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नागालैंड में बढ़ी नाराजगी, मुख्यमंत्री ने मृतकों को श्रद्धांजलि देने के साथ की AFSPA हटाने की मांग

locationनई दिल्लीPublished: Dec 06, 2021 02:51:26 pm

नागालैंड में केंद्र सरकार लगातार नागा गुटों के साथ शांति वार्ता को लेकर बात कर रही है। लेकिन इस बीच रविवार को हुई घटना ने माहौल फिर गर्मा दिया है। नागालैंड में सुरक्षाबलों की फायरिंग में 14 लोगों की मौत और कई लोगों को घायल होने के बाद सोमवार को मुख्यमंत्री मोन जिला पहुंचे। उन्होंने मृतकों को श्रद्धांजलि देने के साथ ही एक बार फिर AFSPA कानून हटाने की मांग की

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नई दिल्ली। नगालैंड ( Nagaland ) में फायरिंग को लेकर जनता में नाराजगी बढ़ती जा रही है। सोमवार को खुद मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ( Neiphiu Rio ) मोन जिले पहुंचे। यहां उन्होंने सुरक्षाबलों की फायरिंग से मरने वाले नागरिकों को अंतिम विदाई दी। इस दौरान लोगों में जबरदस्त गुस्सा नजर आया। विपक्ष समेत जनता ने नारेबाज कर इस घटना पर नाराजगी जाहिर की। वहीं मुख्यमंत्री ने इस दौरान एक बार फिर से राज्य में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट यानी AFSPA को हटाने की मांग की।
रियो ने कहा कि उग्रवाद पर नियंत्रण पाने के लिए यह कानून लागू किया गया था तो फिर अब तक यह क्यों वापस नहीं लिया गया। बता दें कि रविवार को सुरक्षाबलों की फायरिंग में 14 नागरिकों की मौत के बाद नगालैंड में एक बार फिर से आफ्स्पा कानून हटाए जाने की मांग तेज हो गई है।
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केंद्र सरकार लगातार नागा गुटों के साथ शांति वार्ता को लेकर बात कर रही है। लेकिन बीच रविवार को हुई घटना ने माहौल फिर गर्मा दिया है। नागालैंड में सुरक्षाबलों की फायरिंग में 14 लोगों की मौत और कई लोगों को घायल होने के बाद सोमवार को मुख्यमंत्री मोन जिला पहुंचे।
यहां सीएम ने मृतकों को श्रद्धांजलि देने के साथ अंतिम बिदाई दी। हालांकि इस दौरान लोगों की नाराजगी के बीच मुख्यमंत्री फिर केंद्र सरकार के आगे अपनी मांग दोहराई कि AFSPA को हटाया जाए।
कब लागू हुआ AFSPA?
आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट ( AFSPA ) नगालैंड में कई दशकों से लागू है। सन् 1958 में संसद ने ‘अफस्पा ‘ यानी आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर ऐक्ट लागू किया था। भारत में संविधान लागू होने के बाद से ही पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ रहे अलगाववाद, हिंसा और विदेशी आक्रमणों से प्रतिरक्षा के लिए मणिपुर और असम में 1958 में AFSPA लागू किया गया था।
इसके बाद वर्ष 1972 में कुछ संशोधनों के साथ असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नगालैंड सहित समस्त पूर्वोत्तर भारत में इसे लागू किया गया था।

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अमित शाह दोनों सदनों में देंगे बयान
नागालैंड में सुरक्षाबलों की फायरिंग में मारे गए लोगों के बाद सियासत भी गर्मा गई है। लोकसभा में भी शीतकालीन सत्र के दौरान इस मुद्दे पर सरकार से जवाब मांगा गया। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि सरकार इस घटना को लेकर अपनी चु्प्पी तोड़े। वहीं बीजेपी सांसद प्रहलाद जोशी ने कहा कि , इस मामले पर संसद के दोनों सदनों में खुद गृहमंत्री अमित शाह अपना बयान देंगे।
नागालैंड सरकार ने किया 5-5 लाख मुआवजे का ऐलान

उधर..मोन जिले में हुए फायरिंग में मारे गए लोगों के परिजनों को लेकर नागालैंड सरकार ने मुआवजे का ऐलान किया। सरकार की ओर से मृतक के परिवार वालों को 5-5 लाख रुपए की सहायता राशि प्रदान की जाएगी।
नगालैंड के परिवहन मंत्री पैवंग कोनयक ने ग्राम समिति के चेयरमैन को मुआवजे की राशि सौंप भी दी है। कोनयक ने यह भी बताया कि इसके अलावा घायलों को 50-50 हजार रुपए की आर्थिक मदद दी गई है।
तेज हुई कानून हटाने की मांग
नागालैंड में सुरक्षाबलों की ओर से की गई फायरिंग के बाद सबसे बड़े नगा उग्रवादी समूह नेशनलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम की प्रतिक्रिया सामने आई। समूह ने इस हमले के बाद भारतीय सुरक्षाबलों की आलोचना की है।
समूह के प्रमुख इजाक मुईवाह ने नागरिकों की हत्या को नगाओं के इतिहास में काला दिन बताया है। इसके साथ ही अफ्स्पा कानून वापस लेने की भी मांग की है।
इस समूह ने कहा है कि लंबे समय से नगा लोगों को दोस्त के रूप में आने वाले सुरक्षाबलों की बर्बरता झेलनी पड़ी है। नगा न्याय मांग रहे हैं और भारत सरकार को अब इस मामले की जांच शुरू करने में देरी नहीं करनी चाहिए।
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