
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई। (Photo-ANI)
Supreme Court: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने यूके सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित एक गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायिक नियुक्तियों पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि सरकार ने भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय दो बार सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों की अनदेखी की, जबकि न्यायाधीशों की नियुक्ति में अंतिम निर्णय उसी का था। उन्होंने कार्यपालिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि जजों का स्वतंत्र रहना जरूरी है।
CJI गवई ने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता लोकतंत्र के लिए आवश्यक है और इसे बाहरी नियंत्रण से मुक्त रखना चाहिए। उन्होंने बताया कि 1993 तक जजों की नियुक्ति का अधिकार कार्यपालिका के पास था। इस दौरान दो बार कार्यपालिका ने परंपरा को तोड़ते हुए वरिष्ठ न्यायाधिशों को दरकिनार कर दिया।
CJI गवई ने कहा कि जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के कार्यकाल में मुख्य न्यायाधीश (CJI) की नियुक्ति में मनमानी की गई थी, जिससे वरिष्ठता की परंपरा का उल्लंघन हुआ। 1964 में नेहरू सरकार ने जस्टिस जफर इमाम को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए CJI नहीं बनाया और जस्टिस पी.बी. गजेंद्रगढ़कर को नियुक्त किया।
1977 में जस्टिस हंसराज खन्ना को इंदिरा गांधी सरकार ने CJI नहीं बनाया, क्योंकि उन्होंने आपातकाल के दौरान एडीएम जबलपुर मामले में मौलिक अधिकारों की रक्षा का समर्थन किया था। उनकी जगह जस्टिस एम.एच. बेग को नियुक्त किया गया।
सीजेआई गवई ने कहा कि 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द कर दिया था। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम ने न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका को प्राथमिकता देकर न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर किया है।
चीफ जस्टिस ने कहा कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना हो सकती है, लेकिन कोई भी समाधान न्यायिक स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं आना चाहिए। न्यायाधीशों को बाहरी नियंत्रण से मुक्त होना चाहिए। नरेंद्र मोदी सरकार ने कॉलेजियम प्रणाली को बदलने के लिए जोर दिया था।
Published on:
04 Jun 2025 03:47 pm
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