
नौकरियों में अब महिलाओं का दबदबा। (फोटो- AI)
विदेशों में एमबीए कोर्स चुनने वाली भारतीय महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। ग्लोबल छात्र ऋण प्रदाता प्रोडिजी फाइनेंस की रिपोर्ट के अनुसार, 10 साल पहले तक विदेश में एमबीए करने वाली भारतीय महिलाओं की संख्या केवल 28 प्रतिशत थी। अब यह संख्या बढ़कर 42 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
वर्ष 2024 में 6,100 से अधिक महिलाओं ने प्रमुख विश्वविद्यालयों में फुल टाइम कोर्स में दाखिला लिया। जो अब तक का सबसे अधिक रिकॉर्ड है।
जर्मन अकादमिक विनिमय सेवा, डीएएडी के अनुसार, जर्मनी में भारतीय छात्रों की संख्या शीतकालीन सेमेस्टर 2023-2024 में 49,483 तक पहुंच गई है। जो पिछले वर्ष की तुलना में 15।1 प्रतिशत की वृद्धि है। इसी प्रकार, अमेरिका के हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में एमबीए के आवेदन पिछले वर्ष की तुलना में 21 प्रतिशत बढ़े हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के हर छोटे बड़े गांव से महिलाएं दुनिया भर में जाकर पढाई कर रही हैं। विदेश में पढाई की ओर भारतीय महिलाओं का अग्रसर होना, यह संकेत देता है कि महिलाएं खुद में बदलाव लाने की पूरी कोशिश में जुटी हैं।
ग्रेजुएट मैनेजमेंट एडमिशन काउंसिल (जीएमएसी) की रिपोर्टें यह भी दर्शाती हैं कि दुनिया भर में आधे से ज्यादा एमबीए प्रोग्रामों में महिलाओं के आवेदनों की संख्या बढ़ रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि फ्लैक्सिबल और हाइब्रिड प्रोग्राम विशेष रूप से लोकप्रिय हैं, क्योंकि ये महिलाओं को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा प्राप्त करते हुए पेशेवर करियर और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने में मदद करते हैं।
हालांकि, वित्त अभी भी सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है, अंतर्राष्ट्रीय एमबीए कोर्स की औसत लागत 40 लाख रुपये से 80 लाख रुपये के बीच है। ऐसे में एजुकेशन लोन महिलाओं के लिए वैश्विक अवसरों को और अधिक सुलभ बना रहे हैं।
अमेरिका की बदलती नीतियों के चलते भारतीय छात्रों का अमेरिका में शिक्षा से मोहभंग हो रहा है। इस बीच जर्मनी नई पसंद बनकर उभर रहा है।
जर्मनी में भारतीय छात्रों की संख्या चीन को पछाड़ते हुए पिछले वर्ष की तुलना में 20 प्रतिशत बढ़कर करीब 60,000 हो गई है। अनुमान लगाया जा रहा है कि 2030 तक जर्मनी में भारतीय छात्रों की संख्या चार गुना होकर 1.14 लाख तक पहुंच सकती है।
जर्मनी में पढ़ाई की चाहत का कारण वहां कम फीस (अधिकतर पब्लिक यूनिवर्सिटी में लगभग 350 यूरो प्रति सेमेस्टर), इंडस्ट्री से जुड़े कोर्स, और पढ़ाई के बाद 18 महीने का जॉब-सीकिंग वीजा है। जो कि आगे ईयू ब्लू कार्ड और स्थायी निवास का रास्ता खोलता है।
हालिया ट्रंप प्रशासन की नीतियों के कारण अमेरिका में भारतीय छात्रों की संख्या गिरावट आई है। जुलाई 2025 में 46 प्रतिशत कमी दर्ज हुई। मार्च-मई 2025 में केवल 9,906 एफ-1 वीजा भारतीय छात्रों को मिले, जबकि 2024 में यह संख्या 13,478 थी।
ट्रंप प्रशासन की ओर से 6,000 से अधिक वीजा रद्द करना, 100 दिनों से ज्यादा की वीजा प्रतीक्षा अवधि और वैकल्पिक व्यावहारिक प्रशिक्षण (वर्क परमिट) को लेकर अनिश्चितता ने भारतीय छात्रों को मायूस किया है।
वहीं, दूसरी ओर, यह बात सामने आई है कि पिछले छह सालों में भारत के अंदर महिलाओं को अधिक नौकरियां मिली हैं। सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
जानकारी दी गई है कि आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। इतना ही नहीं, मंत्रालय के आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि विभिन्न रोजगार श्रेणियों में महिलाओं की आय लगातार बढ़ रही है।
आंकड़ों के अनुसार, श्रमिक जनसंख्या अनुपात (डब्ल्यूपीआर) में साल 2017-18 के दौरान नौकरी पाने वाली महिलाओं की संख्या 22 प्रतिशत थी। जो 2023-24 में बढ़कर 40.3 प्रतिशत हो गई। इसी तरह, श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) में महिलाओं की संख्या 23.3 प्रतिशत से बढ़कर 41.7 प्रतिशत हो गई है।
वहीं, बेरोजगारी दर 5.6 प्रतिशत से घटकर 3.2 प्रतिशत हो गई है। सर्वेक्षण में आगे कहा गया है कि कार्यबल में शिक्षित महिलाओं की संख्या में वृद्धि देखी गई है।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के आंकड़ों के अनुसार, 2023-24 में स्नातकोत्तर और उससे ऊपर की शिक्षा स्तर वाली कुल महिलाओं में से लगभग 39.6 प्रतिशत कार्यरत हैं, जबकि 2017-18 में यह संख्या 34.5 प्रतिशत थी।
Published on:
01 Sept 2025 02:16 pm
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