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70 साल बाद बंगाल में दिखा ‘मस्क डियर’, जानें 1955 के बाद कैसे कैमरे की कैद में आई दुर्लभ तस्वीर?

पश्चिम बंगाल के निओरा वैली नेशनल पार्क में 70 वर्ष बाद पहली बार कस्तूरी मृग की तस्वीरें कैमरा ट्रैप में कैद हुईं। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस की नई स्टडी में यह खोज दर्ज हुई। 1955 के बाद राज्य में इसे विलुप्त मान लिया गया था।

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Musk Deer

मस्क डियर। (फोटो- X/@OryxTheJournal)

पश्चिम बंगाल के निओरा वैली नेशनल पार्क में करीब 70 साल बाद पहली बार कस्तूरी मृग (मस्क डियर) की तस्वीरें सामने आई हैं। यह खोज कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस इंडिया के जर्नल में प्रकाशित नई वैज्ञानिक स्टडी में दर्ज की गई है।

अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू–कश्मीर, सिक्किम और उत्तराखंड में कस्तूरी मृग की मौजूदगी पहले से प्रमाणित है, लेकिन पश्चिम बंगाल में इसकी आखिरी पुष्टि 1955 में हुई थी। उसके बाद से इसे स्थानीय तौर पर विलुप्त मानने की आशंका बढ़ती गई।

शर्मीला और संकटग्रस्त जीव

कस्तूरी मृग हिमालयी इलाकों का बेहद दुर्लभ, एकांतप्रिय और संकटग्रस्त स्तनधारी है। इसके चार प्रमुख प्रकार है, ब्लैक मस्क डियर, हिमालयन मस्क डियर, अल्पाइन मस्क डियर और कश्मीर मस्क डियर।

यह आमतौर पर ऊंचाई वाले घने जंगलों में पाए जाते हैं। आइसीयूएन की रेड लिस्ट में यह प्रजाति 'अत्यंत संकटग्रस्त' श्रेणी में है क्योंकि इसके शरीर की कीमती कस्तूरी ग्रंथि की तस्करी लंबे समय से जारी है।

कैमरा–ट्रैप से मिली तस्वीर

दिसंबर 2023 में रेड पांडा पर केंद्रित कार्यक्रम के तहत निओरा वैली में कैमरा–ट्रैप सर्वे शुरू हुआ। 17 दिसंबर 2024 को एक कैमरे ने लगातार छह तस्वीरें कैप्चर कीं, जिनमें मस्क डियर (जीनस मोस्कस) के स्पष्ट लक्षण दिखाई दिए। खरगोश जैसे लंबे कान, बिना सींगों वाला सिर और ऊपर की ओर निकली विशिष्ट दाढ़ें।

मस्क डियर की खास बात

मस्क डियर भी हिरण परिवार का सदस्य है, लेकिन इसमें सींग नहीं होते। जो इसे अन्य हिरणों से अलग बनाता है। कस्तूरी मृग मुख्य रूप से एशिया के ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है और अपनी विशेष कस्तूरी (मस्क) ग्रंथि के कारण प्रसिद्ध है।

वयस्क कस्तूरी मृग का वजन 7 से 17 किलोग्राम तक होता है। इसकी लंबाई 79-99 सेमी और कंधे की ऊंचाई 50-65 सेमी होती है। यह कुत्ते के आकार का छोटा जानवर होता है।

नर और मां में दोनों में सींग नहीं होते। नर के ऊपरी जबड़े में लंबे दांत होते हैं, जो 6-10 सेमी लंबे हो सकते हैं और लड़ाई या सुरक्षा के लिए उपयोग होते हैं। कस्तूरी को 'काला सोना' कहा जाता है।

इसका उपयोग आयुर्वेद, चीनी चिकित्सा और परफ्यूम उद्योग में होता है। यह दमा, मिर्गी, हृदय रोग, निमोनिया जैसी बीमारियों की दवा में काम आता है। एक ग्राम कस्तूरी की कीमत 40,000-45,000 रुपये तक हो सकती है।