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वंदे मातरम पर छिड़ा सियासी बवाल, जानें किस नेता ने क्या कहा

1937 में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी द्वारा लिए गए निर्णय की वजह से 'वंदे मातरम' गीत विवाद का विषय बना हुआ है।

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पीएम नरेंद्र मोदी (Photo-IANS)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को नई दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में 'वंदे मातरम' के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में साल भर चलने वाले समारोह का उद्घाटन किया। इसी दौरान उन्होंने कहा कि 1937 में कांग्रेस ने राष्ट्रीय गीत के महत्वपूर्ण छंदों को हटा दिया  था। उन्होंने दावा किया कि हटाए गए छंदों में हिंदू देवियों का जिक्र था। इस निर्णय से देश में विभाजन के बीज बोए गए। यह निर्णय विभाजनकारी मानसिकता को भी दिखाता है, जो आज भी देश के लिए चुनौती बनी हुई है। इसके अलावा बीजेपी ने 1937 में पूर्व पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लिखे गए पत्रों को शेयर किया, जिसमें सुझाव दिया गया था, 'वंदे मातरम की पृष्ठभूमि मुसलमानों को परेशान कर सकती है।'

वंदे मातरम का इतिहास

वंदे मातरम गीत को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1875 में लिखा था। 1882 में यह उनके प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ का हिस्सा बना। आजादी के समय यह गीत बहुत लोकप्रिय हुआ। बाद में 1950 में इस गीत को भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया।

विवाद क्या है?

1937 में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी द्वारा लिए गए निर्णय की वजह से 'वंदे मातरम' गीत विवाद का विषय बना हुआ है। उस समय इस गीत के सिर्फ दो लाइन को अपनाया गया और अंत के कुछ छंदों को हटा दिया गया था, जिसमें हिंदू देवियों, मुख्यतः दुर्गा मां की स्तुति थी। भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस ने सांप्रदायिक एजेंडे के चलते इस गीत को छोटा कर देश के राष्ट्रीय गीत का रूप दिया। 

पक्ष में नेताओं का बयान

इस विवाद के समर्थन में बीजेपी के प्रवक्ता सीआर केसवन ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' में जानबूझकर बदलाव किए गए थे। उन्होंने कहा कि यह गीत किसी विशेष धर्म या भाषा से जुड़ा हुआ नहीं है, लेकिन कांग्रेस ने इसे धर्म से जोड़ने की कोशिश की और गीत को काटकर एक ऐतिहासिक पाप और भूल की। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि राज्य के सभी शिक्षा संस्थानों में वंदे मातरम का गायन अनिवार्य किया जाएगा।   

बीजेपी नेता अमित मालवीय ने कहा कि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने धार्मिक कारणों का हवाला देकर जानबूझकर ‘वंदे मातरम’ की पंक्तियां हटाई। उनका कहना है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ‘वंदे मातरम’ के मामले में गीत के साथ कोई छेड़छाड़ न करने के लिए जोरदार तर्क दिए थे। लेकिन 20 अक्टूबर 1937 को नेहरू ने नेताजी को पत्र लिखकर कहा कि वंदे मातरम की पृष्ठभूमि मुस्लिमों को चिढ़ा सकती है।

विपक्षियों का बयान

कांग्रेस ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुआ कहा कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खुद इस गीत से बचते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि जो लोग आज राष्ट्रवाद के संरक्षक बन रहे हैं, उन्होंने कभी यह गीत गाया ही नहीं है।

सपा सांसद जियाउर्रहमान ने पत्रकारों से बातचीत करते हुआ कहा कि उनके दादा पूर्व सासंद शफीकुर्रहमान बर्क इस गीत के खिलाफ थे और वह भी हैं। उन्होंने कहा कि वह राष्ट्रगान का पूरी तरह से सम्मान करते हैं, लेकिन 'वंदे मातरम' एक गीत है। 1986 में केरल हाई कोर्ट ने भी फैसला दिया था कि 'वंदे मातरम' गाने के लिए किसी को बााध्य नहीं किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि उनका धर्म केवल एक  ही अल्लाह की इबादत करने की अनुमति देता है। 

उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा स्कूलों और कॉलेजों में 'वंदे मातरम' के अनिवार्य रूप से गाए जाने के आदेश पर समाजवादी पार्टी के नेता एस. टी. हसन ने कहा कि मुसलमान वंदे मातरम का विरोध इसलिए करते हैं, क्योंकि इसमें धरती की पूजा का भाव है और वह अल्लाह के अलावा किसी और की पूजा नहीं कर सकते हैं। उनका कहना है कि देशभक्ति दिखाना 'वंदे मातरम' बोलने पर निर्भर नहीं करता है।