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Muslim Reservation: क्या कर्नाटक में मुस्लिमों को मिलेगा 4 प्रतिशत आरक्षण? अब राष्ट्रपति करेंगी फैसला

Karnataka Muslim Reservation: राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कहा कि वह अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज रहे हैं।

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कर्नाटक के राज्यपाल ने 4% मुस्लिम आरक्षण का विधेयक राष्ट्रपति को भेजा (File Photo)

Muslim Reservation: कर्नाटक विधानसभा ने मार्च महीने में कर्नाटक ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक प्रोक्योरमेंट्स (संशोधन) विधेयक, 2025 पारित किया, जिसमें मुसलमानों को सरकारी ठेकों में 4 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान है। अब इस विधेयक को राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास मंजूरी के लिए भेजा है। राज्यपाल ने कहा कि संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की इजाजत नहीं देता है।

राज्यपाल गहलोत ने क्या कहा

कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कहा कि वह अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज रहे हैं। राज्यपाल ने कहा कि देश का संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता है और यह अनुच्छेद-14, 15 और 16 के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। 

विपक्ष ने विधेयक को बताया था ‘असंवैधानिक’

बता दें कि बीजेपी और जनता दल सेक्युलर ने इस विधेयक को असंवैधानिक बताया था। हालांकि इसके बाद दोनों पार्टियों ने राज्यपाल को एक याचिका दी जिसमें कहा गया कि यह विधेयक "समाज को ध्रुवीकृत" करेगा। बीजेपी ने दावा किया कि यह विधेयक यह धार्मिक आधार पर आरक्षण प्रदान करता है।

विधेयक पर कांग्रेस का तर्क

बता दें कि कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है। वहीं सीएम सिद्धारमैया का कहना है कि यह विधेयक सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है। सरकार के अनुसार, मुस्लिम समुदाय सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ा है, और यह आरक्षण उन्हें मुख्यधारा में लाने में मदद करेगा।

पिछड़ा वर्ग को भी किया शामिल

बता दें कि इस विधेयक की शुरुआत सिद्धारमैया के सीएम के रूप में प्रथम कार्यकाल के दौरान हुई थी। इसमें सिविल कार्य अनुबंधों के लिए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए 24 प्रतिशत कोटा प्रस्तावित किया गया था। हालांकि 2025 में इसे बढ़ाकर पिछड़ा वर्ग को भी इसमें शामिल कर लिया गया। कांग्रेस का कहना है कि मुसलमानों को ओबीसी उप-श्रेणी के रूप में शामिल किया गया है।

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विधानसभा में हुआ था हंगामा

इस विधेयक के पारित होने के दौरान विधानसभा में काफी हंगामा हुआ था। बीजेपी ने इसे "असंवैधानिक" और "तुष्टिकरण की राजनीति" करार देते हुए विरोध किया। बीजेपी विधायकों ने सदन में कागज फाड़े, नारेबाजी की और स्पीकर के आसन के पास प्रदर्शन किया था।