजलि सभाएं होती हैं। युवा सोशल मीडिया पर लिखते हैं – “जब तक शैतानसिंह जैसे जांबाज हैं, चीन की हिम्मत नहीं होगी।” सेना अब भी हर साल रेजांगला पर श्रद्धांजलि देती है।